आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता!

‘आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता’ यह बात हमें रोज सुबह-शाम दिन-रात हर वक्त याद दिलायी जाती है और हमसे उम्मीद की जाती है कि हम इसको सही मान लें और इस पर विश्वास कर लें. लेकिन यह बात कितनी खोखली है, इसका पता भी हमें रोज चल जाता है. कश्मीर से केन्या तक, पाकिस्तान से अमेरिका तक, चीन से यूरोप तक दुनिया में हर जगह आतंकवादी अपनी करतूतों से साबित कर देते हैं कि उनका एक ‘धर्म’ है या यूं कहें कि ‘मजहब’ होता है, और जो उस तथाकथित धर्म को नहीं मानता, उसे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है. दुनिया का कोई कोना इन ‘मजहबियों’ के असर से अछूता नहीं है.


भारत में भी इस बात के खोखलेपन के प्रमाण रोज सामने आ जाते हैं. गुरुवार को ही जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में को जैश-ए-मोहम्मद के एक आतंकवादी ने आत्‍मघाती हमले में 44 से अधिक जवानों की जान ले ली. हमलावर आदिल अहमद ने हमले से पहले एक वीडियो जारी किया जिसमें वो ‘अल्ल्लाह ताला’, ‘इंशाल्लाह’ और ‘जिहाद’ जैसे शब्द कहते नहीं थक रहा था. बात इतनी पर ही रुक जाती फिर भी ठीक था जैसे ही जवानों के मरने और जिहाद की खबर सामने आई कुछ तथाकथित शांतिप्रिय मजहब के लोग सोशल मीडिया पर इसका जश्न मनाते पाए गए.


https://twitter.com/pooja303singh/status/1096024121392148481



भारत में बहुत से लोग आतंकवाद के समर्थक है जिनमे नेता तो है ही, साथ में मीडिया का भी एक बड़ा वर्ग है जो अपने एजेंडे के तहत बार बार ये कहते रहते है कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता, ऐसे लोग आतंकियों का मनोबल बढ़ाकर उनका समर्थन करते है. अभी हाल ही देश में विद्यालयों में होने वाली प्राथना का धर्म खोज लिया गया था क्योंकि उसमें हिन्दू धर्म के श्लोक शामिल हैं. इन तथाकथित बुद्धिजीवियों की यही खोज आतंकियों का धर्म खोजने में छुट्टियाँ मनाने चली जाती.


कहीं किसी आतंकवादी को अदालत फाँसी की सजा सुनाती है, तो उसके ‘धर्म’ वालों के वोटों के सौदागर सामने आ जाते हैं और चीखने लगते हैं कि ‘न….न….न, इसको फाँसी मत दो, नहीं तो उस धर्म के मानने वाले नाराज हो जायेंगे.’ जब भी मुठभेड़ में कोई आतंकवादी मारा जाता है, उसको बेटा-बेटी या दामाद बताने वाले छातियाँ पीटने लगते हैं कि ‘हाय! एक शांतिप्रिय निर्दोष बच्चे को मार डाला.’ वे चाहते हैं कि हम या तो आतंकवादियों को खुला घूमने दें या उनको दामाद बनाकर रोज बिरयानी खिलाते रहें.


इस धर्म के झंडाबरदार कभी इस बात पर विचार नहीं करते कि क्या कारण है कि इस धर्म को मानने वाले आतंकवादी पूछ-पूछकर और छाँट-छाँटकर गैर-धर्मों को मानने वालों के सीने में गोलियाँ उतारकर आनन्द का अनुभव करते हैं? क्या कारण है कि इस धर्म को मानने वाला शान्तिप्रिय आदमी सैकड़ों गैर-धर्म वाले निर्दोष लोगों की जान लेने के लिए खुद को विस्फोट से उड़ाने में कोई संकोच नहीं करता?


ओबामा ने ओसामा बिन लादेन को मरवाकर समन्दर में फिकवा दिया था उसे अन्तिम संस्कार भी नसीब नहीं हुआ लेकिन यदि अमेरिका ने उसकी लाश को जनता के हवाले किया होता तो क्या होता. इतना ही नहीं जो उससे छोटे आतंकवादी मारे जाते हैं उनका क्या होता है. कश्मीर में भारतवासी जो नजारा देखते हैं उसमें तो उन्हें कब्रिस्तान में न केवल सम्मानित जगह मिलती है बल्कि अन्तिम यात्रा होती है और हुजूम उमड़ता है. क्या हमें इन आतंकियों को जलाना नहीं चाहिए? जब जब धर्म ही नहीं होता फिर उसके रीति-रिवाज क्यों मनाने?


दरअसल केवल जन्नत जाने और वहाँ असीमित शराब के साथ 72 हूरें पाने का लालच इसका अकेला कारण नहीं हो सकता. अवश्य ही उस धर्म के चिन्तन और मान्यताओं में कोई मौलिक गलती है, जिसके कारण यह तथाकथित ‘शान्तिप्रिय धर्म’ के लोग सारे संसार में अशांति और रक्तपात का कारण बना हुआ है. इस चिन्तन में चूक कहाँ पर है? जब इस सवाल का जबाब मिल जायेगा, तो आतंकवाद भी समाप्त होने लगेगा, वरना इसी तरह आम लोगों की जानें जाती रहेंगी और ‘हम आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता’ का राग अलापते रहेंगे.


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