जानें क्या होता है Police Commissioner System ?, जिसे 3 और जिलों में लागू करने का प्रस्ताव हुआ पास

उत्तर प्रदेश में अब तक चार जिलों में पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम चल रहा है, पर अब योगी सरकार कानून व्यवस्था में और भी ज्यादा सुधार लाने के 3 और जिलों में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू कर दिया है. इन जिलों में प्रयागराज, आगरा और गाजियाबाद शामिल हैं. कमिश्नर प्रणाली लागू होते ही पुलिस के अधिकार बढ़ जाएंगे. किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए पुलिस को डीएम आदि अधिकारियों के फैसले के आदेश का इंतजार नहीं करना पड़ेगा. पुलिस खुद किसी भी स्थिति में फैसला लेने के लिए ज्यादा ताकतवर हो जाएगी.

क्या होती है कमिश्नर प्रणाली

जानकारी के मुताबिक, आजादी से पहले अंग्रेजों के दौर में कमिश्नर प्रणाली लागू थी, इसे आजादी के बाद भारतीय पुलिस ने अपनाया. कमिश्नर व्यवस्था में पुलिस कमिश्नर का सर्वोच्च पद होता. अंग्रेजों के जमाने में ये सिस्टम कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में हुआ करता था. इस सिस्टम में पूरी ज्यूडिशियल पावर कमिश्नर के पास होती है. यह व्यवस्था पुलिस प्रणाली अधिनियम, 1861 पर आधारित है. कमिश्नर प्रणाली लागू होते ही पुलिस के अधिकार बढ़ जाएंगे. किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए पुलिस को डीएम आदि अधिकारियों के फैसले के आदेश का इंतजार नहीं करना पड़ेगा.

इसके साथ ही पुलिस खुद किसी भी स्थिति में फैसला लेने के लिए ज्यादा ताकतवर हो जाएगी. जिले की कानून व्यवस्था से जुड़े सभी फैसलों को लेने का अधिकार कमिश्नर के पास होगा. होटल के लाइसेंस, बार के लाइसेंस, हथियार के लाइसेंस देने का अधिकार भी इसमें शामिल होगा. धरना प्रदर्शन की अनुमति देना ना देना, दंगे के दौरान लाठी चार्ज होगा या नहीं, कितना बल प्रयोग हो यह भी पुलिस ही तय करती है. जमीन की पैमाइश से लेकर जमीन संबंधी विवादों के निस्तारण का अधिकार भी पुलिस को मिल जाएगा.

अगर साधारण शब्दों में बात करें तो पुलिस कमिश्नर प्रणाली में CRPC के सारे अधिकार पुलिस कमिश्नर को मिल जाते हैं. ऐसे में कोई भी निर्णय पुलिस कमिश्नर तुरंत बिना किसी पर निर्भर रहे ले सकता है. जबकि सामान्य पुलिसिंग व्यवस्था में जिलाधिकारी (DM) के पास अधिकार होता है. यानी किसी भी फैसले जैसे तबादला, दंगे जैसी स्थिति में लाठी चार्ज या फायरिंग करने के लिए जिलाधिकारी से अनुमति लेनी पड़ती है. सामान्य पुलिसिंग व्यवस्था में CRPC जिलाधिकारी को कानून-व्यवस्था बरकरार रखने के लिए कई शक्तियां प्रदान करता है. ऐसे में कमिश्नरी व्यवस्था में पुलिस तुरंत कार्रवाई कर सकती है क्योंकि इस व्यवस्था में जिले की बागडोर संभालने वाले आईएएस अफसर डीएम की जगह पॉवर कमिश्नर के पास चली जाती है.

पुलिस कमिश्नर का होता है सर्वोच्च पद

बता दें कि इस प्रणाली में सबसे पहले पुलिस आयुक्त, फिर आईजी रैंक का संयुक्त पुलिस आयुक्त (JCP) या डीआईजी रैंक का अपर पुलिस आयुक्त का पद होगा. अपराध और कानून व्यवस्था के लिए अलग-अलग संयुक्त पुलिस आयुक्त या अपर पुलिस आयुक्त होंगे. एक कमिश्नरेट में संयुक्त पुलिस आयुक्त या अपर पुलिस आयुक्त ही तैनात किए जाएंगे. कमिश्नरेट को अलग-अलग जोन में बांटा जाएगा. हर जोन में एसपी रैंक का एक पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) और एक अपर पुलिस उपायुक्त (एडीसीपी) एडीशनल एसपी रैंक का पद होगा. सर्किल और थाने की व्यवस्था पूर्व की तरह रहेगी. सर्किल में बैठने वाले अधिकारी का पद नाम सीओ के स्थान पर सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) होगा.

इसलिए लिया गया फैसला

प्रदेश के चार जिलों लखनऊ, कानपुर, वाराणसी और नोएडा में यह व्यवस्था लागू थी। वहीं, अब यूपी के कुल 7 शहर इस व्यवस्था के दायरे में आ गए हैं। इस संबंध में डीजीपी मुख्यालय का प्रस्ताव पहले से ही गृह विभाग के पास विचाराधीन था।

प्रयागराज जनपद में साल 2025 में महाकुंभ का आयोजन होना है। यहां हाईकोर्ट भी है। यही वजह है कि प्रयागराज जिला काफी मायने रखता है। वहीं, गाजियाबाद जिला और दुनिया भर के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र आगरा को भी खासी अहमियत दी जाती है। इन दोनों जिलों में कानून व्यवस्था को और दुरुस्त कर प्रदेश की छवि में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। गाजियाबाद जिला निवेशकों की पसंद भी है।

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