अयोध्या विवाद: जानें कौन हैं जस्टिस यूयू ललित, जो सवाल उठने पर अपने आप संविधान पीठ से अलग हो गए

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई गुरुवार को फिर एक बार टल गई. अगली सुनवाई 29 जनवरी को होगी. इसके लिए बनाई गई 5 सदस्यों की संविधान पीठ से जस्टिस यूयू ललित ने खुद को अलग कर लिया है. दरअसल सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने पांच सदस्‍यीय बेंच में जस्टिस यूयू ललित के शामिल होने पर सवाल उठाए. मुस्लिम पक्ष के वकील के मुताबिक 1994 में कल्याण सिंह की तरफ से वकील रह चुके हैं. इसके बाद जस्टिस यूयू ललित ने सुनवाई खुद को अलग कर लिया.

 

जानें कौन हैं जस्टिस यूयू ललित
जस्टिस यूयू ललित का पूरा नाम उदय उमेश ललित है, और ये एक वकीलों के परिवार से आते हैं. 13 अगस्त 2014 को जस्टिस ललित ने सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में कार्यभार संभाला था. पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा के नेतृत्व वाले जजों के कोलेजियम ने उन्हें नामित किया. 22 नवंबर 2022 को यूयू ललित इस पद से रिटायर होंगे, इससे पहले यूयू ललित 74 दिन के लिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बन सकते हैं.

 

जस्टिस उदय उमेश ललित के पिता जस्टिस यू.आर. ललित दिल्ली हाईकोर्ट में जज थे और उससे पहले वह सुप्रीम कोर्ट में वकील रह चुके थे. जिन्हें बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट का एडिशनल जज बनाया गया. अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए यूयू ललित ने 1983 बतौर वकील प्रैक्टिस शुरू की. साल 1986 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में वकालत की शुरुआत की. साल 1986 से 1992 तक यूयू ललित ने पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोरबजी के साथ भी काम किया.

 

29 अप्रैल 2004 को यूयू ललित को सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील का दर्जा दिया गया. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जीएस सिंघवी और जस्टिस एके गांगुली की बेंच ने साल 2011 में यूयू ललित को टूजी स्पेक्ट्रम से जुड़े मामलों में सीबीआई की तरफ से स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर अप्वाइंट किया था.

 

लोकसभा चुनाव की वजह से मंदिर पर राजनीति गरमाई
लोकसभा चुनाव नजदीक होने की वजह से राम मंदिर मुद्दे पर राजनीति भी गरमा रही है. केंद्र में एनडीए की सहयोगी शिवसेना ने कहा है कि अगर 2019 चुनाव से पहले मंदिर नहीं बनता तो यह जनता से धोखा होगा. इसके लिए भाजपा और आरएसएस को माफी मांगनी पड़ेगी. उधर, केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने अध्यादेश लाने का विरोध करते हुए कहा कि सभी पक्षों को सुप्रीम कोर्ट का आदेश ही मानना चाहिए. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि न्यायिक प्रकिया पूरी हो जाने के बाद एक सरकार के तौर पर जो भी हमारी जिम्मेदारी होगी हम उसे पूरा करने के लिए सभी प्रयास करेंगे.

 

क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?
हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए. इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट में यह केस पिछले आठ साल से है.

 

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