दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की आज पुण्यतिथि (Sheila Dikshit death anniversary) है. पिछले साल 20 जुलाई को शीला दीक्षित की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी, जिसके बाद 21 जुलाई को उनका अंतिम संस्कार किया गया था. उन्होंने 81 साल की उम्र में दिल्ली के एक अस्पताल में आखिरी सांस ली थी. दिल्ली की सबसे लोकप्रिय नेता रहीं शीला दीक्षित को आज हर कोई याद कर रहा है.’. पुण्यतिथि के मौके पर आइए जानते हैं शीला दीक्षित से जुड़े कुछ मजेदार किस्से.
शीला दीक्षित का राजनीतिक सफर
15 साल तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रहने वालीं शीला दीक्षित इससे पहले 1984 से 89 तक वे कन्नौज (उप्र) से सांसद रह चुकी हैं. इस दौरान वे लोकसभा की समितियों में रहने के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं के आयोग में भारत की प्रतिनिधि रहीं. वह राजीव गांधी सरकार में केन्द्रीय मंत्री भी रह चुकी हैं. शीला दीक्षित 1998 से 2013 तक लगातार 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं. हालांकि, 2013 में आम आदमी पार्टी के उफान में शीला दीक्षित की सरकार बह गई. हालांकि, माना जाता है कि शीला दीक्षित की हार में एंटी इनकंबेंसी भी हावी रहा. इसके बाद वह 2014 में केरल की राज्यपाल भी रहीं.
शीला दीक्षित की पढ़ाई
शीला दीक्षित का जन्म 31 मार्च, 1938 को पंजाब के कपूरथला में हुआ है. शीला दीक्षित ने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से इतिहास में मास्टर डिग्री हासिल की है. उनका विवाह उन्नाव (यूपी) के आईएएस अधिकारी स्वर्गीय विनोद दीक्षित से हुआ था. विनोद कांग्रेस के बड़े नेता और बंगाल के पूर्व राज्यपाल स्वर्गीय उमाशंकर दीक्षित के बेटे थे. शीलाजी एक बेटे और एक बेटी की मां हैं. उनके बेटे संदीप दीक्षित भी दिल्ली के सांसद हैं. दरअसल, मिरांडा हाउस से पढ़ाई के दौरान ही उनकी राजनीति में रुचि थी.
दिल्ली की 3 बार मुख्यमंत्री
शीला दीक्षित अपनी काम की बदौलत कांग्रेस पार्टी में पैठ बनाती चली गईं. सोनिया गांधी के सामने भी शीला दीक्षित की एक अच्छी छवि बनी और यही वजह है कि राजीव गांधी के बाद सोनिया गांधी ने उन्हें खासा महत्व दिया. साल 1998 में शीला दीक्षित दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष बनाई गईं. 1998 में ही लोकसभा चुनाव में शीला दीक्षित कांग्रेस के टिकट पर पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ीं, मगर जीतन नहीं पाईं. उसके बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ना छोड़ दिया और दिल्ली की गद्दी की ओर देखना शुरू कर दिया. दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्होंने न सिर्फ जीत दर्ज की, बल्कि तीन-तीन बार मुख्यमंत्री भी रहीं.
जब पैदल ही घर से पंडित नेहरु से मिलने निकल पड़ीं
शीला दीक्षित से जुड़ा एक वाकया बेहद चर्चित है. एक इंटरव्यू के दौरान शीला ने बताया कि 15 बरस की उम्र में एक दिन वह प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिलने अपने घर से पैदल ही ‘तीन मूर्ति भवन’ पहुंच गईं. दरबान ने ‘पंडितजी’ से मिलने की बात सुनकर गेट खोल दिया, लेकिन पंडित नेहरू अपनी कार में कहीं जा रहे थे, लिहाजा शीला ने अपना हाथ हिला दिया और जवाब में उन्होंने भी हाथ हिलाकर जवाब दिया. यह भी इत्तफाक है कि एक दिन ‘पंडित जी’ से मिलने पहुंची शीला कपूर ने शीला दीक्षित के तौर पर जवाहर लाल नेहरू के नाती की सरकार में जगह बनाई.
राजीव सरकार में बनीं मंत्री
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब देश में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी तो उन्होंने शीला दीक्षित को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी. इसके बाद तमाम राजनीतिक उतार चढ़ावों के बीच शीला कांग्रेस की एक मजबूत स्तंभ बनी रहीं. इसी का नतीजा था कि 1998 में सोनिया गांधी ने उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया और उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने दिल्ली में तीन बार सरकार बनाई.
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