आज से ठीक 28 साल पहले अयोध्या में भगवान श्रीराम के जन्मस्थान की जगह पर बनाई गई बाबरी मस्जिद लाखों भक्तों द्वारा ध्वस्त की गई थी. राम भक्त आज के दिन शौर्य दिवस के रूप में मनाते हैं. मुगल आक्रांताओं ने हिंदुओं के लाखों मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई, जिनमें केशव देव मंदिर मथुरा, अटाला देव मंदिर जौनपुर, काशी विश्वनाथ वाराणसी, रुद्रा महालया मन्दिर गुजरात, भद्रकाली मन्दिर गुजरात, अदीना मस्जिद बंगाल, विजया मन्दिर विदिशा मध्य प्रदेश और मस्जिद कुवतुल इस्लाम कुतुब मीनार शामिल हैं. वहीं हरिद्वार में एक मंदिर ऐसा भी है जिसे मुगलों ने तोड़कर मस्जिद बनाने की भरपूर कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हुए, वहीं आज उसी मंदिर को 270 मीटर ऊंचा बनाने की तैयारी चल रही है.
उत्तराखंड में हरिद्वार जनपद मायापुरी के नाम से जाना जाता था. हरिद्वार में स्थित मायादेवी मंदिर (Mayadevi Temple) के कारण ही यहां का पौराणिक नाम मायापुरी था. मायादेवी मंदिर की व्यवस्था साधु संतों का सबसे बड़ा अखाड़ा जूना अखाड़ा संभालता है. साधु संत पिछले कई समय से प्रयासरत थे कि मायादेवी मंदिर को विशाल बनवाया जाए. विभागों की आपत्ति की वजह से यहां काम नहीं हो पा रहा था. वर्ष 2017 में साधु-संतों की बैठक में इस बात का प्रस्ताव रखा गया था कि मायादेवी मंदिर को सबसे ऊंचा मंदिर बनाया जाए.
270 मीटर ऊंचाई का बने गा मंदिर
इस काम को 2021 से पहले किया जाए. विभागों ने फिर आपत्ति जताई और इसे टाल दिया गया. शुक्रवार को इस प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. फिलहाल उत्तराखंड कैबिनेट ने माया देवी मंदिर की ऊंचाई 270 मीटर और जूना अखाड़े में ही स्थित भैरव मंदिर की ऊंचाई 197 मीटर तक ऊंचा उठाने की मंजूरी दे दी है. अब बहुत जल्द ही नक्शा इत्यादि औपचारिकताएं पूरी होने के बाद मंदिर के जीर्णोद्धार का काम पूरा हो जाएगा. शासनादेश सौंपने पहुंचे मेलाधिकारी दीपक रावत ने माया देवी मंदिर में पूजा अर्चना के साथ ही साधु-संतों का आशीर्वाद भी लिया.
तैमूर लंग किया था मंदिर तोड़ने का प्रयास
जूना अखाड़े के संरक्षक हरीगिरी महाराज ने बताया कि उनकी इच्छा थी कि माया देवी मंदिर को लोग हरिद्वार के किसी भी स्थान से देख सकें. नेपाल से लेकर देश के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद तक से इस मंदिर का संबंध जुड़ा है. मुस्लिम शासक तैमूर लंग तक ने इसे तोड़ने की कोशिश की, लेकिन माता माया देवी आज भी इस मंदिर में साक्षात विराजमान हैं और भक्तों का कल्याण करती हैं.
जानिए क्या है मंदिर की मान्यता?
माया देवी मंदिर समस्त 51 शक्तिपीठों में से प्रमुख शक्तिपीठ है. मान्यता है कि एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ किया, लेकिन उसमें भगवान शिव को नहीं बुलाया. लेकिन, सती माता यज्ञ में शामिल होने पहुंची. इस दौरान यज्ञ में राजा दक्ष ने शिव जी के लिए अपशब्द बोल उनको अपमानित किया. पति के अपमान से क्रोधित होकर माता सती ने यज्ञ में प्राणों की आहुति दे दी. इस पर शिव जी क्रोधित हो उठे. कहते हैं कि व्यथित होकर भगवान शिव शंकर सती के शव को लेकर विचरण करने लगे.
माया देवी मंदिर स्थल में गिरी थी माता सती की नाभि
शिव जी की दशा से विष्णु भगवान भी दुखी हो गए. विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से सती के 51 टुकड़े कर डाले. टुकड़े जहां-जहां पर गिरे, उन जगहों पर शक्ति पीठों की स्थापना हुई. मान्यता है कि माया देवी मंदिर स्थल में ही सती का हृदय और नाभि गिरी थी. इसलिए इस स्थान को सभी शक्तिपीठों में प्रमुख माना गया है. यहां पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
स्वयं निर्मित है माया देवी मंदिर
मायादेवी मंदिर दर्शन के बाद भैरव बाबा के दर्शन और पूजन की भी परंपरा है. मान्यता है कि यहीं से सभी शुभ काम शुरू होते हैं. साफ मन से दोनों भगवान के दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. कहा जाता है कि ये मंदिर स्वयं निर्मित मंदिर है, जो जूना अखाड़ा छावनी के परिसर में स्थित है.
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