बार-बार बीजेपी को बगावती तेवर, क्या है अनुप्रिया पटेल की सियासत

अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल (Anupriya Patel) के रवैये ने एक बार फिर सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है. योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार पर हमलावर अनुप्रिया पटेल अब जातीय जनगणना की मांग कर रही हैं. अनुप्र‍िया पटेल का यह रुख कांग्रेस नेता राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी सपा प्रमुख अखिलेश यादव समेत विपक्ष दलों से मेल खा रहा है. अब ऐसे में सवाल उठ रहा है कि भाजपा की पुरानी सहयोगी पार्टी अपना दल आखिर बार-बार बगावती तेवर क्यों दिखा रही है.

अपना दल (एस) उत्तर प्रदेश में भाजपा की पुरानी सहयोगी पार्टी है और जाति जनगणना की मांग को दोहराना एक बड़े घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि बीजेपी अब तक इस पर कोई स्टैंड लेती नहीं दिख रही है. पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक के दौरान अनुप्र‍िया ने कहा कि केंद्र को जाति जनगणना करानी चाहिए, ताकि उन लोगों को लाभ मिल सके, जिनके लिए यह तय है. वहीं, मीडिया से बातचीत में अनुप्र‍िया पटेल ने निजी क्षेत्र में चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों में आरक्षण लागू करने की अपनी मांग भी दोहराई.

उन्होंने आउटसोर्सिंग की व्यवस्था को कैंसर से तुलना करते हुए कहा, “निजी क्षेत्र में आउटसोर्सिंग के माध्यम से चतुर्थ श्रेणी के पदों पर की जाने वाली नियुक्तियों में आरक्षण का पालन नहीं किया जाता. इससे समाज के वंचित वर्ग से आने वाले उम्मीदवारों के हितों को नुकसान पहुंचता है.”

अनुप्र‍िया पटेल अपने उठाए मुद्दों में मुख्य तौर पर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को निशाने पर ले रही हैं. बीती 2 जुलाई को अपना दल के संस्थापक सोने लाल पटेल की 75वीं जयंती के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में अनप्रिया पटेल ने 69 हजार शिक्षक भर्ती में आरक्षण की गड़बड़ी के आरोप का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा था कि प्रदेश सरकार 69 हजार शिक्षक भर्ती में आरक्षण की गड़बड़ी अभी तक ठीक नहीं करा पाई हैं, जबकि वे राज्य सरकार के सामने यह मामला कई बार उठा चुकी हैं.

वहीं, इससे पहले लोकसभा चुनाव के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखकर राज्य सरकार की सिर्फ इंटरव्यू पर आधारित भर्ती वाले आरक्षित पदों पर पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के साथ ही जनजाति वर्ग के अभ्यर्थी को न चुने जाने का आरोप लगाकर शिकायत की थी.

राजनीतिक जानकारों की माने तो अनुप्रिया पटेल द्वारा सीएम को भेजे गए पत्र के दो-आयामी उद्देश्य थे, पहला, उन समुदायों को लुभाने की कोशिश करना जो उनकी पार्टी से दूर चले गए हैं, और दूसरा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में योगी के विरोधियों के बीच कुछ बढ़त हासिल करना.

इसके अलावा लोकसभा चुनाव नतीजों ने ओबीसी के प्रमुख घटक कुर्मियों में निष्ठा बदलने का संकेत दिया है. जिस तरह से ओबीसी मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा इंडिया गठबंधन के साथ गया उसने अपना दल (एस) के सामने बड़ी चुनौती पैदा कर दी है. अनुप्र‍िया पटेल अपने परंपरागत कुर्मी वोट के छिटकने से भी काफी दबाव में हैं. यही वजह है कि यूपी की सरकारी भर्तियों में आरक्षण का मुद्दा उठाकर अनुप्रिया पटेल यह संदेश देने की कोशि‍श कर रही हैं कि उनकी पार्टी ही पिछड़ों की असली हितैषी है.

आरक्षण के मुद्दे पर जिस तरह अनुप्र‍िया पटेल योगी सरकार पर हमलावर हैं उसे दबाव की राजनीति माना जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि जिस तरह सिराथू से विधायक और अनुप्र‍िया पटेल की बहन पल्लवी पटेल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तवज्जो दे रहे हैं, उससे भी केंद्रीय मंत्री काफी खफा हैं. इसके अलावा लोकसभा चुनाव में जीतने वाले दो मंत्रियों के स्थान पर प्रदेश मंत्रिमंडल में होने वाले विस्तार और एमएलसी के रिक्त पदों पर चुनाव को देखते हुए ही अनुप्रिया ने आरक्षण का मुद्दा उठाना शुरू किया है जिससे प्रदेश सरकार पर दबाव बनाया जा सके. वे पहले से ही प्रदेश सरकार में अपने कोटे से एक और मंत्री बनाने का मुद्दा उठाती रही हैं. अब देखना है कि अनुप्र‍िया पटेल का रुख अपना दल (एस) को कितना फायदा पहुंचाता है.

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