OPINION: भाजपा के लिए जीत की समीक्षा बहुत जरुरी है

भारतीय जनता पार्टी एक मात्र ऐसी पार्टी हैं जो चुनाव में हार की बड़ी निर्ममता से समीक्षा करती हैं,केवल समीक्षा नहीं करती उसके हर पहलु पर विचार के बाद उसके सुधार के उपाय भी किए जाते हैं, याद कीजिये 1984 के चुनाव में बीजेपी को सिर्फ 2 सीटें मिली थी, उसके बाद पार्टी में जो मंथन शुरू हुआ पार्टी ने गांधीवादी समाजवाद का रास्ता छोड़ा, अटल जी जैसे सबसे लोकप्रिय नेता को अध्यक्ष पद से हटाया गया, पूरी सेंट्रल और स्टेट की टीम बदल दी गयी,एकाध मानववाद की विचारधारा पर पार्टी लौट आई, इसी तरह से आप याद कीजिये 2009 में जब लालकृष्ण अडवाणी को प्रधानमंत्री के रूप में बीजेपी ने प्रोजेक्ट किया था. चुनाव लड़ी और बुरी तरह से हार गयी, उसके बाद अडवाणी जी ने घोषणा कि वो लोकसभा में विपक्ष के नेता नहीं होगे, पार्टी ने लोकसभा में सुषमा स्वराज और राज्यसभा में अरुण जेटली को नेता प्रतिपक्ष बनाया.

आपसी कलह के बाद भी 2013 में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया, बीजेपी में ऐसे परिवर्तन गुणदोष के आधार पर होते रहे हैं. दूसरी पार्टिया भी हार के बाद समीक्षा करती हैं, लेकिन उसको ठन्डे बस्ते में डाल देती हैं.कांग्रेस ने एक के बाद हार के बाद समीक्षा नहीं की, अगर हुयी तो जो उपाय सुझाये गए वो ठन्डे बस्ते में डाल दिए, आज कांग्रेस कहाँ हैं. लेकिन आज मैं दूसरी बात कह रहा हूँ बीजेपी की 5 में से 4 राज्यों में जीत हुई हैं, लेकिन बीजेपी को उत्तर प्रदेश में पहली बार जीत की समीक्षा करनी चाहिए, जितनी ये बात राजनीतिक दलों के लिए सही हैं, उतनी ही स्पोर्ट्स की टीम पर भी लागू होती हैं, आप क्रिकेट को ही ले लीजिये जब आप जीत जाते हैं तो आप अपनी कमियों को ढक देते हैं उनपर विचार न करके टाल देते हैं, निराकरण करने की कोशिश नहीं होती हैं, धीरे-धीरे वहीँ कमियां हार का कारण बन जाती हैं.

