मिलिए तीन तलाक के खिलाफ पहली जनहित याचिका दाखिल करने वाले वकील से, यूँ हीं इन्हें ‘पीआइएल मैन’ नहीं कहा जाता

मध्यम कद काठी, सामान्य पहनावा और चेहरे पर मुस्कान, पहली नजर में आपको कुछ खास नजर नहीं आएगा लेकिन जब आप सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक विषयों पर चर्चा करेंगे तब आपको एक अलग एहसास होगा. संविधान की बात करें या सनातन धर्म की, जितनी पकड़ वेद और पुराण पर, उतनी ही पकड़ बाइबिल और कुरान पर. जी हाँ, हम बात कर रहे हैं तेज तर्रार भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की. चुनाव सुधार, प्रशासनिक सुधार, पुलिस सुधार, न्यायिक सुधार, शिक्षा सुधार और राष्ट्रवाद उनका पसंदीदा कार्यक्षेत्र है और उनकी अधिकांश जनहित याचिकाएं इसी विषय पर हैं. आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि अश्विनी उपाध्याय पिछले पांच साल में सुप्रीम कोर्ट में 50 से अधिक जनहित याचिका दाखिल कर चुके हैं इसीलिए उन्हें पीआइएल मैन कहा जाता है. जिस तीन तलाक की चर्चा पूरे देश में होती है उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पहली जनहित याचिका अश्विनी उपाध्याय ने ही दाखिल किया था और इस मामले में वे इकलौते हिंदू और पुरुष याचिकाकर्ता थे और इनकी याचिका के बाद ही मुस्लिम महिलाएं ने कोर्ट कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

 

संविधान निर्माता बाबा साहब आंबेडकर, सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपना आदर्श मानने वाले अश्विनी उपाध्याय एकात्म मानववाद दर्शन के प्रणेता दीनदयाल उपाध्याय को अपना गुरु मानते हैं. भाजपा का आधिकारिक प्रवक्ता होने के बावजूद आजतक उन्होंने कभी भी राजनीति से प्रेरित एक भी जनहित याचिका दाखिल नहीं किया. उपाध्याय भारत के इकलौते नेता हैं जो जनहित याचिकाओं में अपनी ही सरकार को पक्षकार बनाते हैं. उनकी ज्यादातर याचिकाओं में भारत सरकार का कानून मंत्रालय और चुनाव आयोग पक्षकार हैं. उपाध्याय की राष्ट्रवादी सोच उनकी जनहित याचिकाओं से भी स्पष्ट होती है. संविधान के आर्टिकल 35A, आर्टिकल 370 और कश्मीर के अलग संविधान को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिया है जिस पर शीघ्र सुनवाई हो सकती है.

 

महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए अश्विनी उपाध्याय ने तीन तलाक के बाद बहुविवाह, हलाला, मुताह, मिस्यार और शरिया अदालत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल किया और अब इन सभी मामलों पर संविधान पीठ सुनवाई करेगी. भारत में समान शिक्षा और समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग वाली उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दिया. भारत में रहने वाले रोहिंग्या और बंगलादेशी घुसपैठियों को बाहर भेजने वाली उनकी जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक- बहुसंख्यक का विभाजन समाप्त करने और अल्पसंख्यक की स्पस्ट परिभाषा के लिए भी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल किया जिसे कोर्ट ने केंद्र सरकार के पास भेज दिया.

 

चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी बनाने, पार्टी पदाधिकारी बनने तथा सरकारी नौकरियों के लिए “हम दो-हमारे दो” नियम अनिवार्य करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जनसँख्या नियंत्रण जरुरी है लेकिन यह केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है. माननीयों के मुकदमों का फैसला एक साल में करने के लिए विशेष अदालत बनाने, सजायाफ्ता के चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी बनाने, पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध की मांग वाली याचिका पर बहुत जल्द ही फैसला होने वाला है. चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और अधिकतम आयु सीमा का निर्धारण करने की मांग वाली याचिका भी कोर्ट में लंबित है. उपाध्याय की जनहित याचिका के कारण ही अब चुनाव लड़ने वालों को अपना आपराधिक रिकॉर्ड मीडिया में प्रकाशित करना पड़ता है.

 

भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए भी अश्विनी उपाध्याय ने कई जनहित याचिकाएं दाखिल किया है. केंद्र में लोकपाल तथा सभी राज्यों में लोकायुक्त और सभी सरकारी विभागों में सिटीजन चार्टर लागू करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई चल रही है. 100 रूपये से बड़े नोट बंद करने, 10 हजार रूपये से महंगी वस्तुओं के कैश लेन-देन पर प्रतिबंध लगाने और चल-अचल संपत्ति को आधार से लिंक करने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. घूसखोरों जमाखोरों मिलावटखोरोंकालाबाजारियों और हवाला कारोबारियों तथा बेनामी और आय से अधिक संपत्ति के मालिकों की शत-प्रतिशत संपत्ति जब्त करने और आजीवन कारावास के लिए भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा था.

 

उपाध्याय के जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा में हुए जवाहर बाग़ कांड की सीबीआई जाँच का आदेश दिया था. गरीबों को मुफ्त में कंडोम और गर्भ निरोधक गोलियां बांटने का आदेश भी उनकी ही जनहित याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिया था. पूरे देश में शराब पर प्रतिबंध की मांग वाली उनकी जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून बनाना सरकार का कार्य है. चुनाव आयोग को पूर्ण स्वायत्तता देने और एक व्यक्ति के दो जगह से चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध की मांग वाली उनकी याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई हो सकती है. राजनीतिक दलों को सूचना अधिकार के दायरे में लाने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. 6-14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए हिंदी और संस्कृत विषय का पठन-पाठन अनिवार्य करने वाली उनकी जनहित याचिका को भी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के पास भेज दिया.

 

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