अंतिम चरण की वोटिंग के बाद आये एग्जिट पोल के परिणाम बीजेपी के लिए किसी बड़ी जीत से कम नहीं हैं. जिसके मुताबिक़ उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-रालोद को बड़ा झटका लग सकता है. उत्तर प्रदेश की सियासत में धुर विरोधी रहे सपा और बसपा जब एक साथ आये तो राजनीतिक जानकार इसे बीजेपी को दोबारा सरकार बनाने की राह में रोड़ा बता रहे थे वहीं दोनों के वोट शेयर और जातीय समीकरण पर अगर नजर डालें तो ये बीजेपी की नींद उड़ाने से कम नहीं था, लेकिन बीजेपी ने इस विपरीत परिस्थिति में हार नहीं मानी और एकमत से फैसला किया कि चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर ही लड़ा जाएगा.
जिम्मेदारी थी देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश को बचाने की क्योंकि इसके बिना बहुमत का जादुई आंकड़ा छूना नामुमकिन था. चुनाव से ठीक 3 माह पहले पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान पर की गयी एयर स्ट्राइक ने बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाना शुरू कर दिया. बीजेपी ने भी फैसला किया कि चुनाव नरेन्द्र मोदी की साफ़ छवि और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ही लड़ा जाएगा. पार्टी ने इसके लिए बाकी अपने सभी मुद्दे पीछे रख दिए और राष्ट्रवाद को धार देना शुरू कर दिया.
इन सबके बावजूद भी उत्तर प्रदेश की सियासत के लिए इतना नाकाफी दिख रहा था. सपा-बसपा-रालोद ने जिस तरह माहौल बनाना शुरू किया यूपी बीजेपी के लिए राह आसान नहीं थी. यहां मोदी के चेहरे और राष्ट्रवाद के अलावा अपने पारम्परिक वोटबैंक को साधने के साथ-साथ गठबंधन से नाराज वोटरों में सेंधमारी की भी जरुरत थी. इसके लिए रोडमैप तैयार करने की जिम्मेदारी बीजेपी संगठन महामंत्री सुनील बंसल को दी गयी. बंसल राजनीति रुपी शतरंज की बिसात के बाजीगर माने जातें हैं. इसकी बानगी वे 2014 लोकसभा और 2017 यूपी विधानसभा चुनावों में दिखा चुके थे.
सुनील बंसल ने मीटिंग, आयोजनों की रूपरेखाखा तैयार करने के साथ-साथ इनके क्रियान्वयन पर ख़ासा जोर दिया. योगी और मोदी सरकार की उपलब्धियों और कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी आम जनता और लाभार्थियों तक पहुँचाने के लिए जमीनी कार्यकर्ताओं की भूमिका तो रखी ही उनकी इस योजना में सोशल मीडिया की भी अहम भूमिका देखी गयी. यूपी में आईटी सेल से लेकर संवाद केन्द्रों को बनाने के लिए अगर किसी को श्रेय जाता है तो वो सुनील बंसल ही हैं.
बंसल ने पार्टी और सरकार के शीर्ष नेताओं से मंत्रणा के बाद अभियान शुरू किया. उन्होंने 146 कार्यक्रम तय किये. अगस्त 2018 से मार्च 2019 तक सभी कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया गया. बूथ, मंडल और जिले स्तर तक आयोजन शुरू हुए तो लगातार सिलसिला बना रहा. चुनाव के दौरान अकेले बंसल ने 60 लोकसभा क्षेत्रों में असंतुष्टों से संपर्क साधा और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया. वार रूम में 90 लोगों की तैनाती कर एक-एक क्षेत्र की रिपोर्ट ली गई और हर लोकसभा क्षेत्र में इंटेलीजेंस के लिए 80 एक्सपर्ट भेजे गए.
सुनील बंसल पर योजना की तो जिम्मेदारी थी साथ ही साथ इसका क्रियान्वयन उनके लिए अहम चुनौती था, बंसल ने इसके लिए युद्ध स्तर पर काम करना शुरू कर दिया. बंसल ने बूथवार कार्यकर्ताओं की सूची तैयार कराई. तीस लाख सत्यापित कार्यकर्ताओं को मोदी को फिर से पीएम बनाने और 13 करोड़ मतदाताओं को साधने का लक्ष्य सौंपा. फिर सम्मेलन, सभा, पदयात्रा, बाइक रैली, कमल ज्योति अभियान आदि कार्यक्रमों के जरिये माहौल बनाया. विजन के साथ मिशन पर एक्शन शुरू हुआ तो भाजपा को जमीनी हकीकत पता चली. सांसदों से जनता के बीच नाराजगी को तो पहले ही भांप लिया गया था. इसके लिए दस मार्च से 15 अप्रैल तक हर लोकसभा क्षेत्र में महिला, युवा, किसान, अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के सम्मेलन शुरू हुए. तय हुआ कि हर विधानसभा क्षेत्र में एक सम्मेलन हो. करीब 376 सम्मेलन हुए. फिर सोशल मीडिया वालंटियर सम्मेलन भी हुए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, लोकसभा प्रभारी जेपी नड्डा, प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व डॉ. दिनेश शर्मा तथा देश व प्रदेश सरकार के मंत्री और वरिष्ठ नेताओं ने उत्तर प्रदेश में कुल सात सौ रैलियां करके जान फूंक दी. इस बीच बूथों की श्रेणी भी निर्धारित कर सबसे कमजोर बूथों पर भी भाजपा ने ताकत झोंक दी. सांगठनिक लिहाज से छह चरणों में बंटे उत्तर प्रदेश में अमित शाह ने छह महत्वपूर्ण बैठकें की. हर लोकसभा क्षेत्र की अलग-अलग बैठक कर उन्होंने खामियों को दूर किया.
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