जानें सोमवती अमावस्या की प्रचलित कथा, इसकी पूजन विधि, महत्व और और क्या करें इस दिन

इस साल 3 2019 को सोमवती अमावस्या मनाई जा रही है. हिंदू कैलेंडर के मुताबिक सोमवार 3 जूनके दिन कई अनूठे योग बन रहे हैं. इस साल सोमवती अमावस्या के साथ ही वट सावित्री व्रत, शनि जयंती और देव पितृ कार्य अमावस्या एक साथ मनाई जाएगी. सोमवती अमावस्या पर पंच महायोग होने से पूजा-अर्चना करने पर कई प्रकार के दोष और रोग दूर होंगे. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग अमृत योग और गज केसरी योग है. सोमवती अमावस्या के दिन यदि शुभ मुहूर्त में पूजा करें तो जातकों की कुंडली के कई दोष दूर हो सकते हैं. साथ ही शनि जयंती भी इसी दिन होने से आप शनि देव की आराधना कर अपनी राशि में शनि के प्रकोप से भी बच सकते हैं और हर मनोकामना पूरी करवा सकते हैं. आइए जानते हैं कि सोमवती अमावस्या के दिन कब और कैसे पूजा करें ताकि ज्यादा से ज्यादा धर्म लाभ मिल सके.


Somvati Amavasya 2019 Vrat, Puja Vidhi सोमवती अमावस्या व्रत और पूजा विधि

सोमवती अमावस्या पर व्रत रखने का अधिक महत्व है. सुबह उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण कर मां तुलसी की पूजा करनी करें. इसके बाद अपनी इच्छानुसार दान पुण्य करें. गरीबों को भोजन का दान करने से ज्यादा पुण्य मिलेगा. सोमवती अमावस्या को मौनी अमावस्या भी कहते हैं, आप पूरे दिन मौन व्रत धारण कर भी आराधना कर सकते हैं.


Somvati Amavasya 2019: सोमवती अमावस्या का महत्व

हिंदू मान्यताओं के अनुसार सोमवती अमावस्या का दिन काफी शुभ होता है. इस दिन व्रत-उपवास रखने से जीवन में आए अशुभ योग दूर होते हैं और घर-परिवार में सुख समृद्धि आती है. इस दिन महिलाएं व्रत और उपवास रखती हैं और पीपल के पेड़ के साथ ही तुलसी के पौधे की पूजा करती हैं. हिंदू धार्मिक कथाओं में अक्सर अमावस्या की तिथि को अशुभ माना जाता है लेकिन साल में तीन बार आने वाली सोमवती अमावस्या को शुभ माना जाता है. कुंभ मेले में भी एक दिन का स्नान मौनी अमावस्या यानी सोमवती अमावस्या का होता है. हालांकि शुभ दिन होने के बावजूद इस दिन कोई शुभ कार्य शुरू नहीं करना चाहिए.


क्या करें इस दिन

ऐसा माना गया है कि पीपल के मूल में भगवान विष्णु, तने में शिवजी तथा अग्रभाग में ब्रह्माजी का निवास होता है. अत: इस दिन पीपल के पूजन से सौभाग्य की वृद्धि होती है.


* सोमवती अमावस्या के दिन पीपल की परिक्रमा करने का विधान है. उसके बाद गरीबों को भोजन कराया जाता हैं.


* सोमवती अमावस्या के दिन की यह भी मान्यता है कि इस दिन पितरों को जल देने से उन्हें तृप्ति मिलती है.

* महाभारत काल से ही पितृ विसर्जन की अमावस्या, विशेषकर सोमवती अमावस्या पर तीर्थस्थलों पर पिंडदान करने का विशेष महत्व है.

* सोमवती अमावस्या के दिन 108 बार तुलसी परिक्रमा करें.

* सोमवती अमावस्या के दिन सूर्य नारायण को जल देने से दरिद्रता दूर होती है.

* जिन लोगों की पत्रिका में चंद्रमा कमजोर है, वह जातक गाय को दही और चावल खिलाएं तो उन्हें मानसिक शांति प्राप्त होगी.

