Tokyo Paralympic 2020: नोएडा DM सुहास एलवाई ने रचा इतिहास, भारत को दिलाया सिल्वर मेडल, PM ने फ़ोन करके दी बधाई

उत्तर प्रदेश के नोएडा जिले के डीएम सुहास एलवाई ने टोक्यो पैरालंपिक में इतिहास रच दिया. दरअसल, नोएडा डीएम को रविवार को पुरुषों की एकल SL4 इवेंट में फ्रांस के टॉप सीड शटलर लुकास माजूर से कड़े मुकाबले में 21-15, 17-21, 15-21 से हार का सामना करना पड़ा. जिसके बाद उन्हें सिल्वर मेडल से नवाजा गया. भारत का यह कुल 18वां मेडल है. डीएम सुहास पहले ऐसे प्रशासनिक अफसर हैं, जिन्होंने पैरालंपिक में मेडल जीता है.


पीएम ने फ़ोन करके दी बधाई

जानकारी के मुताबिक, सुहास ने मैच पहला गेम 21-15 से अपने नाम किया. अगले दोनों गेम में उन्होंने विपक्षी को कड़ी टक्कर दी, लेकिन उन्हें मैच गंवाना पड़ा. फ्रांस के लुकास ने 21-17 और 21-15 से दोनों गेम जीतते हुए गोल्ड मेडल जीत लिया. एसएल4 क्लास में वो बैडमिंटन खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं जिनके पैर में विकार हो. वह देश के पहले ऐसे अधिकारी हैं, जिन्हें पैरालिंपिक में हिस्सा लेने का मौका मिला था और उन्होंने सिल्वर मेडल अपनी झोली में डाला.


नोएडा के डीएम सुहास एलवाई ने टोक्यो पैरालंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर देश को गौरवान्वित किया तो रिटर्न गिफ्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे बात की और उनको धन्यवाद कहा. पीएम से बातचीत के दौरान सुहास के हावभाव से ऐसा लगा कि उन्हें पीएम मोदी से बात करके उतने ही खुश हैं जितना मेडल जीतने से. उन्होंने कहा कि वो देश के पीएम से बात करके गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.


पत्नी ने दिया मेहनत को श्रेय

डीएम की पत्नी ऋतु सुहास ने कहा, ‘सुहास एल.वाई (Suhas LY) की इस कामयाबी का श्रेय केवल उनकी मेहनत को जाता है और किसी को नहीं.’ ऋतु ने कहा कि उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ियों की कामयाबी के लिए दुआ की थी और शुक्र है कि वह कबूल भी हो गई. ऋतु (Ritu Suhas) ने कहा कि उनके पति अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत करने पर यकीन रखते हैं. सरकारी सर्विस में होने के बावजूद वे गेम खेलने के लिए टाइम निकाल ही लेते. वे रोजाना रात 8 बजे से लेकर 12 बजे तक बैडमिंटन की प्रैक्टिस करते. उनके कोच ने भी उन्हें आगे बढ़ाने में कड़ी मेहनत की


इससे पहले भी मेडल अपने नाम कर चुके हैं सुहास

बता दें कि सुहास एलवाई (Suhas LY) का जन्म कर्नाटक के शिमोगा में हुआ. जन्म से ही दिव्यांग (पैर में दिक्कत) सुहास शुरुआत से IAS नहीं बनना चाहते थे. वो बचपन से ही खेल के प्रति बेहद दिलचस्पी रखते थे. इसके लिए उन्हें पिता और परिवार का भरपूर साथ मिला. सुहास का क्रिकेट से काफी प्रेम है. यह उनके पिता की ही देन है. परिवार ने उन्हें कभी नहीं रोका, जो मर्जी हुई सुहास ने उस गेम को खेला और पिता ने भी उनसे हमेशा जीत की उम्मीद की. पिता की नौकरी ट्रांसफर वाली थी, ऐसे में सुहास की पढ़ाई शहर-शहर घूमकर होती रही. सुहास की शुरुआती पढ़ाई गांव में हुई. इसके बाद उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से कम्प्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की. 2005 में पिता की मृत्यु के बाद सुहास टूट गए थे.


उनके जीवन में पिता का महत्वपूर्ण स्थान था, पिता की कमी खलती रही.पिता की मौत के बाद UPSC की तैयारी शुरू कीसुहास ने पिता की मौत के बाद ठान लिया था कि उन्हें सिविल सर्विस ज्वाइन करनी है. ऐसे में उन्होंने UPSC की तैयारी शुरू की. UPSC की परीक्षा पास करने के बाद उनकी पोस्टिंग आगरा में हुई. फिर जौनपुर, सोनभद्र, आजमगढ़, हाथरस, महाराजगंज, प्रयागराज और गौतमबुद्धनगर के जिलाधिकारी बने. 2007 बैच के आईएएस अधिकारी सुहास इस समय गौतम बुद्ध नगर के जिलाधिकारी हैं. पिछले साल मार्च में महामारी के दौरान सुहास को नोएडा का जिलाधिकारी बनाया गया था.


इससे पहले भी डीएम सुहास एलवाई कई मेडल अपने नाम कर चुके हैं. 2016 में बीजिंग में हुए एशियाई पैरा बैडमिंटन चैंपियनशिप में वह एक पेशेवर अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन चैंपियनशिप जीतने वाले पहले भारतीय नौकरशाह बने. उस समय वह आजमगढ़ के जिलाधिकारी के रूप में कार्यरत थे. उन्होंने इस टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक जीतकर पूरी दुनिया में भारत का और अपना नाम किया.


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