अब EVM में चुनाव चिन्ह की जगह होगा प्रत्याशी का नाम और योग्यता!

अगर कल को आप वोट डालने जाएं औऱ वोटिंग मशीन पर आपको राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह की जगह प्रत्याशियों के नाम व उनकी योग्यता अंकित मिल जाए तो हैरान मत होइएगा. देश में चुनावों कराने के पैटर्न पर बहुत जल्द ही बड़ा देखने को मिल सकता है. दरअसल बीजेपी नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दायर कर ईवीएम (EVM) से पार्टी सिंबल हटाने की मांग की है. वहीं इसकी जगह पर प्रत्याशी का नाम और उसकी योग्यता लिखने को कहा गया है. उपाध्याय ने ऐसा करने के पीछे 10 बड़े लाभ भी गिनाए हैं.


अश्वनी उपाध्याय का कहना है कि जब एक साफ-सुथरी छवि का प्रत्याशी निर्दलीय चुनाव लड़ता है और दूसरी तरफ कोई दागी प्रत्याशी किसी बड़े दल के सिंबल से चुनाव लड़ता है तो समान प्रतियोगिता नहीं हो पाती. यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है. सिंबल के कारण दागी प्रत्याशियों को भारी तादाद में ऐसे लोगों को वोट मिल जाता है, जो उसके चाल-चरित्र से वाकिफ नहीं होते. ऐसे में चुनाव चिन्ह हटाने से पार्टी देखकर नहीं बल्कि व्यक्ति देखकर लोग वोट देंगे.


भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय ने याचिका में कहा है कि जब उन्हें एडीआर की रिपोर्ट से पता चला कि इस वक्त 43 प्रतिशत सांसद आपराधिक पृष्ठिभूमि के हैं तो उन्होंने ऐसे लोगों के जीतने के कारणों की पड़ताल की. पता चला कि बड़ी पार्टियों के टिकट हथिया लेने के कारण उनके समर्थकों के एकमुश्त वोट से दागी प्रत्याशी जीत गए. अश्वनी उपाध्याय ने कहा कि भारत का लोकतंत्र सात तरह के संकटों से जूझ रहा है. करप्शन, क्रिमिनलाइजेशन, जातिवाद, संप्रदायवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद और भाई-भतीजावाद से तभी मुक्ति मिलेगी, जब राजनीति में सुधार होगा. इसके लिए ईवीएम से चुनाव चिह्न् हटना जरूरी है.


ईवीएम से पार्टी सिंबल हटने के 10 लाभ

1- इससे वोटर्स को बुद्धिमान और ईमानदार जनप्रतिनिधियों को चुनने में मदद मिलेगी.

2- बगैर चुनाव चिह्न के ईवीएम और बैलट से चुनाव होने पर न केवल जातिवाद और सांप्रदायवाद की समस्या खत्म होगी, बल्कि लोकतंत्र में कालेधन का इस्तेमाल भी रुकेगा.

3- इससे पार्टियों की तानाशाही रुकेगी. टिकट बंटवारे में खेल नहीं होगा. पार्टी प्रमुख, उन उम्मीदवारों को टिकट देने को मजबूर होंगे, जिनकी क्षेत्र में अच्छी पहचान होगी.

4- चुनाव चिह्न के धंधे पर रोक लगेगी. इससे देश का लोकतंत्र राजनीतिक दलों के प्रमुखों का निजी जागीर नहीं बनेगा.

5- बैलट और ईवीएम पर पार्टी सिंबल न होने से राजनीति का अपराधीकरण रुकेगा. टिकट दिलाने में सत्ता के दलालों पर अंकुश लगेगा.

6- सिंबल व्यवस्था बेअसर होने से अच्छे समाजिक कार्यकर्ताओं और ईमानदारों लोगों का राजनीति में आना आसान हो जाएगा.

7- अच्छे, कर्मठ और ईमानदार जनप्रतिनिधियों के संसद और विधानसभाओं में जाने से जनहित में अच्छे कानूनों का निर्माण संभव होगा.

8- ईमानदार सांसद, जब संसद में पहुंचेंगे तो सांसद निधि का सही तरह से इस्तेमाल करेंगे.

9- इससे भाषावाद और क्षेत्रवाद पर भी अंकुश लगेगा जो कि लोकतांत्रिक राजनीति के लिए सबसे बड़ा खतरा है.

10- अगर सही लोग चुनकर सदन में पहुंचेंगे तो देश में लंबे समय से लंबित इलेक्शन रिफार्म, जुडिशियल रिफार्म, एजूकेशन रिफार्म, प्रशासनिक सुधार आदि जल्द से जल्द हो सकेगा.


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