देशभर से सामने आ रहे धर्मांतरण (Conversion) के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को पत्र लिखकर राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाने की मांग की है।
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में उपाध्याय ने कहा कि देश का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था और संविधान सभा के कुछ सदस्यों को लगता था कि हिंदू बहुसंख्यक हैं इसलिए सरकार हिंदुओं के कहने पर अन्य समुदायों को अपना रीति रिवाज पालन करने से रोक देगी। इसलिए अर्टिकल 25 में सबको अपना मत पंथ मजहब और संप्रदाय के प्रचार प्रसार करने का अधिकार दिया गया।
आर्टिकल 25 पर संविधान सभा की बहस पढ़ने से स्पष्ट है कि हमें अपनी रीतियों और प्रथाओं को पालन करने का अधिकार तो है लेकिन कुरीतियों और कुप्रथाओं को जारी रखने या प्रचार प्रसार करने की इजाजत नहीं है। आर्टिकल 25 भारतीय नागरिकों को अपने मत, पंथ, मजहब और संप्रदाय का प्रचार-प्रसार करने का अधिकार देता है लेकिन साम दाम दंड भेद द्वारा धर्मांतरण की अनुमति नहीं देता है।
आर्टिकल 25 की शुरुआत ही तीन शब्दों से होती है- (1) पब्लिक आर्डर (2) हेल्थ और (3) मोरैलिटी अर्थात:
(1) कोई भी नागरिक या नागरिक संगठन या समूह अपने मत, पंथ, मजहब और संप्रदाय का पालन और प्रचार प्रसार करने के दौरान कोई ऐसा कार्य नहीं कर सकता है जिससे “पब्लिक आर्डर” खराब हो।
(2) कोई भी नागरिक या नागरिक संगठन या समूह अपने मत, पंथ, मजहब और संप्रदाय के प्रचार प्रसार के दौरान कोई ऐसा कार्य नहीं कर सकता है जिससे किसी अन्य नागरिक का “हेल्थ” खराब हो।
(3) कोई भी नागरिक या नागरिक संगठन या समूह अपने मत, पंथ, मजहब और संप्रदाय के प्रचार प्रसार के दौरान कोई ऐसा कार्य नहीं कर सकता है जो “अनैतिक” हो।
सुनियोजित तरीके से साम दाम दंड भेद द्वारा हो रहे धर्मांतरण के कारण देश में “पब्लिक आर्डर” ही खराब नहीं हो रहा है बल्कि बहुत से नागरिकों विशेष रूप से दलित शोषित और आदिवासी समुदाय के लोगों का शारीरिक मानसिक उत्पीड़न भी हो रहा है। इसके अतिरिक्त साम दाम दंड भेद द्वारा धर्मांतरण करवाना अनैतिक भी है।
संविधान के आर्टिकल 14 का दिया हवाला
भाजपा नेता ने कहा कि संविधान के आर्टिकल 14 में स्पष्ट कहा गया है कि कानून के सामने सभी नागरिक समान हैं और सभी नागरिकों को कानून का समान संरक्षण प्राप्त है।
कुछ राज्यों ने धर्मांतरण को अपराध घोषित करने के लिए कानून बना दिया है लेकिन अधिकांश राज्यों ने आजतक न तो कानून बनाया है और न तो धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की उनकी कोई मंशा है, इसलिए साम दाम दंड भेद द्वारा हो रहे धर्मांतरण के मामले में सभी नागरिकों को कानून का समान संरक्षण नहीं मिल रहा है और यह स्पष्ट रूप से आर्टिकल 14 का उल्लघंन है।
धर्मांतरण के खिलाफ राज्यों द्वारा बनाये गए कानून में सजा की एकरूपता नहीं है और उसका परिणाम यह है कि समान अपराध के लिए उत्तर प्रदेश में अलग दंड का प्रावधान है और मध्य प्रदेश में अलग दंड मिलता है। बिहार हरियाणा सहित अधिकांश राज्यों में तो साम दाम दंड भेद द्वारा धर्मांतरण करवाने वालों के लिए कोई दंड ही नहीं है। यह स्पष्ट रूप से आर्टिकल 14 का उल्लंघन है। आर्टिकल 14 के अनुसार समान अपराध के लिए पूरे देश में समान दंड मिलना चाहिए और यह एक केंद्रीय धर्मांतरण विरोधी कानून के बिना असंभव है। आर्टिकल 14 “एक देश – एक दंड संहिता” लागू करने का निर्देश देता है।
