सुप्रीम कोर्ट में आज होगी ‘प्‍लेसेस ऑफ वर्शिप एक्‍ट’ पर सुनवाई, क्या है ये कानून, अयोध्‍या विवाद क्‍यों दूर रहा?

Places of worship act: आज सुप्रीम कोर्ट में 1991 के प्‍लेसेस ऑफ वर्शिप एक्‍ट (पूजा स्‍थल कानून) से संबंधित मामलों पर सुनवाई होगी। इस कानून को लेकर विभिन्न पक्षों की ओर से कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदायों को उनके पवित्र स्थलों पर दावा करने से रोकता है, जिनकी जगह पर पहले जबरन मस्जिद, दरगाह या चर्च बना दिए गए थे। उनका तर्क है कि इस कानून का अस्तित्व मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह न्याय पाने के अधिकार से वंचित करता है।

वहीं, जमीयत उलेमा हिंद की ओर से दाखिल याचिका इस कानून को बनाए रखने के पक्ष में है। जमीयत का कहना है कि इस एक्ट को प्रभावी तरीके से लागू किया जाना चाहिए, ताकि धार्मिक स्थलों पर चल रहे विवादों को शांत किया जा सके। जमीयत ने कोर्ट से इस मामले की जल्द सुनवाई की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में इस एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था, लेकिन अब तक केंद्र ने अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है।

क्या है प्‍लेसेस ऑफ वर्शिप एक्‍ट?

1990 में अयोध्‍या मुद्दे के दौरान देशभर में रथयात्रा निकाली जा रही थी, और इसके बाद 1991 में कई मंदिर-मस्जिद विवाद सामने आने लगे थे। इससे पहले 1984 में एक धर्म संसद में अयोध्‍या, मथुरा और काशी पर दावे की मांग उठी थी। इन विवादों से बचने के लिए, प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह्मा राव की कांग्रेस सरकार ने 1991 में प्‍लेसेस ऑफ वर्शिप एक्‍ट लागू किया।

इस कानून के तहत, देश में धार्मिक स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त 1947 के दिन जैसी बनाए रखने का प्रावधान किया गया। इसके अनुसार, कोई भी व्यक्ति धार्मिक स्थलों में किसी भी प्रकार का ढांचागत बदलाव नहीं कर सकता। इसका मतलब यह है कि आजादी से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी अन्य पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता।

इस एक्ट में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि 15 अगस्त 1947 के बाद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव को लेकर कोई याचिका कोर्ट में पेंडिंग है, तो उसे बंद कर दिया जाएगा।

अयोध्या विवाद और प्‍लेसेस ऑफ वर्शिप एक्‍ट

इस कानून को लागू करने से अयोध्‍या विवाद को दूर रखा गया था, क्योंकि इस पर पहले से अंग्रेजों के समय से कोर्ट में मामला चल रहा था। इसलिए यह कानून अयोध्‍या विवाद पर लागू नहीं हुआ।

कानून का उल्लंघन करने पर सजा

अगर कोई व्यक्ति इस कानून के नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसे तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है।

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