कानपुर: पैसा आता रहा, ब्रिटिशकाल में बनी बिल्डिंग की मरम्मत नहीं हुई, सिपाही दबकर मर गया, लेकिन जिम्मेदार कोई नहीं, बैरक से भी ज्यादा कमजोर निकली जांच

कुछ दिन पहले ही कानपुर पुलिस लाइन की एक जर्जर बैरक का लेंटर पुलिसकर्मियों पर गिर पड़ा था। इस हादसे में एक सिपाही की मौत हुई तो कई घायल हुए थे। जिसके बाद मामले में जांच के आदेश दिए गए थे। जिसकी रिपोर्ट अब सा चुकी है। इस जांच में किसी को दोषी नहीं बनाया। रिपोर्ट में ये कहा गया है कि बिल्डिंग जर्जर अवस्था में थी इसीलिए गिरी। इसमें कोई दोषी नहीं है।


उठ रहे सवाल

बता दें पुलिस लाइन में हुए हादसे के बाद इसकी जान एसपी पश्चिमी को सौंपी गई थी। जिसके बाद एसपी पश्चिमी मामले में जांच कर रहे थे। जांच में पीडब्ल्यूडी के विशेषज्ञों को भी शामिल किया था। जिसके आधार पर जांच की गई। अब इसकी रिपोर्ट तैयार हो गई है। इस रिपोर्ट में बिल्डिंग को 105 साल पुराना बताया। रिपोर्ट के आने के बाद से सवाल उठ रहे हैं कि अगर ऐसा था तो पुलिसकर्मियों को मौत के साये में क्यों रखा गया था? पुलिस लाइन की रिपेयरिंग के लिए हर साल फंड आता है। उस फंड से मरम्मत क्यों नहीं की गई? और मरम्मत की गई तो दोषियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? अगर बिल्डिंग कंडम थी तो उसे समय रहते कंडम घोषित क्यों नहीं किया गया?


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दैनिक जागरण की खबर की मानें तो कुछ सवाल हैं जिनके जबाव ना ढूंढ़ते हुए पुलिसकर्मियों को बचाया गया है। जिसमे जर्जर बिल्डिंग में पुलिसकर्मियों को किसने रखा? बिल्डिंग की मरम्मत कराने की जिम्मेदारी किसकी है? जांच में इन तथ्यों को शामिल ही नहीं किया गया। अगर जांच में ये तथ्य शामिल होते तो दोषी भी आसानी से मिल जाते।


ये था मामला

कानपुर पुलिस लाइन का जर्जर बैरक 24 अगस्त को भरभरा कर पुलिसकर्मियों के ऊपर गिर पड़ा। जिसमे एक सिपाही की मौत हुई तो कई पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हुए। घायल सिपाहियों ने अब प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए शिकायत की थी। उनका कहना है कि अंग्रेजों के जमाने में बनी हुई इन बैरकों में कभी मरम्मत का काम हुआ ही नहीं, जबकि इसके लिए हर साल पैसा आता है।


सिपाहियों की मानें तो कोतवाली क्षेत्र में बनी पुलिस लाइन का निर्माण 1917-18 में हुआ था। इसके बाद से इसकी मरम्मत तक नहीं हुई। हालांकि हर साल 15 अगस्त या 26 जनवरी को रंगाई पुताई जरूरी हो जाती है। यहां रह रहे सिपाहियों ने आरोप लगाया कि जर्जर क्वार्टरों में छत का प्लास्टर गिरना, दीवार गिरना तो आम बात हो गई है। 


बता दें कि पुलिस लाइन में वर्ष 1948 में चार बैरकों का निर्माण कराया गया था। दो मंजिला चारों बैरक पुलिस लाइन की सबसे पुराने इमारतों में हैं। इनमें से बैरक नंबर एक बेहद जर्जर हालत में थी। बैरक के हाल के अलावा सिपाही यहां के बरामदों के नीचे भी अपनी चारपाई डाले हुए हैं। बताते हैं कि इस बरसात में कमरे व बरामदे की छत से पानी चूने की शिकायतें सिपाहियों ने की थी, लेकिन पर उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया तथा उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया गया। अगर अफसर सही समय पर सिपाहियों की दिक्कत सुन लेते तो एक सिपाही की जान उस दिन बच जाती।


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