UP: पंचायत चुनाव से पहले RSS ने किए बड़े बदलाव, 60 से अधिक जिला प्रचारक बदले गए

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में 60 से अधिक जिला प्रचारकों के कार्यक्षेत्रों में बदलाव करते हुए बड़ा संगठनात्मक बदलाव किया है। यह परिवर्तन आगामी पंचायत चुनाव 2026 (Panchayat Elections 2026) और विधानसभा चुनाव 2027 (Assembly Elections 2027) को ध्यान में रखते हुए किया गया है। संघ सूत्रों का कहना है कि इस बदलाव का उद्देश्य जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना और संगठन की वैचारिक पकड़ को मजबूत बनाना है।

छह प्रांतों में प्रचारकों का हुआ पुनर्गठन

उत्तर प्रदेश को आरएसएस छह प्रमुख प्रांतों में विभाजित करता है, पश्चिमी यूपी (उत्तराखंड सहित), ब्रज, अवध, गोरक्ष, काशी और बुंदेलखंड। हर प्रांत में 10 से 15 जिला प्रचारकों का कार्यक्षेत्र बदला गया है। संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने इसे एक नियमित प्रक्रिया बताया है, जिसका उद्देश्य प्रचारकों की दक्षता और कार्यकुशलता बढ़ाना है। संघ इस समय अपने शताब्दी वर्ष की तैयारी में जुटा है, जिससे यह फेरबदल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

Also Read- ‘राजनीतिक हथियार के रूप में न हो इस्तेमाल…’, जातिगत जनगणना पर RSS का बयान

वैचारिक समन्वय और चुनावी समीकरण

संघ पदाधिकारियों ने इस बात से इनकार नहीं किया कि यह बदलाव आगामी चुनावों से पूरी तरह असंबंधित है। आरएसएस और भाजपा के बीच वैचारिक समन्वय लंबे समय से चला आ रहा है और चुनावी मौसम में यह संबंध और गहरा हो जाता है। ऐसे में संगठन में की गई यह कवायद भाजपा के लिए भी जमीन तैयार करने का कार्य कर सकती है।

राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में रणनीतिक कदम

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक कुमार पंकज का मानना है कि आरएसएस और भाजपा मिलकर उत्तर प्रदेश में अपनी स्थिति को और मज़बूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। यूपी में 80 लोकसभा सीटें हैं, जो किसी भी दल के लिए निर्णायक साबित हो सकती हैं। इसलिए, संघ के भीतर किया गया यह पुनर्गठन भाजपा की आगामी रणनीति का एक अहम हिस्सा माना जा सकता है।

Also Read- ‘जातिवाद के नाम पर हो रही राजनीति देश की प्रगति में बाधा बन रही…’, बोले RSS प्रमुख मोहन भागवत

लोकसभा में सीटों में गिरावट के बाद संघ हुआ सक्रिय

2024 लोकसभा चुनावों में भाजपा की सीटें घटकर 33 रह गईं, जबकि 2019 में यह आंकड़ा 62 था। इस गिरावट ने संघ को सतर्क कर दिया है। अब वह न केवल भाजपा की गतिविधियों पर नजर रख रहा है, बल्कि चुनावी स्तर पर सहयोग के लिए भी तैयार दिखता है। संगठनात्मक गतिविधियों में तेजी और प्रचारकों का पुनर्गठन इस बात का संकेत है कि संघ अब पहले से अधिक सक्रिय भूमिका निभाने जा रहा है।

(देश और दुनिया की खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते है।)