‘समधी’ भी नहीं बचे….बसपा सुप्रीमो मायावती ने पूर्व सांसद अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से निकाला

बहुजन समाज पार्टी (BSP) की सुप्रीमो मायावती (Mayawati) ने एक चौंकाने वाला फैसला लिया है। उन्होंने अपने पुराने भरोसेमंद साथी और रिश्तेदार डॉ. अशोक सिद्धार्थ (Former MP Ashok Siddharth) को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। अशोक सिद्धार्थ कोई आम नेता नहीं हैं वो मायावती के भतीजे आकाश आनंद के ससुर भी हैं।

कौन हैं अशोक सिद्धार्थ?

अशोक सिद्धार्थ का नाम बसपा की राजनीति में बड़े ही लो-प्रोफाइल लेकिन असरदार नेताओं में लिया जाता था। हमेशा पर्दे के पीछे रहकर पार्टी के लिए काम करने वाले सिद्धार्थ मायावती के बेहद करीबी माने जाते थे। उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में कदम रखा था। मायावती ने उनकी काबिलियत को पहचानते हुए उन्हें पहले एमएलसी बनाया, फिर 2016 में राज्यसभा भेजा। डॉ. अशोक सिद्धार्थ बसपा संस्थापक कांशीराम के सहयोगी रहे हैं। वह दलित समुदाय से आते हैं और बसपा के सिद्धांतों के प्रति हमेशा वफादार माने जाते थे। उनकी पत्नी भी मायावती के शासनकाल में यूपी महिला आयोग की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं।

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सबसे दिलचस्प बात यह है कि डॉ. अशोक सिद्धार्थ, मायावती के भतीजे आकाश आनंद के ससुर हैं। उनकी बेटी डॉ. प्रज्ञा सिद्धार्थ ने दो साल पहले आकाश आनंद से शादी की थी। प्रज्ञा भी मेडिकल फील्ड से जुड़ी हैं और डॉक्टर हैं। यह फैसला दिखाता है कि मायावती के लिए पार्टी से बड़ा कुछ भी नहीं है ना तो रिश्ते, ना ही पुराना भरोसा। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे महत्वपूर्ण राज्यों की जिम्मेदारी संभालने वाले अशोक सिद्धार्थ को एक झटके में बाहर कर दिया गया।

फैसला क्यों लिया गया?

हालांकि, हाल के दिनों में चीजें बदलीं। गुटबाजी और पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोपों ने उनकी साख को झटका दिया। मायावती ने चेतावनी दी, लेकिन जब हालात नहीं बदले, तो उन्होंने कड़ा फैसला ले लिया। अशोक सिद्धार्थ और मेरठ के जिला प्रभारी नितिन सिंह को तत्काल प्रभाव से पार्टी से निष्कासित कर दिया गया।

बसपा से निकाले जा चुके हैं ये बड़े नेता

ऐसा पहली बार नहीं है जब मायावती ने किसी खास और कद्दावर नेता को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया हो। बसपा चीफ ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी, इंद्रजीत सरोज, स्वामी प्रसाद मौर्य, आरके चौधरी, लाल जी वर्मा और राम अचल राजभर जैसे नेताओं को भी एक झटके में पार्टी से निकाल दिया था। कई ऐसा लोगों पर भी कार्रवाई की गई, जिन्होंने ने पार्टी की स्थापना और उसे आगे बढ़ाने में कांशी राम के साथ मिलकर काम किया था

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राज बहादुर उन चुनिंदा दलित नेताओं में से हैं, जो कांशी राम द्वारा स्थापित पिछड़े, अल्पसंख्यक और दलित कर्मचारियों के संगठन बामसेफ में रहे और इसके बाद 1984 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति यानी डीएस फोर से जुड़े। डीएस फोर ही ने बाद में बहुजन समाज पार्टी की शक्ल ले ली. राज बहादुर उत्तर प्रदेश बहुजन समाज पार्टी के अध्यक्ष भी बने। वर्ष 1994 में पहली बार बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की साझा सरकार बनी तो राज बहादुर कैबिनेट मंत्री बने।

उनके अलावा आरके चौधरी, डॉक्टर मसूद, शाकिर अली, राशिद अल्वी, जंग बहादुर पटेल, बरखू राम वर्मा, सोने लाल पटेल, राम लखन वर्मा, भगवत पाल, राजाराम पाल, राम खेलावन पासी, कालीचरण सोनकर आदि अनेकों ऐसे नेता हैं जिन्हें बीएसपी से बाहर का रास्ता दिखाया गया। इनमें आरके चौधरी, काली चरण सोनकर अपनी पार्टी चला रहें हैं। सोने लाल पटेल ने भी अपनी पार्टी बनाई थी, जिसे उनकी मौत के बात उनकी पत्नी चला रही हैं, लेकिन ज्यादा तादाद ऐसे लोगों की है जो कांग्रेस या समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए।

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