इन्वेस्ट यूपी घूसकांड: मुख्य आरोपी निकांत जैन से जेल में पूछताछ करेगी SIT

इन्वेस्ट यूपी घूसखोरी कांड की जांच कर रही विशेष जांच टीम (SIT) अब मामले के मुख्य आरोपी निकान्त जैन (Nikant Jain) से जेल में पूछताछ करेगी। सूत्रों के अनुसार, निकान्त जैन कथित रूप से IAS अधिकारी अभिषेक प्रकाश (IAS Abhishek Prakash) का करीबी और दलाल माना जा रहा है। यही नहीं, अभिषेक प्रकाश के निलंबन आदेश में भी निकान्त जैन का नाम स्पष्ट रूप से दर्ज है।

FIR में IAS अभिषेक प्रकाश का नाम नहीं

हालाँकि मामले में कई गंभीर धाराएँ लागू हैं, लेकिन पुलिस द्वारा FIR या चार्जशीट में अभिषेक प्रकाश का नाम नहीं जोड़े जाने पर कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई। कोर्ट ने सरकार से यह पूछा कि जब धाराएँ लोकसेवक से संबंधित हैं, तो लोकसेवक का नाम FIR में क्यों नहीं जोड़ा गया।

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SIT का गठन

कोर्ट की फटकार के बाद सरकार ने विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया है। SIT के पास अब ठोस इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य मौजूद हैं, जिनके आधार पर IAS अभिषेक प्रकाश का नाम FIR में जोड़ा जाना लगभग तय माना जा रहा है। साथ ही, यह जांच और भी बड़े नामों जैसे राजनीतिज्ञों, अधिकारियों और यहां तक कि न्यायपालिका के कुछ सदस्यों तक पहुँच सकती है।

उच्च पदों पर बैठे अफसरों की भूमिका संदिग्ध

अगर SIT निष्पक्ष जांच करती है और अभिषेक का नाम FIR में शामिल करती है, तो कई रिटायर्ड और वर्तमान वरिष्ठ अधिकारी भी जांच के दायरे में आ सकते हैं। इस बात पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि अभिषेक प्रकाश को लगातार मलाईदार पदों पर क्यों तैनात किया गया और पूर्व में उन पर हुई शिकायतों को किसने दबाया?

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बरेली और लखीमपुर में 700 बीघा ज़मीन की खरीद पर भी उठे सवाल

अभिषेक प्रकाश की तैनाती के दौरान बरेली और लखीमपुर में 700 बीघा से अधिक जमीन खरीदने की शिकायतें सामने आई थीं। इन शिकायतों को जांच के नाम पर कैसे और क्यों दबा दिया गया, यह भी एक गंभीर प्रश्न बना हुआ है। एक जांच रिपोर्ट में तो यहाँ तक लिखा गया कि चूंकि अभिषेक के पिता एक प्रतिष्ठित चिकित्सक रहे हैं, इसलिए वह जमीन खरीदने में सक्षम थे। जिसने जांच की निष्पक्षता पर ही सवाल खड़े कर दिए।

मुख्यमंत्री कार्यालय पर भी उठ रहे हैं सवाल

सबसे बड़ा प्रश्न उन अफसरों पर उठ रहा है जो ‘पंचम तल’ यानी मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठकर ऐसी रिपोर्टों पर “Accepted and Disposed” की मोहर लगाते रहे। इन अफसरों की भूमिका अब जांच के दायरे में है, जिन्होंने वर्षों तक ऐसे अफसरों को संरक्षण दिया है।

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