उत्तर प्रदेश में बीजेपी के पास ये सही समय हैं अपनी विजय की समीक्षा करने का, विजय की समीक्षा इसलिए कह रहा हूँ, पार्टी के अन्दर से ही पुरे चुनाव अभियान को अंतर्ध्वंस  करनी की कोशिश हुई हैं, नतीजे बता रहे हैं उसमे सफलता नहीं मिली, लेकिन उनको आंशिक सफलता जरुर मिली हैं, उसके कारण दो चीजे सामने आयी हैं, एक जो लडाई आसान होनी चाहिए थी वो थोड़ी मुश्किल हो गयी, दूसरी जहाँ जीत का मार्जिन ज्यादा होना चाहिए वहां कम हुआ, कहने को तो जीत हो गयी हैं, दो तिहाई बहुमत मिल गया हैं, संतुष्ट हो सकते हैं, इतनी बड़ी जीत हुई हैं पांच साल सरकार चलाने के बाद हुई हैं, ऐतिहासिक हैं, 35 साल बाद ऐसा हुआ हैं, सरकार दोबारा सत्ता में लौटकर आई हैं ये सब बातें सही हैं लेकिन सवाल ये हैं कि इस जीत को कम करने के पीछे कौन लोग थे, उनकी क्या मंशा थी, क्यूँ ऐसा कर रहे थे, क्यों ऐसा होने दिए गया, इसकी शुरुआत होती हैं कोरोना की दूसरी लहर के तुरंत बाद, जिस तरह से अभियान चलाया गया कि मुख्यमंत्री बदला जा रहा है, मुख्यमंत्री को निष्प्रभावी किया जा रहा हैं,ये सब बाते और खबरे पार्टी के भीतर से निकलती हैं और मीडिया को फीड की जाती हैं, फ़लाने होने वाले हैं सीएम, कुछ लोग कह रहे थे मुख्यमंत्री योगी रहेंगे मगर उनको निष्प्रभावी कर दिए जायेगा , जो प्रदेश का सबसे लोकप्रिय नेता हो उनसे सारे अधिकार छीन लिए जायेगे ,बाकि सब बातें छोड़ दीजिये, तीन बातें याद कीजिये कानून व्यवस्था, पुरे प्रदेश के लोगों में चाहे वो समर्थक या विरोधी हो, जो सुरक्षा की भावना का अहसास कराया वो सिर्फ योगी आदित्यनाथ ही कर सकते थे, मैं बिलकुल दावे के साथ बोल सकता हूँ कोई और बीजेपी का नेता मुख्यमंत्री बना होता तो नहीं कर पता, दूसरा पुरे प्रदेश में 22 से 24 घंटे बिजली की सप्लाई ,तीसरा केंद्र की योजनाओ की बिना भ्रष्टाचार और पारदर्शी तरीके से डिलीवरी इनश्योर करना और मुख्यमंत्री योगी की व्यक्तिगत निष्ठा, ईमानदारी, विचारधारा के प्रति उनका समर्पण इन सब पर सवाल नहीं उठाया जा सकता ,फिर भी उनको बदलने की बात हो रहे थी, ये सब बोलने वाले कौन लोग थे, पार्टी को छोड़कर जाने वाले तीन मंत्रियों के कारण पार्टी जिनके टिकट कटने वाली थी, उसमे एक तरह से ब्रेक लग गया,कुछ के टिकट कटे लेकिन ज्यादातर बच गए, पार्टी से ऐसी बातें आ रही हैं जिनके टिकट बच गए इसके लिए पार्टी के कुछ पदाधिकारियो ने उनसे पैसे लिए हैं. मुझे नहीं मालूम इसमे कितनी सच्चाई हैं,लेकिन इस बात की चर्चा हो रही हैं, तो किसी ने कुछ तो गड़बड़ किया होगा वो चाहे एक ही विधायक या उम्मीदवार के साथ ऐसा हुआ होगा, सवाल ये हैं कि भारतीय जनता पार्टी जैसे संगठन में ये चीज कैसे होने दी जा सकती हैं, इसको रोकने के लिए इस विजय की समीक्षा जरुरी हैं. इसकी समीक्षा नहीं हुई तो आगे चलके इसका नुकसान उठाना पड़ सकता हैं ये सभी पार्टियों के लिए भी हैं, खासतौर से बीजेपी के लिए. उसके 312 अकेले और कुल मिलकर 325 विधायक थे, एक चीज पार्टी के सबसे ज्यादा खिलाफ थी वो थी विधायको के खिलाफ भयंकर नाराजगी,ऐसे विधायको की संख्या बहुत ज्यादा थी जो अपने चुनाव क्षेत्र में पुरे पांच साल नहीं गए, लोगों को बड़ी शिकायत थी, इसका अंदाजा इस बात से लगा लीजिये ,पूर्व पुलिस अधिकारी असीम अरुण चुनाव प्रचार के लिए गए तो लोगों ने कहा कि चुनाव जीतने के बाद एक बार क्षेत्र जरुर आ जाईये. अपने विधायको से लोगों की अपेक्षा का स्तर ऐसा हो गया हैं. इन विधायको के निक्कमेपन की कीमत पार्टी क्यों चुकाए, जनता क्यों चुकाए, उसने पार्टी को वोट दिया इसकी कीमत उसको चुकानी पड़ेगी,बहुत से विधायको की तरफ से कहा जाता है अफसर उनकी सुनते नहीं, मुख्यमंत्री उनकी सुनते नहीं. कुछ लोग कह रहे थे इसको टिकट फिर मिल गया हैं, हम कब तक मोदी योगी के नाम पर ऐसे लोगों को ढोते रहेंगे जो कहता हैं अफसर इसकी सुनता नहीं, फिर 2017 से 2022 तक इसकी संपत्ति कई गुना बढ़ कैसे गयी, ये जब तक शुरू नहीं होगा आम जनप्रतिनिधि की संपत्तियो का ऑडिट हो, भले ही कोई आरोप न लगाये ,लेकिन क्षेत्र की जनता को पता चल जाता हैं, कौनसा जनप्रतिनिधि ईमानदार हैं, कौन पैसा कमा रहा हैं कौन नहीं, ये सिर्फ पार्टी के नेताओ को नहीं दिखता हैं. आम जनता को खूब दिखाई देता हैं और विधायकों के निक्कमेपन का असर ये होता हैं जनता में पार्टी की ही नहीं पूरी राजनीतिक व्यवथा के प्रति एक मित्रिक्ष्ना का भाव आ जाता है कि किसी को भी चुने सब वैसे ही हैं, ये जो भाव है इससे बड़ा नुकसान राजनीति का कोई भाव नहीं कर सकता हैं, मुझे लगता है सरकार बनाने जा रही रही हैं तो बीजेपी को संगठन और पार्टी के तौर पर ये सुनिश्चित करना चाहिए कि पीरियोड़ीकल मोनिटरिंग होनी चाहिए कि किस क्षेत्र में विधायक कितनी बार गया ,कितने लोगों से मिला और कितने लोगों की समस्या सुलझाई, ये व्यवस्था बननी चाहिए, ये सभी पार्टियों में होना चाहिए ,लेकिन सत्तारूढ़ दल जहाँ हैं उनकी जिम्मेदारी और ज्यादा हो जाती हैं लोग इसबात को कतई सुनाने को तैयार नही होते हैं फलाने ने नहीं सुना, फलां काम नहीं कर रहा है ,जब वो देखते हैं आपकी सम्पति दिन दोगना रात चारगुना बढ़ती जा रही हैं.

