पीडीए मॉडल से सपा का मास्टरस्ट्रोक, बीजेपी का करेगी सूपड़ा साफ!

उत्तर प्रदेश में आगामी 2027 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए, समाजवादी पार्टी (सपा) ने पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (पीडीए) समुदायों को संगठित करने के लिए विशेष बैठकों का आयोजन तेज़ कर दिया है। इन बैठकों का मुख्य उद्देश्य इन समुदायों को यह बताना है कि वर्तमान सरकार ने किस प्रकार से उनके अधिकारों का हनन किया है, साथ ही चुनावी माहौल को सपा के पक्ष में मोड़ना है।

समाजवादी पार्टी (सपा) ने आगामी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को घेरने के लिए पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) रणनीति के तहत एक मजबूत योजना तैयार की है। इस रणनीति के तहत सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने हर वर्ग के नेताओं को उनकी जिम्मेदारियां सौंपते हुए लगातार जनसंपर्क और संगठनात्मक मजबूती पर जोर दिया है।

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उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है, जहां देश की लगभग 17% आबादी निवास करती है। भौगोलिक दृष्टि से, यह राज्य 240,928 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।हालांकि, राज्य की जातिगत संरचना के सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, क्योंकि 1931 के बाद से जाति आधारित जनगणना नहीं हुई है। 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) आयोजित की गई थी, लेकिन इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए।

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बिहार में हाल ही में जातिगत सर्वेक्षण के आंकड़े जारी होने के बाद, उत्तर प्रदेश में भी जातिगत जनगणना की मांग जोर पकड़ रही है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि जब लोगों को उनकी संख्या का पता चलता है, तो उनमें आत्मविश्वास और सामाजिक चेतना बढ़ती है, जिससे वे सामाजिक अन्याय के खिलाफ एकजुट होते हैं।

बसपा प्रमुख मायावती ने भी उत्तर प्रदेश में जातिगत जनगणना की मांग का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि बिहार सरकार द्वारा कराए गए जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद, उत्तर प्रदेश सरकार को भी जनभावना के अनुसार जातीय जनगणना शुरू करनी चाहिए।

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जातिगत जनगणना से विभिन्न समुदायों की वास्तविक संख्या और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता चल सकेगा, जिससे नीतिगत निर्णयों में पारदर्शिता और समावेशिता बढ़ेगी। यह वंचित समुदायों के लिए संसाधनों के समान वितरण और सकारात्मक कार्रवाई नीतियों की प्रभावशीलता की निगरानी में भी सहायक होगा।

सपा द्वारा आयोजित पीडीए बैठकों के माध्यम से, पार्टी न केवल पिछड़ा, दलित, और अल्पसंख्यक समुदायों को संगठित करने का प्रयास कर रही है, बल्कि जातिगत जनगणना की मांग को भी प्रमुखता से उठा रही है, ताकि इन समुदायों के अधिकारों की रक्षा की जा सके और उन्हें उनका उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।

input sanjay chauhan 

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