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साम दाम दंड भेद द्वारा धर्मांतरण किसी एक राज्य की समस्या नहीं है बल्कि एक गंभीर राष्ट्रीय समस्या है इसलिए इसका समाधान भी राष्ट्रीय स्तर पर ही होना चाहिए। आर्टिकल 25 भी केंद्र सरकार को कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त संविधान की सातवीं अनुसूची में भी स्पष्ट किया गया है कि जो विषय किसी तीनों सूची में नहीं है उस पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र को है और यही कारण है कि 1995 में सरला मुद्गल केस में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने का सुझाव दिया था।
धर्मांतरण को आईपीसी में घोषित किया जाए अपराध
भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि भ्रष्टाचार और अपराध के मामले में 40 केंद्रीय कानून पहले ही बन चुके हैं इसलिए साम दाम दंड भेद द्वारा धर्मांतरण को अपराध घोषित करने के लिए एक नया कानून बनाने की बजाय भारतीय दंड संहिता में ही एक नया चैप्टर जोड़ना अधिक लाभदायक और प्रभावकारी होगा।
थानेदार और हवलदार को भारतीय दंड संहिता में दर्ज अपराधों का तो ज्ञान होता है लेकिन विशेष कानूनों की जानकारी नहीं होती है। धर्मांतरण को भारतीय दंड संहिता में अपराध घोषित करने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि आम जनता भी 100 नंबर पर फोन करके पुलिस को शिकायत कर सकेगी।
इसलिए एक अलग से धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की बजाय साम दाम दंड भेद द्वारा धर्मांतरण को भारतीय दंड संहिता में ही गंभीर अपराध घोषित कर देना ज्यादा लाभकारी और प्रभावकारी होगा। भारतीय दंड संहिता का अध्याय 15 धार्मिक अपराधों से ही संबंधित है इसलिए इसी अध्याय में एक नई धारा 298A जोड़कर साम दाम दंड भेद द्वारा धर्मांतरण को गंभीर अपराध घोषित किया जा सकता है।
साम दाम दंड भेद द्वारा धर्मांतरण का खेल पूरे देश में अत्यंत सुनियोजित तरीके से कालाधन और हवाला से चल रहा है और यह मानवता के खिलाफ सबसे बड़ा अपराध है इसलिए इसमें कम से कम 10 वर्ष की सजा और न्यूनतम 10 लाख ₹ जुर्माना का प्रावधान होना चाहिए। भारतीय दंड संहिता की धारा 493 में धोखे से विवाह करने पर 10 साल की सजा का प्रावधान पहले से ही है लेकिन इसमें “धोखा” को परिभाषित नहीं किया गया है।इसी धारा के बाद एक नई धारा 493A जोड़ कर धोखे से विवाह को पूरे देश में गंभीर अपराध बनाया जा सकता है।
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पहचान छिपाकर और धोखा देकर विवाह करना भी बलात्कार के समान है इसलिए धारा 493 और 493A में भी POCSO के समान न्यूनतम 10 वर्ष की सजा का प्रावधान होना चाहिए। धर्मांतरण की फंडिंग खाड़ी देशों से हवाला के जरिये और पश्चिम देशों से FCRA के जरिये होती है। हवाला फंडिंग को कानूनी संरक्षण देने के लिए ही 2012 में FCRA कानून बनाया गया था और देश विरोधी संगठनों को आज भी बड़े पैमाने पर FCRA द्वारा फंडिंग हो रही है ।
इसलिए इसलिए आप से विनम्र निवेदन कि FCRA कानून को तत्काल समाप्त करें और मनी लॉन्ड्रिंग कानून में शतप्रतिशत संपत्ति जब्त करने तथा कम से कम 10 वर्ष की सजा का प्रावधान करने के लिए कानून मंत्रालय को निर्देश दें।
“एक देश – एक दंड संहिता” और “एक देश – एक नागरिक संहिता” पर चर्चा करने के लिए मैं आपसे व्यक्तिगत रूप से मिलना चाहता हूँ। कृपया मिलने का समय दें।
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