कानपुर एनकाउंटर: शहीद सिपाहियों की थी पहली पोस्टिंग, 1 महीने की बेटी के सिर से उठ गया पिता का साया

कानपुर जिले में शहीद हुए पुलिसकर्मियों को हर कोई नमन कर रहा है। पुलिसकर्मियों के परिवारजनों का रो रो कर बुरा हाल हुआ। इन शहीद पुलिसकर्मियों में कोई कुछ ही महीनों में रिटायर होने वाला था, तो कोई अपने एक महीने के बच्चे को छोड़ कर शहीद हो गया। किसी पुलिसकर्मी को तो विभाग ज्वाइन किए हुए दो ही साल हुए थे। जैसे ही मुठभेड़ में पुलिसकर्मियों के शहीद होने की खबरें सामने आईं तभी से सभी के घरों में हाहाकार मचा हुआ है।


2016 में ही देवेन्द्र मिश्र बने थे सीओ

जानकारी के मुताबिक, हिस्ट्रीशीटर को पकड़ने के दौरान मुठभेड़ में शहीद हुए सीओ बिल्हौर देवेंद्र कुमार मिश्र मार्च 2020 में सेवानिवृत्त होने वाले थे। सीओ मूलरूप से बांदा के महेबा गांव निवासी देवेंद्र के परिवार में पत्नी आस्था और दो बेटियां हैं। वर्ष 1980 में उन्हें दारोगा की तैनात मिली थी, इसके बाद वर्ष 2007 में इंस्पेक्टर से प्रोन्नत होकर 2016 में गाजियाबाद के मोदी नगर में तैनाती के दौरान क्षेत्राधिकारी हुए थे। तबादले पर शहर आए देवेंद्र मिश्रा को स्वरूप नगर सीओ बनाया गया था, इसके बाद उनका तबादला बिल्हौर हो गया था।


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एक महीने के बच्चे के सिर से उठा पिता का साया

इस मुठभेड़ में सिपाही राहुल कुमार भी शहीद हुए जोकि गाजियाबाद के मूल निवासी हैं। इनके पिता भी रिटायर्ड दारोगा हैं। गुरुवार शाम को आखिरी बार राहुल की पत्नी से फोन पर बात हुई थी। महज एक महीने पहले ही उनकी पत्नी ने एक बच्ची को जन्म दिया था। पुलिस में भर्ती होने पर 2016 बैच में ट्रेनिंग करके पहली पोस्टिंग कानपुर में हुई थी और कल्याणपुर थाने में आमद कराई थी। यहां से उनका जनवरी 2020 में बिठूर थाने हो गया था। सिपाही की मौत से उनके घर में हड़कंप मचा हुआ है।


SSP के PRO रहे दारोगा महेश

एसएसएसपी अनंतदेव तिवारी के पीआरओ रहे महेश यादव पहले भी कई चौकियों में तैनात रहे और पीआरओ से तबादले के बाद शिवराजपुर थाना प्रभारी बनाया गया था। ये 2012 बैच के दारोगा थे। ये अपने परिवार के साथ सरकारी आवास में रहते थे। इनके बड़े बेटे विवेक ने बताया कि जब पापा घर नहीं लौटे तो तीन बजे मैंने फोन किया। तब किसी और ने फोन उठाकर कहा था कि मुठभेड़ हो गई है। उसके बाद सीधा शहीद होने की खबर अाई।


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परिजनों का हुआ बुरा हाल

अगर दारोगा अनूप कुमार सिंह की बात करें तो उन की गिनती तेज तर्रार पुलिस जवानों में होती थी। मूलरूप से प्रतापगढ़ के मानधाता थानांतर्गत ग्राम बेलखरी के रमेश बहादुर सिंह के घर जन्मे अगस्त 1986 में अनूप ने 2015 बैच में पुलिस की ट्रेनिंग की थी। कानपुर में पोस्टिंग के बाद 6 फरवरी 2019 को उन्हें बिठूर थाने की टिकरा चौकी का प्रभारी बनाया गया था। इसके बाद जनवरी 2020 में उनका तबादला करके बिठूर की मंधना चौकी का इंचार्ज बना दिया गया था। दारोगा अनूप हाल ही में चकेरी में हुए पिंटू सेंगर हत्याकांड के चश्मदीद और सपा नेता चंद्रेश सिंह के चचेरे भाई थे। इनके शहीद होने की खबर से परिवारजनों का रो रो कर बुरा हाल हो गया है।


देर रात को आखिरी बार की थी बात

सिपाही सुल्तान सिंह ने तो अपने परिवार से रात दस बजे आखिरी बार बात की थी। मूलरूप से झांसी मऊरानी निवासी सुल्तान सिंह 2018 बैच के सिपाही और सेवानिवृत्त दारोगा हरिप्रसाद के पुत्र थे। सुबह सिपाही के शहीद होने की खबर ने उनके परिवार को झकझोर के रख दिया।


पिछले साल हुई थी ज्वाइनिंग

अगर बाकी सिपाहियों की बात करें तो उन की ज्वाइनिंग पिछले साल ही हुई थी। मथुरा के सिपाही जितेंद्र पाल का जन्म जनवरी 1994 को हुआ था, पुलिस भर्ती होने पर वर्ष 2018 बैच में उन्होंने ट्रेनिंग की थी और 28 जनवरी 2019 में कानपुर ज्वाइनिंग मिली। जिसके बाद उनकी पहली पोस्टिंग बिठूर थाने में होने पर आमद कराई थी।


वहीं आगरा के फतेहाबाद थानांतर्गत ग्राम पोखर पाण्डेय, नगला लोहिया के रहने वाले छोटे लाल के पुत्र बबलू ने इंटरमीडिएट पास थे और जनवरी 1996 में जन्म हुआ था। वर्ष 2018 बैच में पुलिस ट्रेनिंग के बाद कानपुर में सिपाही पद पर तैनाती मिली थी और जनवरी 2019 को बिठूर थाने में आमद कराई थी।


पुलिसकर्मियों पर साजिश के तहत हुआ हमला

घटना को देखकर ऐसा लगा कि जैसे बदमाश विकास दुबे को इस दबिश की जानकारी पहले से ही थी। इसे पुलिसिया तंत्र की एक बड़ी चूक के तौर पर देखा जा रहा है। इसी के चलते बड़ी साजिश के साथ पुलिसकर्मियों पर हमला बोला गया। हमले में हैवानियत की सारी हदें पार कर दी गईं। मानों, जैसे पुलिसकर्मियों को मारने के लिए ही पूरी प्लानिंग की गई हो।


घटना के समय मौजूद पुलिसकर्मियों की मानें तो कि जिस समय टीम दबिश देने गई तो वहां पहले बीच सड़क पर जेसीबी खड़ी करके पुलिस टीम को रोकने की कोशिश की गई। बाद में गांव के अंदर पुलिस टीम दाखिल हुई तो हमला कर दिया गया। तीन पुलिस टीमें बनाई गई थी, हमला होने पर एक टीम पीछे हटकर बैकअप करने लगी। वहीं दो टीम के सदस्यों ने आगे बढ़कर मोर्चा लिया


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