UP Election: सपाई गढ़ में आसान नहीं पूर्व IPS असीम अरुण की राहें, जानें कन्नौज सीट का समीकरण

 

UP के तेजतर्रार आईपीएस और कानपुर के पूर्व पुलिस कमिश्नर अब प्रदेश के कन्नौज जिले से चुनाव में खड़े होंगे। तीसरे चरण के चुनाव के प्रत्याशियों की लिस्ट बीजेपी पार्टी ने शुक्रवार को जारी कर दी। इस लिस्ट में कन्नौज से आईपीएस असीम को टिकट दिया गया है। उन्होंने 8 जनवरी को ही उत्तर प्रदेश पुलिस में कानपुर के पुलिस कमिश्नर रहते हुए वीआरएस (ऐच्छिक सेवानिवृत्ति) की सोशल मीडिया पर घोषणा की थी। चर्चा है कि इससे पहले ही उन्होंने सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adiyanath) से मुलाकात की थी। साथ ही उन्होंने डीजीपी मुकुल गोयल को वीआरएस के लिए अर्जी दे दी थी। अगर आंकड़ों की मानें तो पिछले कई चुनावों में कन्नौज से सपा को हराना बेहद मुश्किल ही साबित हुआ है।

सपा के किले को भेदना नहीं होगा आसान

जानकारी के मुताबिक, बीजेपी ने असीम अरुण की जिस कन्नौज सीट से उतारा है, उसे समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है। 2017 में मोदी लहर के दौरान भी सपा कन्नौज विधानसभा सीट को जीतने में कामयाब हो गई थी। कन्नौज सुरक्षित सीट से सपा के अनिल कुमार दोहरे ने कड़े मुकाबले में बीजेपी के बनवारी लाल दोहरे को हराया था। हालांकि दोनों के बीच जीत और हार का अंतर केवल 2,454 वोटों का ही था। कन्नौज विधानसभा सीट पिछले चार चुनावों से सपा के कब्जे में है। 2002 के विधानसभा चुनाव में कन्नौज में सपा को पहली बार जीत मिली और कल्याण सिंह दोहरे विधायक बने थे। वहीं 2007, 2012 और 2017 में सपा के अनिल कुमार दोहरे ने यहां से जीत दर्ज की। अब पूर्व असीम अरुण के लिए सपा के इस किले को भेदना आसान नहीं होने वाला है।

बीजेपी ने किया था प्रभावित

कानपुर पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ने ऐच्छिक सेवानिवृति की जानकारी देते हुए एफबी पर बताया था। जिसके बाद हाल ही में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि बीजेपी (BJP) कि नीतियां अच्छी लगीं, जिनसे प्रभावित होकर पद त्याग कर पार्टी में शामिल हुए हैं। उन्होंने अखिलेश यादव के लगाए गए आरोपों पर भी पलटवार किया। सभी कार्यकर्ताओं से मिलने के बाद खैर नगर पहुंचकर परिवार की दादी के साथ मंदिर में पूजन अर्चना की। इसके बाद अपने पैतृक गांव गौरव पुरवा पहुंच कर क्षेत्रवासियों और पार्टी के पदाधिकारियों से मुलाकात की। उन्होंने बताया कि वो बाबा साहब को अपना आदर्श मानते हैं। करीब 10 माह तक उन्होंने कानपुर पुलिस कमिश्नर के रूप में काम किया। पुलिस की पाबंदियों के आगे वो दलितों, गरीबों और असहाय की मदद नहीं कर पाते। अब राजनीति में उतर पर वो खुले हाथों से लोगों की मदद कर सकेंगे।

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