Kamada Ekadashi 2023: कब रखा जाएगा कामदा एकादशी का व्रत, 1 या 2 अप्रैल को?, जानिए शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, महत्व, कथा और पारण का समय

Kamada Ekadashi 2023: एकादशी व्रत हर महीने में दो बार रखा जाता है. इस तरह सालभर में कुल 24 एकादशी व्रत (Ekadashi Vrat) रखे जाते हैं और सभी के नाम और महत्‍व अलग-अलग होते हैं. चैत्र मास के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. राम नवमी के बाद आने वाली ये एकादशी दुख और दरिद्रता को दूर करती है और कामनाओं को पूरा करती है. इसके व्रत के प्रभाव से जाने-अनजाने हुए पाप भी कट जाते हैं. इस बार कामदा एकादशी व्रत 1 अप्रैल को रखा जाएगा. यहां जानिए शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, कथा और पारण का समय.

कामदा एकादशी व्रत पर पूजा का समय 1 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 12 मिनट से 02 अप्रैल को प्रातः 04 बजकर 48 मिनट तक है. इस बीच पूजा करने का सबसे उत्तम मुहूर्त 1 अप्रैल को प्रात: 07 बजकर 45 मिनट से प्रारंभ हो रहा है और सुबह 09 बजकर 18 मिनट तक रहेगा.

व्रत पारण का शुभ समय (Vrat Parana Auspicious Time)

जो लोग 1 अप्रैल को एकादशी का व्रत रखेंगे, वो व्रत का पारण 02 अप्रैल 2023 को दोपहर 01 बजकर 40 मिनट से शाम 04 बजकर 10 मिनट के बीच कर सकते हैं. वहीं जो लोग 02 अप्रैल को व्रत रख रहे हैं, वे 03 अप्रैल 2023 की सुबह 06 बजकर 09 मिनट के बाद कभी भी व्रत का पारण कर सकते हैं.

कामदा एकादशी की पूजा विधि
1.
शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है.
2. व्रत के एक दिन पहले एक बार भोजन करके भगवान का स्मरण किया जाता है.
3. कामदा एकादशी व्रत के दिन स्नान के बाद साफ कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
4. व्रत का संकल्प लेने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए.
5. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा में फल, फूल, दूध, तिल और पंचामृत आदि सामग्री का प्रयोग करना चाहिए.
6. एकादशी व्रत की कथा सुनने का भी विशेष महत्व है.
7. द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए.

कामदा एकादशी का महत्व
धर्म ग्रंथों के अनुसार, कामदा एकादशी व्रत के पुण्य से जीवात्मा को पाप से मुक्ति मिलती है. यह एकादशी कष्टों का निवारण करने वाली और मनोवांछित फल देने वाली होने के कारण फलदा और कामना पूर्ण करने वाली होने से कामदा कही जाती है. इस एकादशी की कथा व महत्व भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था. इससे पूर्व राजा दिलीप को यह महत्व वशिष्ठ मुनि ने बताया था.

चैत्र मास में भारतीय नव संवत्सर की शुरुआत होने के कारण यह एकादशी अन्य महीनों की अपेक्षा और अधिक खास महत्व रखती है. शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य कामदा एकादशी का व्रत करता है वह प्रेत योनि से मुक्ति पाता है.

कामदा एकादशी व्रत कथा
भोगीपुर राज्य में राजा पुंडरीक की शासन था. उसका राज्य धन धान्य और ऐश्वर्य से भरा था. उसके राज्य में एक प्रेमी युगल रहता था, जिसका नाम ललित और ललिता था. वे दोनों एक दूसरे से प्रेम कर​ते थे. एक दिन राजा पुंडरीक की सभी लगी थी, उसमें ललित साथी कलाकारों के साथ गीत संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा था. उसने ललिता को देखा और उसका सुर गड़बड़ हो गया.

सभा में उपस्थित सेवकों ने राजा पुंडरीक को इस बात की जानकारी दे दी. इस पर क्रोधित राजा पुंडरीक ने ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया. श्राप के कारण ललित राक्षस बन गया और उसका शरीर 8 योजन का हो गया. अब वह जंगल में रहने लगा. पत्नी ललिता जंगल में ललित के पीछे भागती रहती थी. राक्षस होने के कारण ललित का जीवन बड़ा कष्टमय हो गया था.

एक रोज ललिता विंध्याचल पर्वत पर गई. वहां पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था. ललिता ने श्रृंगी ऋषि को प्रणाम किया और अपने आने को उद्देश्य बताया. श्रृंगी ऋषि ने कहा कि तुम परेशान न हो. तुम कामदा एकादशी का व्रत रखो और उस व्रत से अर्जित पुण्य फल को अपने पति को समर्पित कर दो. उस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारा पति राक्षस योनि से बाहर निकल आएगा.

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