Bashar Al Assad: सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद का ईरान से स्नेह दुनिया से छिपा नहीं है. राष्ट्रपति बनने के बाद से बशर का रूस और ईरान की तरफ विशेष झुकाव रहा है. लेकिन तख्ता पलट के बाद बशर ने अपने करीबी दोस्त ईरान की अपेक्षा रूस पर ज्यादा भरोसा दिखाया, और वे ईरान की जगर रूस गये. जबकि सीरिया से ईरान की दूरी महज 1900 किमी है, और सीरिया से रूस लगभग 4500 किमी दूर है.
चलिए इसे जरा समझते हैं. जब भी किसी देश का राजनयिक किसी ऐसी स्थित में आ जाता है कि उसे अपना देश को छोड़ कर किसी दूसरे देश में शरण लेनी पड़े तो सबसे पहले अपनी सुरक्षा देखता है. मतलब वो ऐसा देश चुनता है जहां वो अपने और अपने परिवार की सलामती के लिए सौ फीसदी आश्वस्त हो. इस नियम के तहत देखा जाय तो बशर ईरान में अपनी सुरक्षा को लेकर सौ फीसदी आश्वस्त नहीं थे. तो सवाल है कि आखिर क्या है सकी वजह? इसकी वजह जानने के लिए आपको जरा वैश्विक राजनीति को समझना होगा.
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पहले तो ये जान लीजिए कि तेरहान भले ही दमिश्क के करीब हो, लेकिन बशर और उनके परिवार को मास्को जैसी सुरक्षा नहीं दे सकता. वजह ये है कि ईरान अपने प्यारे मेहमान हमास के चीफ इस्माइल हानिया की अपने देश की राजधानी में भी रक्षा नहीं कर पाया था. कुछ महीने पहले तेहरान में हमास चीफ की हत्या कर दी गई थी. इसका आरोप इजराइल पर लगा था. हालांकि आज तक इजराल ने हमास चीफ की हत्या की बात को स्वीकार नहीं किया है, लेकिन दुनिया जानती है कि इतने ताकतवर तरीके से और इतने पुख्ता तकनीकी तौर पर कौन सा देश इस काम अंजाम दे सकता है.
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अब इसका दूसरा पहलू समझिए. सीरिया के मुद्दे पर तुर्की और इजराइल की जोड़ी ‘हम साथ साथ है’ वाली है. इसलिए बहुत मुमकिन है कि ईरान में बैठे बशर पर इजराइल, तुर्की के सहयोग से हमला कर दे. लेकिन वहीं इजराइल किसी भी कीमत पर रूस पर हमला नहीं करेगा, क्योंकि एक साल से युद्ध की मार झेल रहा इजराइल अपने दुश्मनों की संख्या नहीं बढ़ाना चाहेगा, खासकरे वैसे दुश्मन जो उससे ज्यादा ताकतवर हों.
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दूसरी वजह ये है कि इस समय ईरान खुद परेशानी में है. वैश्विक सूत्रों की माने तो. कुछ दिनों पहले ही खबर आई थी कि ट्रम्प सरकार ईरान के अयातुल्लाह अली खामेनेई का तख्ता पलट कराने की प्लानिंग कर रहे हैं. इस स्थिति में किसी भी सूरत में ईरान जाने की गलती नहीं करेंगे.
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