UP उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण की प्रक्रिया लगातार विवादों में घिरती जा रही है। ट्रांजेक्शन एडवाइजर (TA) की नियुक्ति में एक बार फिर पेंच फंस गया है, क्योंकि निविदा में केवल दो कंपनियां ही शामिल हुई हैं, जबकि प्रक्रिया के लिए न्यूनतम तीन कंपनियों की भागीदारी जरूरी है। इसमें भी एक कंपनी ऐसी है, जो फरवरी 2026 तक बैन है। इस स्थिति को देखते हुए उपभोक्ता परिषद ने निविदा प्रक्रिया की सीबीआई जांच की मांग की है।
शनिवार को निविदा भरने की अंतिम तिथि थी, लेकिन सिर्फ दो कंपनियों ने ही हिस्सा लिया। पहले यह उम्मीद थी कि सात कंपनियां भाग लेंगी, लेकिन अंततः केवल दो ही आईं। नियमों के अनुसार, अगर कम से कम तीन कंपनियां हिस्सा नहीं लेती हैं, तो तकनीकी निविदा खोली नहीं जा सकती। इसके बावजूद सरकार इसे आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने दावा किया कि निविदा में शामिल दो कंपनियों में से एक सऊदी अरब की है, जो एक साल के लिए ब्लैकलिस्टेड है। यह कंपनी फरवरी 2026 तक किसी भी निविदा में भाग नहीं ले सकती, फिर भी इसे प्रक्रिया में शामिल किया गया है। वर्मा ने फाइनेंशियल रिपोर्टिंग काउंसिल (FRC), यूके, और भारत की नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी (NFRA) को इस मामले से अवगत कराते हुए सीबीआई जांच की मांग उठाई है।
निजीकरण की प्रक्रिया का विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने कड़ा विरोध किया है। समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि निजीकरण का प्रस्ताव तैयार करने में नियमों की अनदेखी की गई है। यदि ट्रांजेक्शन एडवाइजर की तकनीकी निविदा खोलने की कोशिश की गई, तो 3 मार्च को शक्ति भवन और सभी जिला मुख्यालयों पर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया जाएगा।
संघर्ष समिति का कहना है कि निविदा में शामिल कंपनियां “कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट” (हितों के टकराव) के दायरे में आती हैं। जब तक तीन कंपनियां भाग नहीं लेतीं, तब तक बिडिंग प्रक्रिया संवैधानिक रूप से वैध नहीं मानी जा सकती। ऐसे में इस निविदा को निरस्त करने की मांग की गई है।
ऊर्जा क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि अगर बोली प्रक्रिया में पर्याप्त प्रतिस्पर्धा नहीं होती, तो यह पारदर्शी नहीं रह जाती। सिर्फ दो कंपनियों की भागीदारी और उसमें भी एक के ब्लैकलिस्टेड होने से निविदा की निष्पक्षता संदेह के घेरे में है।CBI जांच की मांग पर केंद्र सरकार कोई कदम उठाएगी?अब देखना होगा कि यूपी सरकार इस विवादित निविदा प्रक्रिया पर क्या फैसला लेती है और क्या कर्मचारियों का विरोध इसे रोकने में सफल हो पाएगा या नहीं।