UP: स्वामी प्रसाद मौर्य ने कारसेवकों पर गोली चलवाने को बताया ‘सही फैसला’, बोले- मुलायम सिंह ने निभाया कर्तव्य

समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के वरिष्ठ नेता व पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) एक बार फिर विवादित बयान देकर सुर्खियों में आ गए हैं। कांसगंज में मीडिया से बातचीत के दौरान स्वामी प्रसाद मौर्य ने राम मंदिर आंदोलन के वक्त कारसेवकों पर गोली चलाने के तत्कालीन सपा सरकार के आदेश का बचाव किया है।

कारसेवकों को बताया अराजक तत्व

दरअसल, कासगंज जनपद के गंजडुंडवारा में बौद्ध जन जागरूकता सम्मेलन के दौरान स्वामी प्रसाद मौर्य मीडिया से बातचीत कर रहे थे। इस दौरान सपा नेता ने कारसेवकों को अराजक तत्व बताते हुए कहा कि जिस समय अयोध्या में राम मंदिर पर घटना घटी थी, बिना न्यायपालिका के किसी निर्देश के, बिना किसी आदेश के अराजक तत्वों ने जो तोड़-फोड़ की थी, उसपर तत्कालिन सरकार ने संविधान की, कानून की रक्षा के लिए उस समय जो गोली चलवाई थी वह सरकार का अपना कर्तव्य था, उन्होंने अपना कर्तव्य निभाया था।

मौर्य ने आगे कहा कि राम मंदिर का निर्माण सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हो रहा है। ये भाजपा सरकार के आदेश पर नहीं हो रहा है। भाजपा आने वाले लोकसभा चुनाव में राम मंदिर निर्माण का लाभ उठाना चाहती है। मोदी सरकार चुनावों में जनता को मुद्दों से भटका रही है। लगातार शिक्षा का निजीकरण हो रहा है, बेरोजगारी और महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है। वहीं, प्रदेश सरकार राम मंदिर के जरिए लोगों का इन मुद्दों से ध्यान भटका रही है।

1990 में क्या हुआ था अयोध्या में…

दरअसल, 1990 में अयोध्या के हनुमान गढ़ी जा रहे कारसेवकों पर गोलियां चलवाई गईं थीं। उस वक्त उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार की थी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। उस दौरान हिंदू व साधु-संत अयोध्या जा रहे थे। उन दिनों श्रद्धालुओं की भारी भीड़ अयोध्या पहुंचने लगी थी। वहीं, प्रशासन ने अयोध्या में कर्फ्यू लगा हुआ था, जिसकी वजह से श्रद्धालुओं को प्रवेश नहीं दिया जा रहा था।

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पुलिस ने बाबरी मस्जिद के 1.5 किमी के दायरे में बैरिकेडिंग कर रखी थी। कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई थी। पहली बार 30 अक्टूबर, 1990 को कारसेवकों पर चली गोलियों में 5 लोगों की मौत हुई थी। इस घटना के बाद अयोध्या से लेकर देश का माहौल पूरी तरह से गर्मा गया था। इस गोलीकांड के दो दिनों बाद ही 2 नवंबर को हजारों कारसेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए थे। इस घटना के दो साल बाद 6 दिसंबर, 1992 में विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था।

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