* पर्यावरण को सम्मान देने के लिए भी सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करने का विधान माना गया है.

* इसके अलावा मौन व्रत को धारण करने से पुण्य प्राप्ति होती है.


सोमवती अमावस्या का महत्त्व

1. किसी भी मास की अमावस्या यदि सोमवार को पड़ती है तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है.

2. सोमवती अमावस्या स्नान, दान के लिए शुभ और सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है. इस पर्व पर किए गए तीर्थ स्नान और दान से बहुत पुण्य मिलता है.

3. सोमवार को अमावस्या का संयोग कम ही बनता है। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि पाण्डव पूरे जीवन तरसते रहे, परंतु उनके जीवन में सोमवती अमावस्या नहीं आई.

4. इस दिन गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों और मथुरा एवं अन्य तीर्थों में स्नान, गौदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, वस्त्र, स्वर्ण आदि दान का विशेष महत्त्व माना गया है.

5. निर्णय सिंधु ग्रंथ में बताया गया है कि इस दिन स्नान-दान और ब्राह्मण भोजन करवाने से हजारों गायों के दान का पुण्य फल प्राप्त होता है.

6. सोमवार चंद्रमा का दिन हैं. इस दिन (प्रत्येक अमावस्या को) सूर्य तथा चंद्र एक ही राशि में स्थित रहते हैं. इसलिए यह पर्व विशेष पुण्य देने वाला होता है.


जानें सोमवती अमावस्या की प्रचलित कथा


एक गरीब ब्राह्मण परिवार था. उस परिवार में पति-पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी. वह पुत्री धीरे-धीरे बड़ी होने लगी. उस पुत्री में समय और बढ़ती उम्र के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था. वह लड़की सुंदर, संस्कारवान एवं गुणवान थी. किंतु गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था.


एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज पधारें. वो उस कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए. कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधु ने कहा कि इस कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है.


तब ब्राह्मण दम्पति ने साधु से उपाय पूछा, कि कन्या ऐसा क्या करें कि उसके हाथ में विवाह योग बन जाए. साधु ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धोबिन जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो बहुत ही आचार-विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है. यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिंदूर लगा दें, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है.


साधु ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती-जाती नहीं है. यह बात सुनकर ब्रह्मणि ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने की बात कही. अगल दिन कन्या प्रात: काल ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, साफ-सफाई और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती.


एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि- तुम तो सुबह ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता. बहू ने कहा- मां जी, मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम खुद ही खत्म कर लेती हैं. मैं तो देर से उठती हूं. इस पर दोनों सास-बहू निगरानी करने लगी कि कौन है जो सुबह ही घर का सारा काम करके चला जाता है.


कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या मुंह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है. जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं?


तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई. सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था. वह तैयार हो गई. सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे. उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा.


सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर उस कन्या की मांग में लगाया, उसका पति मर गया. उसे इस बात का पता चल गया. वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी.


उस दिन सोमवती अमावस्या थी. ब्राह्मण के घर मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकडों से 108 बार भंवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया. ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में वापस जान आ गई. धोबिन का पति वापस जीवित हो उठा.


इसीलिए सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भंवरी देता है, उसके सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है. पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है. अतः जो व्यक्ति हर अमावस्या को न कर सके, वह सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन 108 वस्तुओं कि भंवरी देकर सोना धोबिन और गौरी-गणेश का पूजन करता है, उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.



ऐसी प्रचलित परंपरा है कि पहली सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान, हल्दी, सिंदूर और सुपाड़ी की भंवरी दी जाती है. उसके बाद की सोमवती अमावस्या को अपने सामर्थ्य के हिसाब से फल, मिठाई, सुहाग सामग्री, खाने की सामग्री इत्यादि की भंवरी दी जाती है. और फिर भंवरी पर चढाया गया सामान किसी सुपात्र ब्राह्मण, ननंद या भांजे को दिया जा सकता है. यह ध्यान रखें यह भंवरी का सामान अपने गोत्र या अपने से निम्न गोत्र में दान नहीं देना चाहिए.


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