मुकेश कुमार, संवाददाता गोरखपुर। एम्स गोरखपुर के ईएनटी विभाग ने चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए चार वर्षीय जन्मजात बधिर बच्चे पर पहली बार कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी सफलतापूर्वक संपन्न की। यह सर्जरी पूर्वांचल में उन्नत श्रवण पुनर्वास की दिशा में एक बड़ा कदम है।
इस जटिल सर्जरी का संचालन डॉ. पंखुरी मित्तल द्वारा किया गया, जो एसएमएस जयपुर के प्रो. मोहनिश ग्रोवर के मार्गदर्शन में संपन्न हुई। सर्जरी दल में डॉ. नैन्सी (सीनियर रेजिडेंट) और नर्सिंग ऑफिसर आकांक्षा शामिल थीं। इसके अलावा, एनेस्थीसिया टीम का नेतृत्व डॉ. विक्रम वर्धन ने किया, जिनके साथ डॉ. सोनम, डॉ. रवि और डॉ. गौरव ने मिलकर बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित की।
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इस सर्जरी का आधा खर्च उत्तर प्रदेश सरकार ने वहन किया, जिससे इसे संभव बनाया जा सका। यह सरकार की ओर से श्रवण बाधित बच्चों के उपचार हेतु किए जा रहे प्रयासों का हिस्सा है।
कॉक्लियर इम्प्लांट और नवजात श्रवण जांच के लाभ
कॉक्लियर इम्प्लांट उन बच्चों के लिए वरदान है, जो जन्मजात बधिरता के कारण सुनने में असमर्थ होते हैं। यह उपकरण सुनने और भाषा सीखने की क्षमता विकसित करने में मदद करता है, जिससे बच्चे का सामाजिक और शैक्षिक विकास बेहतर होता है। इस सर्जरी से बच्चा सामान्य स्कूलों में पढ़ने और समाज के साथ घुलने-मिलने में सक्षम हो सकता है।
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इसके साथ ही, नवजात श्रवण जांच (Neonatal Hearing Screening) अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे जन्म के तुरंत बाद ही श्रवण दोष की पहचान की जा सकती है। यदि पहले छह महीनों में इस समस्या का निदान कर लिया जाए और उपचार शुरू किया जाए, तो बच्चे के भाषा और संचार कौशल में जबरदस्त सुधार संभव है। एम्स गोरखपुर इस दिशा में जागरूकता बढ़ाने और अधिक से अधिक बच्चों को समय पर उपचार प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।
एम्स गोरखपुर इस महत्वपूर्ण उपलब्धि को संभव बनाने में अपने अमूल्य मार्गदर्शन और सहयोग के लिए कार्यकारी निर्देशिका मेजर डॉ. विभा दत्ता के प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त करता है।
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यह चिकित्सा क्षेत्र में एक नया मील का पत्थर है, जो एम्स गोरखपुर की उत्कृष्टता और समर्पण को दर्शाता है। इस सफलता के साथ, संस्थान भविष्य में और अधिक बच्चों को सुनने और संवाद करने की क्षमता प्रदान करने के अपने मिशन को साकार करने की दिशा में निरंतर प्रयासरत रहेगा।
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