मुकेश कुमार संवाददाता, गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हीरक जयंती वर्ष के अवसर पर समाजशास्त्र विभाग द्वारा *आईसीएसएसआर अनुदानित एवं इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी, नई दिल्ली के सहयोग से एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। यह सम्मेलन *21 एवं 22 मार्च 2025* को होगा, जिसमें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ अपने विचार साझा करेंगे। “भारतीय ज्ञान परंपरा में समाजशास्त्रीय विमर्श”* विषय पर आयोजित इस महत्वपूर्ण सम्मेलन का *ब्रोशर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन* ने औपचारिक रूप से जारी किया।
कुलपति प्रो. पूनम टंडन का संदेश
ब्रोशर विमोचन के अवसर पर कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अंतर्गत भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्व को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। यह नीति भारत की सनातन ज्ञान और विचारधारा की समृद्ध परंपरा पर आधारित है। इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भारतीय ज्ञान परंपरा के समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण पर गहन विमर्श होगा, जिससे नई पीढ़ी का हमारी प्राचीन ज्ञान प्रणाली की ओर झुकाव बढ़ेगा।”
समाजशास्त्र विभाग का दृष्टिकोण
समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. अनुराग द्विवेदी ने बताया कि इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाजशास्त्र के क्षेत्रीय और वैश्विक विकास में योगदान देना है। उन्होंने कहा, “इस आयोजन के माध्यम से समाजशास्त्रियों, शिक्षकों और विद्यार्थियों को भारतीय समाजशास्त्र की विषय-वस्तु और शिक्षण पद्धतियों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने का प्रयास किया जाएगा।” Also Read सपा मुखिया का बयान तुष्टिकरण की राजनीति का परिचायक – रवि किशन
सम्मेलन का स्वरूप और सत्रों की रूपरेखा
सम्मेलन समन्वयक डॉ. मनीष पांडेय ने बताया कि यह आयोजन दो दिवसीय होगा, जिसमें उद्घाटन सत्र, समापन सत्र, दो प्लेनरी सत्र, एक सिम्पोज़ियम और छह तकनीकी सत्रों का आयोजन किया जाएगा। इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी की चार रिसर्च कमेटियों का इस संगोष्ठी में विशेष सहयोग रहेगा, जिससे संबंधित विषयों पर विस्तृत चर्चा होगी। इसके साथ ही, सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) से जुड़े मुद्दों को भी शामिल किया गया है।
इस अवसर पर पूर्व अध्यक्ष प्रो. संगीता पांडेय और डॉ. दीपेंद्र मोहन सिंह सहित समाजशास्त्र विभाग के अन्य प्राध्यापक एवं शोधार्थी उपस्थित रहे। यह सम्मेलन समाजशास्त्र के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा, जो भारतीय ज्ञान परंपरा के गहन अध्ययन को प्रोत्साहित करेगा