कब है पापमोचनी एकादशी, पांच शुभ योग में करें व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, मंत्र, पारण का समय, महत्व और व्रत कथा

18 मार्च को चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की पापमोचिनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) है. इस तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने का महत्व है. ये एकादशी वसंत ऋतु के दौरान आती है इसलिए इस दिन खासतौर से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने का भी विधान है. श्रीकृष्ण के कहने पर सबसे पहले ये व्रत के बारे में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था.

इस दिन तिथि, वार, नक्षत्र और ग्रहों से मिलकर चार शुभ योग बन रहे हैं. इस संयोग में व्रत और दान करने से मिलने वाला पुण्य अक्षय हो जाएगा. पुराणों में इस एकादशी को पापमोचिनी एकादशी भी कहा गया है. इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की पूजा करने से जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप और दोष खत्म होते हैं.

पांच शुभ योगों वाला दिन
18 मार्च को चंद्रमा अपने ही नक्षत्र में रहेगा. चंद्रमा के साथ श्रवण नक्षत्र के स्वामी भगवान विष्णु भी है. इसलिए ये एकादशी व्रत और भी खास हो जाएगा. इस दिन की तिथि और ग्रह-नक्षत्र से सर्वार्थसिद्धि, शिव और स्थिर योग बन रहे हैं. इनके अलावा गुरु के अपनी ही राशि यानी मीन में होने से हंस नाम का महापुरुष योग बनेगा. वहीं, सूर्य और बुध की युति से बुधादित्य नाम का शुभ योग भी बन रहा है. सितारों की इस शुभ स्थिति में किया गया दान और व्रत अक्षय पुण्य देने वाला रहेगा.

पापमोचनी एकादशी 2023 मुहूर्त 

चैत्र कृष्ण एकादशी तिथि शुरू – 17 मार्च 2023, रात02.06

चैत्र कृष्ण एकादशी तिथि समाप्त – 18 मार्च 2023, सुबह 11.13

व्रत पारण समय – 19 मार्च 2023,सुबह 06.27 – 08.07

पूजा का मुहूर्त – सुबह 07:58 – सुबह 09:29

पापमोचनी एकादशी 2023 शुभ योग

  • द्विपुष्कर योग – प्रात: 12 बजकर 29 – सुबह 06 बजकर 27 (19 मार्च 2023)
  • सर्वार्थ सिद्धि योग – 18 मार्च, सुबह 06 बजकर 28 – 19 मार्च, प्रात: 12 बजकर 29
  • शिव योग – 17 मार्च, प्रात: 03 बजकर 33 – 18 मार्च, रात 11 बजकर 54

पापमोचनी एकादशी पूजा विधि

पद्मपुराण में वर्णित कथाओं में एकादशी को भगवान श्रीहरि विष्णु का ही स्वरूप माना जाता है. माना जाता है कि इस दिन जातक के द्वारा व्रत रखने पर उन्हें सांसारिक सुख मिलता है. पापमोचनी एकादशी के दिन व्रत रखने से ब्रह्महत्या, सुवर्ण चोरी, सुरापान जैसे पापों से मुक्ति मिलती है. पापमोचनी एकादशी व्रत के दिन निर्जल या फलाहारी व्रत रखें और सुबह शुभ मुहूर्त में हल्दी, चंदन, तुलसी अर्पित करें और फिर ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का एक माला जाप करें. मान्यता है इस विधि से पूजा करने पर धन की कमी नहीं होती.

पापमोचनी एकादशी मंत्र (Papmochani Ekadashi Mantra)

  • ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
  •  श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
  • ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
  • ॐ विष्णवे नम:
  • ॐ हूं विष्णवे नम:

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
एक समय की बात है. चित्ररथ नामक वन में देवराज इंद्र देवताओं और गंधर्व कन्याओं के साथ घूम रहे थे. उस वन में ही मेधावी नाम के ऋषि तपस्या कर रहे थे. वे भगवान शिव की पूजा करने वाले उपासक थे. एक बार कामदेव ने उस ऋषि की तपस्या को भंग करने के लिए मंजुघोषा नामक अप्सरा को उस वन में भेजा.

मेधावी ऋषि युवा थे, वे उस अप्सरा के नृत्य, संगीत और रूप पर मोहित हो गए. वे दोनों रति क्रीड़ा में लीन हो गए. ऐसे उनके जीवन के 57 साल बीत गए. एक दिन मंजुघोषा ने मेधावी ऋषि से वापस देव लोक जाने की अनुमति मांगी. तब मेधावी ऋषि को ध्यान आया कि वे तो वन में तपस्या करने आए थे और इस अप्सरा के कारण वे पथ से विचलित हो गए.

मेधावी ऋषि ने क्रोध में अप्सरा मंजुघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया. उसके बाद मंजुघोषा ने इस श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा तो उन्होंने कहा कि पापमोचनी एकादशी का व्रत विधि विधान से करने पर पाप से मुक्ति मिलेगी और तुम पिशाच योनि से मुक्त हो जाओगी. इतना कहकर मेधावी ऋषि अपने पिता के आश्रम में चले गए.

जब पिता को इस बात की जानकारी हुई तो वे क्रोधित हुए और उन्होंने मेधावी ऋषि को भी पापमोचनी एकादशी व्रत रखने का आदेश दिया. जब चैत्र कृष्ण एकादशी तिथि आई तो मंजुघोषा ने विधि विधान से पापमोचनी एकादशी व्रत रखा और भगवान विष्णु की पूजा की. इस व्रत के पुण्य प्रभाव से मंजुघोषा पिशाच योनि से मुक्त हो गई और फिर से वह स्वर्ग लोक को चली गई. मेधावी ऋषि ने भी व्रत रखा और वे अपने पापों से मुक्त हो गए. इस प्रकार से जो भी व्यक्ति पापमोचनी एकादशी व्रत रखता है, उसके सारे पाप धुल जाते हैं और वह पाप मुक्त हो जाता है.

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