2014 में नागेश कुकुनूर की फिल्म आई थी. फिल्म का नाम था लक्ष्मी. फिल्म में ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाली ह्यूमन ट्रैफिकिंग और चाइल्ड प्रॉस्टिट्यूशन की कड़वी सच्चाई को दिखाया था. फिल्म लव सोनिया भी इसी जॉनर की फिल्म है. लेकिन यह इस धंधे की सच्चाई दिखाने से ज़्यादा एक बहन के दूसरी बहन को ढूंढने की कहानी है.
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फिल्म एक ऐसी जगह से शुरू होती है जहां बारिश न होने के कारण किसान बेहाल और कर्ज़ के बोझ तले दबे हुए हैं. ऐसा ही एक किसान है प्रीती (रिया सिसोदिया) और सोनिया (मृणाल ठाकुर) का पिता शिवा (आदिल हुसैन). जिसमें दादा ठाकुर (अनुपम खेर) से कर्ज़ लिया हुआ है. इसी को चुकाने के लिए वह प्रीती को बेच देता है. सोनिया अपनी बहन को वापस लाने के लिए घर वालों से छिपकर दादा ठाकुर की मदद से मुंबई चली जाती है. जहां उसे भी देह व्यापार में धकेल दिया जाता है. जिस वैश्यालय में उसे रखा जाता है उसका कर्ता-धर्ता फैज़ल (मनोज वाजपेयी) है. जो लड़कियों को वहां रखने के लिए हर तरह के टॉर्चर का इस्तेमाल करता है. इसी वैश्यालय में वह माधुरी (रिचा चड्ढा), रश्मि (फ्रेडा पिंटो) से मिलती है जो कि परिस्थितियों के चलते कभी इस धंधे में धकेली गई थीं.
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राजकुमार राव (मनीष) जो कि एक एनजीओ से जुड़े हुए हैं वैश्यालय से नाबालिग लड़कियों को निकालने का काम करते हैं. ऐसे ही वह सोनिया की मदद करने की कोशिश करते हैं लेकिन सोनिया उनके साथ नहीं जाती. इस घटना के बाद मनोज वाजपेयी उसे प्रीती से मिला देते हैं. लेकिन प्रीती अपनी हालत का ज़िम्मेदार सोनिया को ठहराती है. बाद में सोनिया और माधुरी को अवैध तरीके से पहले हॉन्ग-कॉन्ग बाद में अमेरिका भेज दिया जाता है. जहां रहकर सोनिया अपनी बहन को ढूंढने और खुद वापस आने का संघर्ष करती है.
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फिल्म की सबसे खास बात यह है कि मल्टी स्टारर होने के बावजूद भी कोई किरदार एक दूसरे पर हावी नहीं होता. सबके सीमित किरदार है जिसके साथ वह पूरी तरह से न्याय करते हैं. सोनिया के किरदार को मृणाल ठाकुर ने बखूबी निभाया है. एक फ्रस्ट्रेटेड पिता और किसान की भूमिका में आदिल हुसैन अच्छे दिखते हैं. अपनी हर फिल्म की तरह राजकुमार राव और मनोज वाजपेयी ने बहुत सधा हुआ अभिनय किया है. कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि वह दूसरे किरदार पर भारी पड़ रहे है. रिचा चड्ढा भी अच्छा करती हैं. फ्रेडा पिंटो ने रश्मि के किरदार में गजब जान फूंकी है. अनुपम खेर का फिल्म में बड़ा किरदार नहीं है लेकिन फिर भी वह अपने हिस्से के साथ पूरा न्याय करते हैं.
बात करें फिल्म के डायरेक्शन और स्टोरी की तो तबरेज़ नूरानी ने बेहतरीन काम किया है. जिस तरह वैश्यालय के सीन्स को दिखाया गया है उससे आपके मन में सिर्फ और सिर्फ घृणा पैदा होती है. वहां के एक-एक सीन को फिल्माते हुए इतनी बारीक चीज़ों का ध्यान रखा गया है कि आप सिर्फ उस माहौल की विभत्सता को महसूस कर सकते हैं और कुछ भी नहीं. यह सीधे-सीधे दिमाग पर चोट करते मालूम होते हैं. फिल्म को जिस जगह खत्म किया गया है वह एकदम परफेक्ट मालूम पड़ता है. आये दिन हम ह्यूमन ट्रैफिकिंग से जुड़ी खबरें सुनते रहते हैं.लेकिन फिल्म में जिस तरह लड़कियों को एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता है वह दिल को दहला देने वाला है. हम आप इस तथाकथित सभ्य समाज में बैठकर उन बातों की कल्पना भी नहीं कर सकते जिन्हें उन लड़कियों को वास्तव में झेलना पड़ता है.
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