देवशयनी एकादशी आज, अगले 148 दिन तक योग निद्रा में रहेंगे भगवान विष्णु, महादेव संभालेंगे कार्यभार, पढ़ें पूजा विधि व व्रत कथा

देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) भगवान विष्णु के विश्राम काल आरंभ के समय को बोला जाता है. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं. देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु का शयनकाल प्रारम्भ हो जाता है इसीलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं. देवशयनी एकादशी प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा के तुरंत बाद आती है. इस साल देवशयनी एकादशी 01 जुलाई 2020 को पड़ रही है.


मान्यता है कि भगवान विष्णु आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को विश्राम में चले जाते हैं, इसे देवशयनी एकादशी की संज्ञा दी गई है. इस बीच कोई भी शुभ काम करने से परहेज करना चाहिए. जब तक जगत के पालनहार भगवान विष्णु निद्रा में लीन रहते हैं तब तक भगवान शिव और अन्य देवी देवता सृष्टि का संचालन करते हैं. विष्णु भगवान जब चार महीने बाद यानी कि देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन जब जागते हैं तो माना जाता है देवी देवता स्वर्ग से पुष्प वर्षा करते हैं और खुशियां मनाते हैं. इस दौरान लोग मांगलिक कार्यों को करने पर जोर देते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस समय किए गए काम शुभ फलदायी होते हैं. देवउठनी एकादशी को देव दिवाली भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन सभी देवी-देवता भगवान विष्णु के जागने की ख़ुशी में धरती पर आकर दिवाली का जश्न मनाते हैं.


देवशयनी एकादशी की व्रत कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत काल में धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा- हे केशव! आषाढ़ शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत के करने की विधि क्या है और किस देवता का पूजन किया जाता है? श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था वही मैं तुमसे कहता हूं. एक समय नारजी ने ब्रह्माजी से यही प्रश्न किया था.


तब ब्रह्माजी ने उत्तर दिया कि हे नारद तुमने कलियुगी जीवों के उद्धार के लिए बहुत उत्तम प्रश्न किया है. क्योंकि देवशयनी एकादशी का व्रत सब व्रतों में उत्तम है. इस व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और जो मनुष्य इस व्रत को नहीं करते वे नरकगामी होते हैं.
इस व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. इस एकादशी का नाम पद्मा है. अब मैं तुमसे एक पौराणिक कथा कहता हूं. तुम मन लगाकर सुनो. सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ है, जो सत्यवादी और महान प्रतापी था. वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया करता था. उसकी सारी प्रजा धनधान्य से भरपूर और सुखी थी. उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था.


एक समय उस राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया. प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यंत दुखी हो गई. अन्न के न होने से राज्य में यज्ञादि भी बंद हो गए. एक दिन प्रजा राजा के पास जाकर कहने लगी कि हे राजा! सारी प्रजा त्राहि-त्राहि पुकार रही है, क्योंकि समस्त विश्व की सृष्टि का कारण वर्षा है.


वर्षा के अभाव से अकाल पड़ गया है और अकाल से प्रजा मर रही है. इसलिए हे राजन! कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे प्रजा का कष्ट दूर हो. राजा मांधाता कहने लगे कि आप लोग ठीक कह रहे हैं, वर्षा से ही अन्न उत्पन्न होता है और आप लोग वर्षा न होने से अत्यंत दुखी हो गए हैं. मैं आप लोगों के दुखों को समझता हूं. ऐसा कहकर राजा कुछ सेना साथ लेकर वन की तरफ चल दिया. वह अनेक ऋषियों के आश्रम में भ्रमण करता हुआ अंत में ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचा. वहां राजा ने घोड़े से उतरकर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया.


मुनि ने राजा को आशीर्वाद देकर कुशलक्षेम के पश्चात उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा. राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहा कि हे भगवन! सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है. इससे प्रजा अत्यंत दुखी है. राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट होता है, ऐसा शास्त्रों में कहा है. जब मैं धर्मानुसार राज्य करता हूं तो मेरे राज्य में अकाल कैसे पड़ गया? इसके कारण का पता मुझको अभी तक नहीं चल सका.


