जनेऊ संस्कार (Janeu sanskar) ,हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक रिवाज हैं, जो बालक के जीवन के एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक होता हैं. यह संस्कार बच्चे को धर्म, संस्कार और समाज में प्रवेश के लिए तैयार करता हैं. जनेऊ, जो एक सफेद रंग के तीन तारों से बने पवित्र धागे से होता हैं, बाएं कंधे से दाएं बाजू की ओर पहना जाता हैं. इसे सनातन धर्म में उपनयन संस्कार भी कहा जाता हैं, जिसका अर्थ है ईश्वर के निकट जाना. इस संस्कार के माध्यम से बालक को धर्म और समाज के मान्यताओं को समझने के लिए तैयार किया जाता हैं.
क्यों किया जाता जनेऊ संस्कार?
जनेऊ संस्कार हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण रिवाज हैं, जिसे धार्मिक, वैज्ञानिक, ज्योतिषीय, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से किया जाता हैं. धार्मिक रूप से, यह संस्कार त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और महेश से जुड़ा होता हैं, और इसके तीन सूत्र त्रिदेव के प्रतीक माने जाते हैं, जो व्यक्ति के जीवन में शुद्धता और धर्म की शुरुआत का प्रतीक होते हैं. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, जनेऊ संस्कार बालक के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है.
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ज्योतिषीय दृष्टि से, यह संस्कार बालक के जीवन में सुख, समृद्धि और सकारात्मक ग्रहों का प्रभाव डालता हैं.सामाजिक दृष्टिकोण से, यह संस्कार बच्चे को समाज में एक नई पहचान दिलाता हैं और उसे समाज के नियमों और परंपराओं को समझने में सक्षम बनाता हैं.आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, यह संस्कार बालक को आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता हैं. इन सभी कारणों से, जनेऊ संस्कार हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं में सकारात्मक परिवर्तन लाता हैं.
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जनेऊ संस्कार का सही समय कब ?
जनेऊ संस्कार का समय व्यक्ति के जन्म समय और जाति के आधार पर निर्धारित होता हैं, बता दे की , यह संस्कार 8 से 12 वर्ष की उम्र के बीच किया जाता हैं. यह संस्कार वसंत या शरद ऋतु में, जब मौसम शुद्ध और सुखद होता हैं, सबसे अधिक शुभ माना जाता हैं. वसंत ऋतु (फरवरी से मार्च) और शरद ऋतु (सितंबर से अक्टूबर) इसके लिए उपयुक्त माने जाते हैं.
इसके अलावा, माघ (जनवरी से फरवरी) और वैशाख (अप्रैल से मई) माह भी इस संस्कार के लिए शुभ होते हैं. जनेऊ संस्कार के लिए सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार के दिन विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं. कुछ नक्षत्र जैसे हस्त, चित्रा, स्वाति, पुष्य, घनिष्ठा, अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, श्रवण और रेवती भी इस संस्कार के लिए अनुकूल होते हैं.