आरक्षण को 10 या 20 वर्ष के लिए बढ़ाने से देश का उद्धार नहीं होने वाला: सुमित्रा महाजन

रांची: आरक्षण जैसे मसलों पर अमूमन राजनेता कुछ भी खुलकर नहीं बोलते लेकिन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इस मसले पर खुलकर अपनी बात रखी. मंच से अपनी बात रखते हुए सुमित्रा महाजन ने कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने आरक्षण सिर्फ 10 वर्ष के लिए लागू करने की बात कही थी लेकिन यहां हर 10 वर्ष बाद उसे फिर से 10 वर्ष या 20 वर्ष के लिए बढ़ा दिया जा रहा है. केवल आरक्षण से देश का उद्धार नहीं होने वाला. लोकमंथन-2018 के समापन समारोह की मुख्य अतिथि के रूप में रविवार को खेलगांव में बोलते हुए लोकसभा अध्यक्ष ये बातें कहीं.

 

लोकमंथन कार्यक्रम में बोलती हुईं सुमित्रा महाजन

 

सुमित्रा महाजन ने पूछा कि क्या केवल आरक्षण देने से देश का उत्थान हो सकेगा? आरक्षण का लाभ लेने वाले लोगों को आत्मचिंतन करना चाहिए कि खुद के विकास हो जाने के बाद उन्होंने समाज को क्या कुछ दिया. हालांकि यह कहते हुए सुमित्रा महाजन ने यह भी साफ कहा कि वह आरक्षण की विरोधी नहीं हैं.

 

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उन्होंने कहा, “जब हम सामाजिक समरसता की बात हम करते हैं, तब हमें आत्मचिंतन और आत्मनिरीक्षण करना चाहिए. जिन्हें आरक्षण का लाभ मिला उन्हें भी और जिनको नहीं मिला उन्हें भी. आज हमारी सामाजिक स्थिति क्या है. हो सकता है मुझे आरक्षण मिला. मैं उस समाज से आ रही हूं और मैं अगर जीवन में कुछ बन गई तो मुझे सोचना चाहिए मैंने समाज को बांटा कितना है. मैंने समाज को साथ में लेकर कितना सहारा दिया है. यह सोचना बहुत जरूरी है और यह सामूहिक रूप से सोचना पड़ेगा. जब हम समाज और प्रजातंत्र की बात करते हैं तो सोचना पड़ेगा. क्या मेरा समाज पिछड़ तो नहीं गया. मैं तो आगे बढ़ गई, क्या उसका फायदा उन्हें मिला. क्या आरक्षण की यही कल्पना है.”

 

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सुमित्रा महाजन ने आगे कहा, “डॉ. अंबेडकर की कल्पना थी 10 साल बाद सामूहिक उत्थान की. उनकी कल्पना थी सामाजिक समरसता की. लेकिन मैंने क्या किया. कहीं श्रीजन सामूहिक रूप से चिंतन में हम कम पड़ गए. हर 10 साल में आरक्षण को आगे बढ़ाते गए. एक बार तो 20 साल आगे बढ़ाया गया. क्या है यह कल्पना क्या है. क्या केवल आरक्षण देने से देश का उद्धार हो जाएगा गांव गांव में सोच नहीं बदलनी चाहिए परिवर्तन नहीं आना चाहिए. यह भेद-भाव नहीं चलेगा. एक सामूहिक भोजन का उदाहरण देते हुए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि सामूहिक भोजन में सब को निमंत्रण देकर और जाति के आधार पर बैठाया जाएगा तो उस सामूहिक भोजन का कोई मतलब नहीं है.

 

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