उत्तर प्रदेश पुलिस का इतिहास कई रोमांचक किस्सों और जांबाज अफसरों से भरा हुआ है। इस विभाग के कई पुलिस अधिकारी अपने नाम के बजाए काम की वजह से सुर्खियों में रहे और जनता का विश्वास जीता। कुछ ऐसी ही कहानी है पूर्व पुलिस महानिदेशक एसी शर्मा की, जिन्हें आज भी अपराधियों की कमर तोड़ने के लिए याद किया जाता है।
एसी शर्मा के फैसलों ने पेश की थी नजीर
जानकारी के मुताबिक, 19 मार्च 2012 को प्रदेश के पुलिस महानिदेशक बने एसी शर्मा की कई साल पहले लखनऊ परिक्षेत्र के पुलिस उपमहानिरीक्षक पद की तैनाती के दौरान कानून व्यवस्था में सुधार को आज भी लोग याद करते हैं। अपराध और अपराधियों पर सख्थी के फैसलों को लेकर एसी शर्मा की डीआईजी के रूप में तैनाती के दौरान उन्होंने एक धार्मिक संस्थान में पुलिस की दबिश के विरोध का डटकर सामना किया।
उस वक्त एसी शर्मा के फैसले से पुलिसकर्मियों का मनोबल बढ़ा और इसके बाद पूरे परिक्षेत्र में अपराधियों पर कहर बनकर पुलिस ने बरसना शुरू कर दिया था। एसी शर्मा ने पुलिस महानिदेशक बनने के बाद भी अपना पुराना अंदाज जारी रखा। इसका नतीजा ये रहा कि थानों पर पीड़ित की सुनवाई के साथ ही अफसरों को 24 घंटे मुस्तैद रहने का संदेश दिया।
पुलिसकर्मियों की गृह जनपद के पास तैनाती का लिया था फैसला
सबसे खास बात तो ये रही कि उन्होंने पुलिसकर्मियों की गृह जनपद के पास तैनाती की नीति के तहत तबादले शुरू कराए। एसी शर्मा का मानना था कि दूर के जिलों में तैनाती की जगह घर के पास तैनाती होने पर पुलिसकर्मी ज्यादा अनुशासित रहते हैं और तनाव मुक्त होकर काम कर पाते हैं।
बताया जाता है कि एसी शर्मा पर पुलिस अफसरों के साथ ही रिश्तेदारों की भी नजर रहती है। जानकारी के मुताबिक, साल भर से अधिक समय तक पुलिस महानिदेशक पद पर रहे एसी शर्मा ने कई मामलों में सत्ताधारी पार्टी के विरोध का डटकर सामना भी किया।
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