दूसरी बात एक बड़ी समस्या पुरे राजनीतिक परिदृश्य में सारे राजनीतिक दलों के सामने हैं, चलन चल पड़ा है जो सत्ता में होगा उसके कार्यकर्ता ,विधायक उनको पैसा बनाने की पूरी छुट मिलेगी, भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओ की केवल उत्तर प्रदेश में नहीं सभी जगह से ये शिकायत रहती हैं दूसरे दलों की सरकार आती हैं तो उनके कार्यकर्ता खूब कमाते हैं ,हमको वो मौका नही मिलता , तो सवाल ये है क्या सरकार आती है केवल अपने कार्यकर्ताओ को पैसा कमाने के लिए. सभी राजनीतिक दलों को जो पूर्णकालिक कार्यकर्ता है या जिन कार्यकर्ताओ से काम लिया जाता हैं उनके लिए निश्चितरूप से कोई संस्थागत व्यवस्था की जानी चाहिए,वर्ना एक ही रास्ता होता हैं दलाली का, जो भी पार्टी इसकी छूट देती हैं, दलाली का पूरा तंत्र खड़ा हो जाता है ,ये समस्या पुरे पांच साल में उत्तर प्रदेश में हुई, दलाली का तंत्र पूरी तरह से खड़ा नहीं हो पाया तो नाराजगी हैं सरकार है अपनी फिर भी नहीं चल रही हैं ,रिश्वत ,ठेका-पट्टा नहीं मिल रहा है,हमारे कहने से ट्रान्सफर पोस्टिंग नही हो रहा है, हमारी सुनी नहीं जा रही हैं, अगर बीजेपी राजनीति को सचमुच बदलना चाहती है तो बीजेपी को अपनी जीत की बड़ी निर्ममता से समीक्षा करनी चाहिए कि वो कौन लोग हैं जिन्होंने पार्टी को पीछे खीचने की कोशिश की,यदि  चुनाव से कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री जिस तरह से पूरी ताकत से कूदे, जिसतरह से बनारस की सभा से ये सन्देश दिया मुख्यमंत्री योगी पर उनका विश्वास कायम है और पार्टी का भी विश्वास कायम है कोई बदलाव नही होने जा रहा हैं ,लखनऊ में जो दो तस्वीरे आई मुख्यमंत्री के कंधे पर हाथ रखकर प्रधानमंत्री मोदी चल रहे थे उसने इस आग को बुझाने का काम किया ,फिर गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी जिस उर्जा के साथ मैदान में कूदे और योगी के साथ मिलकर पूरी ताकत लगा दी थी, वर्ना संगठन के कुछ लोग जो विघ्नसंतोषी हैं वो कामयाब हो सकते थे ,मुझे लगता है तब भी नही होते, हालांकि सीटे कम हो गयी ,40-45 सीटे और आनी चाहिए थी ,ये बदलाव की इच्छा रखने वालो या सपा की मजबूत स्तिथि के कारण नहीं हुया हैं, ये हुआ संगठन की अकर्मणता से ,मैं इससे ज्यादा कडा शब्द इस्तेमाल नही करना चाहता ,निश्चित तौर से आप बीजेपी के कार्यकर्ता और नेताओ से बात कर लीजिये आपको बहुत से किस्से सुनाने को मिल जायेगे, फलां का टिकट काट रहा था ,कैसे बच गया.

अनुपमा जायसवाल को भ्रष्टाचार के आरोप में मंत्री पद से हटाया गया था उसको टिकट कैसे मिल गया ,बहुत से ऐसे विधायकों को जनता ने आँख बंद करके जीत जाने दिया ,जनता ने कहा इनको मत देखो मोदी और योगी को देखो, लेकिन बहुत सी जगह लोगों में पीड़ा तकलीफ इतनी ज्यादा भरी पड़ी थी, लोगों को लगा कि नहीं अगर इसको जीताया तो इसका गलत सन्देश जायेगा ,बीजेपी की जो सीटे नहीं आई हैं उसका कारण हैं बीजेपी के विधायको के प्रति एंटी इनकम्बेसी, जिसका सीधा मतलब हैं उनका निक्कमापन ,जिन्होंने काम किया अपने क्षेत्र में जाते रहे उनको दिक्कत नही हुई ,निक्कमे विधायक वो लोग हैं जो पार्टी पर बोझ होते हैं जो पार्टी को मुश्किल में डालते हैं , बीजेपी को नई परिपाटी शुरू करनी चाहिए वो है जीत की समीक्षा, कमियां कहाँ रह गयी, क्या और भी बेहतर हो सकता था ,इसलिए लिए जबाबदेही और जिम्मेदारी भी तय की जानी चाहिए.

अभिषेक कुमार (@abhishekkumar, Journalist & Election-Political Analyst), यह लेख लेखक का निजी विचार है.

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