अब मैं आपके पास इसी संदेह को निवृत्त कराने के लिए आया हूं. कृपा करके मेरे इस संदेह को दूर कीजिए. साथ ही प्रजा के कष्ट को दूर करने का कोई उपाय बताइए. इतनी बात सुनकर ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यह सतयुग सब युगों में उत्तम है. इसमें धर्म को चारों चरण सम्मिलित हैं अर्थात इस युग में धर्म की सबसे अधिक उन्नति है. लोग ब्रह्म की उपासना करते हैं और केवल ब्राह्मणों को ही वेद पढ़ने का अधिकार है. ब्राह्मण ही तपस्या करने का अधिकार रख सकते हैं, परंतु आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है. इसी दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है.


इसलिए यदि आप प्रजा का भला चाहते हो तो उस शूद्र का वध कर दो. इस पर राजा कहने लगा कि महाराज मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को किस तरह मार सकता हूं. आप इस दोष से छूटने का कोई दूसरा उपाय बताइए. तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यदि तुम अन्य उपाय जानना चाहते हो तो सुनो.


आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो. व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त उपद्रवों को नाश करने वाला है. इस एकादशी का व्रत तुम प्रजा, सेवक तथा मंत्रियों सहित करो.


मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आया और उसने विधिपूर्वक पद्मा एकादशी का व्रत किया. उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और प्रजा को सुख पहुंचा. अत: इस मास की एकादशी का व्रत सब मनुष्यों को करना चाहिए. यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को देने वाला है. इस कथा को पढ़ने और सुनने से मनुष्य के समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं.


आखिर भगवान विष्णु के शयनकाल में हमें किन बातों का विशेष ख्याल रखना चाहिए —

1. भगवान विष्णु को शयन में भेजने से पहले देवशयनी एकादशी वाले दिन उनकी विशेष पूजा-अर्चना करनी चाहिए. इस दिन व्रती को अपने आराध्य भगवान विष्णु की प्रतिमा का विधि-विधान से स्नान, पूजन और श्रृंगार करना चाहिए. इसके बाद विभिन्न मंत्रों और भजनों आदि के माध्यम से श्रीहरि की स्तुति करना चाहिए.


2. उपवास का अर्थ होता है ईश्वर के नजदीक रहना. ऐसे में यदि संभव हो तो देवशयनी एकादशी वाले दिन व्रती को अपने आराध्य भगवान श्री हरि के समीप जमीन पर सोना चाहिए.


3. स्वयं सोने से पहले भगवान विष्णु का ध्यान करके इस मंत्र का मनन करना चाहिए-
           ‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
            विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।
अर्थात हे जगन्नाथ जी! आपके निद्रा में जाने से संपूर्ण विश्व निद्रा में चला जाता है और आपके जाग जाने पर संपूर्ण विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं.


4. चार्तुमास में मीठी वाणी बोलने की कामना को पूरा करने के लिए गुड़ का, लंबी आयु और संतान सुख की प्राप्ति के लिए तेल का, शत्रुओं के नाश के लिए कड़वे तेल का, सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मीठे तेल का और स्वर्ग की कामना को पूरा करने के लिए पुष्प आदि भोगों का त्याग करना चाहिए.


5. चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु के साधक को पलंग पर सोना, पत्नी संग संबंध बनाना, झूठ बोलना, मांस—मदिरा का सेवन करना, और किसी दूसरे का दिया हुआ दही-भात का सेवन करना मना है. पूरे चार्तुमास में मूली, परवल एवं बैंगन आदि का भी त्याग करना चाहिए.


2020 में कब से शुरु होंगे शुभ कार्य?

देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शयन पर जाते ही शुभ कार्यों पर ब्रेक लग जाएंगे. इसके बाद 01 जुलाई से लेकर 24 नवंबर तक कोई शुभ मुहूर्त नहीं होगा. शादी-विवाह, जनेउ, मुंडन जैसे शुभ कार्यों के लिए लोगों को नवंबर माह की 25 तारीख तक इंतजार करना होगा. नवंबर 2020 में 25, 27, 30 और दिसंबर 2020 में 1, 6, 7 ,9 ,10 ,11 को विवाह का मुहूर्त बनेगा. इसके बाद शुभ कार्यों के लिए लोगों को 2021 के अप्रैल माह का इंतजार करना होगा. 2021 में 25 अप्रैल को पहला विवाह मुहूर्त बनेगा.


Also Read: आखिर गीता को क्यों कहा जाता है श्रीमद्भगवद्‌गीता…?


( देश और दुनिया की खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं. )