उत्तर प्रदेश में एसआईटी की सिफारिश पर ये फैसला लिया गया है कि विकास दुबे जैसे अपराधी को पैरोल पर नहीं छोड़ा जाएगा। दरअसल, सिराफिश में एसआईटी का कहना है कि अपराधियों को किसी भी हालत में पैरोल ना दी जाए। अगर ये बाहर निकलते हैं तो जांच बाधा डाल सकते हैं। जेल में बन्द रहने से ही इनकी अपराधिक प्रकृति सुधर सकती है। जिसके चलते लोगों में भी उनका डर खत्म हो जाएगा। कानपुर केस में एसआईटी को इस मामले में सबक सिखाया है।
एसआईटी ने की सिफारिश
जानकारी के मुताबिक़, एसआईटी ने अपनी सिफारिश में कहा था कि गंभीर अपराधों में सजा पाए हुए कैदी सामाजिक जीवन में रहने लायक नहीं हैं, ऐसे में उन्हें पैरोल देने से पहले विचार किया जाना चाहिए। सिफारिश में रेप, हत्या और अन्य गंभीर मामलों में सजा काट रहे कैदियों को पैरोल नहीं देने की बात कही थी। शासन को पैरोल के संबंध में कठोर नियमावली एवं दिशा-निर्देश तत्काल जारी करने चाहिए।
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एसआईटी का मानना है कि विकास दुबे जैसे दुर्दांत अपराधियों को उनके जेल कार्यकाल के दौरान बाहर आने का अवसर नहीं प्राप्त होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी गंभीर सवाल खड़े किए थे और कहा था कि इतने गंभीर अपराधी को पैरोल कैसे मिली। जिसके बाद राज्य सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। पैरोल न मिलने से उनकी आपराधिक गतिविधियों पर रोक लग सकेगी तथा जनसामान्य में उनका भय भी तभी समाप्त हो पाएगा।
जारी किया गया आदेश
एसआईटी की सिफारिश के बाद योगी सरकार की तरफ से आदेश जारी कर दिया गया है। इस इसके लिए शासनादेश में सभी जिलाधिकारियों, पुलिस कप्तानों तथा लखनऊ एवं गौतमबुद्धनगर के पुलिस कमिश्नरों से कहा गया है कि एसआईटी की संस्तुतियों एवं केंद्रीय गृह मंत्रालय की तीन सितंबर 2020 को जारी संशोधित गाइडलाइन को देखते हुए बंदियों के पैरोल (दंड का अस्थाई निलंबन) के प्रकरणों का परीक्षण करने के बाद ही अपनी रिपोर्ट शासन को भेजी जाएं।
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