सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाले संविधान संशोधन विधेयक को आज लोकसभा में पेश किया गया. केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत सदन में इस बिल को पेश किया. लोकसभा में इस बिल पर शाम 5 बजे से बहस होगी.
बता दें कि केंद्रीय कैबिनेट ने सोमवार को सवर्ण जातियों के गरीबों के लिए शिक्षा और रोजगार में 10 प्रतिशत का आरक्षण देने का फैसला किया है. लेकिन इस फैसले को लागू करने के लिए सरकार को संविधान में संशोधन करना होगा क्योंकि प्रस्तावित आरक्षण अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) को मिल रहे आरक्षण की 50 फीसदी सीमा के अतिरिक्त होगा, यानी ‘‘आर्थिक रूप से कमजोर’’ तबकों के लिए आरक्षण लागू हो जाने पर यह आंकड़ा बढकर 60 फीसदी हो जाएगा.
इस प्रस्ताव पर अमल के लिए संविधान संशोधन विधेयक संसद से पारित कराने की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है. इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में जरूरी संशोधन करने होंगे.
विधेयक एक बार पारित हो जाने पर संविधान में संशोधन हो जाएगा और फिर सामान्य वर्गों के गरीबों को शिक्षा एवं नौकरियों में आरक्षण मिल सकेगा. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में अपने फैसले में आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा तय कर दी थी. सरकारी सूत्रों ने बताया कि प्रस्तावित संविधान संशोधन से अतिरिक्त कोटा का रास्ता साफ हो जाएगा. सरकार का कहना है कि यह आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर ऐसे लोगों को दिया जाएगा जो अभी आरक्षण का कोई लाभ नहीं ले रहे.
राजनीतिक लिहाज से देखें तो इसे मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है. क्योंकि यह बिल सदन से पास होता है तो बीजेपी को फायदा और अगर नहीं पास होता है इस सूरत में भी जानकार बीजेपी का ही फायदा बता रहे हैं. विपक्ष के लिए भी सवर्णों आरक्षण का विरोध करना आसान नहीं होगा क्योंकि देश कि कई सीटें ऐसी है जहाँ सवर्ण समाज की बड़ी हिस्सेदारी है. वहीं उत्तर प्रदेश में तो करीब 40 सीटों पर सवर्ण समाज का वोट निर्णायक भूमिका में रहता है.
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