देश में संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को हटाने की बहस एक बार फिर तेज हो गई है। इस बार केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ने भी इस मुद्दे पर खुलकर अपनी राय रखी है। उन्होंने कहा कि भारत की सांस्कृतिक जड़ें ‘सर्वधर्म समभाव’ में निहित हैं, न कि धर्मनिरपेक्षता (Secularism) में। उनका मानना है कि यह शब्द देश की परंपरा का हिस्सा नहीं है और इसे इमरजेंसी के दौरान राजनीतिक कारणों से जोड़ा गया था, उसकी समीक्षा होनी चाहिए।
भारतीय विचारधारा का दिया हवाला
शिवराज सिंह चौहान ने भारतीय विचारधारा का हवाला देते हुए कहा कि ‘एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति’, ‘वसुधैव कुटुंबकम’, ‘सियाराम मय सब जग जानी’ जैसे श्लोक यह दर्शाते हैं कि भारत सदा से विविध मतों और उपासना पद्धतियों का सम्मान करता रहा है। उन्होंने बताया कि ‘मुंडे-मुंडे मते भिन्ना’ जिसका मतलब होता है हर व्यक्ति की अपनी सोच होती है या सबकी राय अलग-अलग होती ह। और यही अवधारणाएं हमारी संस्कृति की पहचान हैं, जो विभिन्न विचारों का सम्मान करना सिखाती हैं। उनके अनुसार, संविधान में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को जोड़ना हमारी मूल परंपरा के साथ न्याय नहीं करता।
कांग्रेस ने जताई कड़ी आपत्ति
RSS का नक़ाब फिर से उतर गया।
संविधान इन्हें चुभता है क्योंकि वो समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है।
RSS-BJP को संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहिए। ये बहुजनों और ग़रीबों से उनके अधिकार छीनकर उन्हें दोबारा ग़ुलाम बनाना चाहते हैं। संविधान जैसा ताक़तवर हथियार उनसे छीनना इनका…
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 27, 2025
शिवराज के इस बयान पर कांग्रेस (Congress) ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी ने इसे BJP और RSS की सुनियोजित साजिश करार देते हुए आरोप लगाया कि ये संगठन बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस का कहना है कि धर्मनिरपेक्षता संविधान की आत्मा है और इसे हटाने की कोई भी कोशिश देश की लोकतांत्रिक नींव को चोट पहुंचाने वाली होगी। पार्टी ने कहा कि वह संविधान की रक्षा के लिए हर कीमत पर संघर्ष करेगी।
RSS नेता की टिप्पणी से शुरू हुई बहस
इस पूरे विवाद की शुरुआत RSS के वरिष्ठ पदाधिकारी दत्तात्रेय होसबोले के बयान से हुई, जिसमें उन्होंने ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवाद’ शब्दों को संविधान में जोड़ने पर पुनर्विचार की जरूरत बताई थी। उन्होंने कहा था कि ये शब्द संविधान के मूल स्वरूप का हिस्सा नहीं थे और इमरजेंसी के दौरान राजनीतिक उद्देश्यों से इन्हें शामिल किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट पहले ही कर चुका है खारिज
गौरतलब है कि यह मुद्दा पहले भी न्यायालय के समक्ष उठाया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान से ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया था कि 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से वर्ष 1976 में जोड़े गए ये शब्द संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न हिस्सा हैं। न्यायालय ने दो टूक कहा कि इन्हें हटाया नहीं जा सकता।