मुगल आक्रांताओं द्वारा कब्जाए गए हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को उन्हें फिर से वापस दिया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर हुई है जिसमें ‘द प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ (The Place of Worship Act 1991) को खत्म करने की मांग की गई है. यह याचिका बीजेपी नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने दाखिल की है. उपाध्याय ने पूजा स्थल कानून को भेदभावपूर्ण और मौलिक अधिकारों का हनन बताया है. बता दें कि यह एक्ट कांग्रेस सरकार में बना था, जो कि काशी-मथुरा जैसे तमाम मामलों में हिंदुओं को उनके मंदिर वापस दिलाने की राह में रूकावट है, अगर कोर्ट ने इसे अवैध घोषित कर दिया तो बहुसंख्यक वर्ग को उनके धार्मिक स्थल वापस मिल जाएंगे.
अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में पूजा स्थल कानून को धारा 2,3,4 को संविधान का उल्लंघन बताते हुए रद्द करने की मांग की है. याचिका में कहा गया है कि इस कानून में अयोध्या में राम जन्मस्थान को छोड़ दिया गया, जबकि मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान को नहीं छोड़ा गया, ये दोनों विष्णु का अवतार हैं. यह भी कहा गया है कि केन्द्र सरकार को यह कानून बनाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि संविधान मे तीर्थस्थल राज्य का विषय है. इतना ही नहीं, पब्लिक आर्डर भी राज्य का विषय है, इसलिए केन्द्र ने इस पर कानून बनाकर क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण किया है.
उपाध्याय ने अपनी याचिका में मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट एतिहासिक तथ्यों, अंतर्राष्ट्रीय संधियों, कानूनी प्रावधानों तथा हिन्दू, जैन बौद्ध व सिखों के अधिकारों को संरक्षित करते हुए उनके धार्मिक स्थलों को पुर्नस्थापित करे. मांग है कि कोर्ट पूजा स्थल कानून की धारा 2,3 व 4 को संविधान के अनुच्छेद 14,15,21,25,26 और 29 का उल्लंघन घोषित करते हुए रद करे, क्योंकि इन प्रावधानों में क्रूर आक्रमणकारियों द्वारा गैरकानूनी रूप स्थापित किये गये पूजा स्थलों को कानूनी मान्यता दी गई है.
याचिकाकर्ता के मुताबिक केन्द्र ने 11 जुलाई 1991 को इस कानून को लागू किया, जिसमें मनमाने और अतार्किक ढंग से पूर्ववर्ती तिथि से कटऑफ डेट तय करते हुए घोषित कर दिया कि पूजा स्थलों और तीर्थस्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को थी वही रहेगी. उपाध्याय का कहना है कि केन्द्र न तो कानून को पूर्व तिथि से लागू कर सकता है और न ही लोगों को ज्युडिशियल रेमेडी से वंचित कर सकता है. केन्द्र लोगों के लिए कोर्ट के दरवाजे नहीं बंद कर सकता.
उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि तीर्थस्थल राज्य का विषय है. यह संविधान की सातवीं अनुसूची की दूसरी सूची का विषय है. इसलिए केन्द्र को ये कानून बनाने का अधिकार नहीं है. केन्द्र ने क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण किया है. याचिकाकर्ता का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर 2019 को अयोध्या विवाद में फैसला सुनाया. कोर्ट ने हिन्दुओं के दावे में सार पाया. अगर अयोध्या का फैसला नहीं आता, तो हिन्दुओं को न्याय नहीं मिलता. इसलिए कानून में कोर्ट जाने से प्रतिबंधित करना गलत और कानून के शासन के सिद्धांत के खिलाफ है.
कानून की अवैधता को लेकर ये है दलील
- याचिका में कहा गया कि यह कानून अनुच्छेद 25 के तहत हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिखों को धर्म के पालन और उसके प्रचार के मिले अधिकार को बाधित करता है.
- अनुच्छेद 26 में मिले धार्मिक स्थलों के प्रबंधन के अधिकार को बाधित करता है.
- यह कानून हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिखों को भगवान की संपत्ति और धार्मिक संपत्ति को रखने के अधिकार को बाधित करता है.
- अदालत के जरिये अपने धार्मिक स्थलों और तीर्थों को वापस पाने के अधिकार से वंचित करता है.
- यह कानून हिन्दू, सिख, बौद्ध और जैन को अपने पूजा स्थलों और तीर्थों का कब्जा वापस पाने से वंचित करता है, जबकि मुसलमानों को वक्फ कानून की धारा 7 के तहत ऐसा अधिकार देता है.
- यह कानून आक्रमणकारियों के कामों को कानूनी मान्यता देता है.
- हिन्दू लॉ के सिद्धांत कि मंदिर की संपत्ति कभी समाप्त नहीं होती चाहे बाहरी व्यक्ति वर्षों उसका उपयोग क्यों न करता रहा हो, भगवान न्यायिक व्यक्ति होते है, का उल्लंघन करता है.
वसीम रिजवी ने सौंपी 9 मंदिरों की सूची जिन्हें तोड़कर बनी मस्जिद
बता दें कि हाल ही में शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीन रिजवी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इसी वर्शिप एक्ट को खत्म करने की मांग की है. रिजवी ने पीएम को उन 9 मंदिरों की सूची भी सौंपी जिन्हें तोड़कर वहां मस्जिद बनाई गई है. रिजवी ने उन्होंने पत्र में लिखा जिन मंदिरों को तोड़कर मस्जिदों को निर्माण किया गया वे हैं केशव देव मंदिर मथुरा, अटाला देव मंदिर जौनपुर, काशी विश्वनाथ वाराणसी, रुद्रा महालया मन्दिर गुजरात, भद्रकाली मन्दिर गुजरात, अदीना मस्जिद बंगाल, विजया मन्दिर विदिशा मध्य प्रदेश और मस्जिद कुवतुल इस्लाम कुतुब मीनार शामिल हैं.
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