इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad Highcourt) में उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ की तरफ से पैरवी के लिए पहले प्राइवेट वकीलोें की सूची को जारी किया गया और फि एक पूरा दिन भी नहीं बीत पाया शासनादेश को तत्काल प्रभाव से निरस्त भी कर दिया गया. सूची में जगह पाए वकील एक तरफ बधाइयां ही ले रहे थे तभी एक नए आदेश ने उनकी इन खुशियों पर ग्रहण लगा दिया. वहीं कई वकील तो ऐसे हैं जिनसे सहमति भी नहीं ली गई और उनका नाम भी पैनल में डाल दिया गया. ऐसे में आनन-फानन में लिए गए इन फैसलों पर सवाल उठ रहे हैं.
दरअसल, 13 सितंबर को उत्तर प्रदेश सरकार के न्याय विभाग ने एक आदेश जारी किया. शासनादेश संख्या-1/387129/2023 फाइल नं-07-3099/48/2023-3 दिनांक 13.09.2023 के मुताबिक इलाहाबाद हाइकोर्ट में राज्य सरकार के महत्वपूर्ण मामलों की पैरवी के लिए 14 प्राइवेट अधिवक्ताओं के पैनल को मंजूरी दी गयी है.
इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट में पैरवी के लिए 8 नामी वकीलों के नाम शामिल किये गये हैं और लखनऊ खंडपीठ में 6 वकीलों के नामों को मंजूरी दी गयी है.
सरकारी पैनल में नाम आने के बाद जश्न मना रहे वकीलों के लिए दूसरा आदेश बेहद हैरान और निराश करने वाला रहा, जिसके मुताबिक 13 तारीख के आदेश को 14 तारीख को निरस्त करने का फरमान सुनाया गया. हालांकि दूसरे आदेश में पहले निरस्तीकरण के बीचे की वजह नहीं बताई गई है.
डाइनामाइट न्यूज के मुताबिक पहले आदेश की सूची में नाम आए एक वकील का कहना है कि पैनल में मेरा नाम शामिल करने से पहले किसी ने भी मेरी सहमति नहीं ली, अपने मन से मेरा नाम डाल दिया गया, वे खुद हैरान हैं कि पहले मेरे नाम को शामिल किया गया और बाद में निरस्त करने का आदेश जारी किया गया.
इतना ही नहीं इस बारे में जब न्याय विभाग के प्रमुख सचिव प्रमोद कुमार श्रीवास्तव से इस बारे में जानकारी ली और पूछा कि क्या कारण है कि 24 घंटे में प्राइवेट वकीलों के पैनल के गठन संबंधी आदेश को निरस्त कर दिया तो उनका कहना है कि ने बोला कि मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है, जिसने जारी किया है वही इस बारे में कुछ बता सकता है.
अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वकीलों की सहमति लिए बिना ही यह पैनल तैयार किया गया?, संबंधित विभाग के भीतर कुछ खींचतान चल रही ?, आखिर इस सूची के पीछे कौन है जो पहले ऐसे फैसले लेता है और फिर निरस्त करके योगी सरकार की किरकिरी करा रहा?.
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