जानें आदर्श आचार संहिता और उसके नियम, क्या है उल्लंघन पर अधिकतम सजा

भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission Of India) ने रविवार शाम संवाददाता सम्मेलन बुलाई है. माना जा रहा है कि आज शाम करीब पांच बजे दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में होने वाली इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में आयोग लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है. चुनाव कार्यक्रम की घोषणा होते ही आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी. आइए आपको बताते हैं कि आखिर आदर्श आचार संहिता होती क्या है.



किसके लिए होता है आदर्श आचार संहिता


आदर्श आचार संहिता वो नियम है जो चुनाव के दौरान प्रत्याशियों और राजनीतिक पार्टियों पर लागू होती है। जिसका पालन करना सभी पक्षों को लिए अनिवार्य होता है.



क्या होती है आर्दश आचार संहिता


चुनाव की तारीखों के ऐलान होने के बाद से चुनाव संपन्न होने तक इसका पालन होता है. कुछ मामलों में नई सरकार अथवा शपथ ग्रहण के बाद इसे समाप्त किया जाता है.


  • आदर्श आचार संहिता चुनाव को कई हिस्सों में बांटा गया है। जैसे सभा और जुलूस के लिए नियम, सत्ता में काबिज पार्टी के लिए नियम, मतदान के दिन के लिए नियम.

  • आदर्श आचार संहिता लागू होने के साथ ही देश अथवा प्रदेश में अधिकारियों और कर्मचारियों के तबादले पर रोक लग जाती है. अगर तबादला होता भी है तो वो सरकार नहीं बल्कि चुनाव आयोग के आदेश पर होता है.

  • किसी भी तरह के उद्घाटन और शिलान्यास जैसे कार्यक्रमों की घोषणा कोई भी मंत्री या मुख्यमंत्री अथवा स्थानीय स्तर पर अधिकारी या जनप्रतिनिधि नहीं कर सकते हैं.

  • किसी भी नए प्रोजेक्ट के लिए वित्तीय स्वीकृति नहीं दी जा सकती है. न ही कोई बजट जारी किया जा सकता है. यही नहीं कोई भी नई नियुक्ति भी नहीं होती है. कुछ खास परिस्थितियों में चुनाव आयोग से इजाजत लेनी होगी.

  • सत्ताधारी दल अपनी उपलब्धियों का प्रचार प्रसार सरकारी खर्च पर नहीं कर सकते हैं.

  • मंत्रिमंडल की कोई भी बैठक नहीं हो सकती है.

  • आदर्श आचार संहिता में अब राजनीतिक दलों का घोषणा पत्र भी शामिल होता है. इसके तहत राजनीतिक दलों को यह बताना होता है कि घोषणा पत्र में किए गए वादों को वो कैसे पूरा करेंगे.

  • चुनावी दौरों के लिए सरकार के किसी भी मंत्री को सरकारी वाहन के इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं होती है. किसी भी निजी या राजनीतिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए भी सरकारी वाहन के इस्तेमाल पर मनाही होती है.

  • प्रत्याशी और राजनीतिक दलों को किसी भी तरह की बैठक, सभा और रैली करने से पहले चुनाव आयोग से इजाजत लेनी होगी साथ ही इसकी जानकारी स्थानीय पुलिस को भी देनी होगी.

  • प्रचार प्रसार के लिए किए जाने वाले हर तरह के खर्च का लिखित और प्रमाण भी चुनाव आयोग को देना होगा. जिससे यह तय हो सके की प्रत्याशी ने चुनाव लड़ने के लिए आयोग द्वारा तय राशि ही खर्च की है.

  • किसी भी प्रत्याशी और राजनीतिक दल को कोई ऐसा बयान या काम नहीं करना चाहिए जिससे सामुदिक विवाद पैदा हो. किसी भी हालात में धर्म या जाति के आधार पर मतदान के लिए अपील नहीं होनी चाहिए.

  • प्रचार प्रसार के लिए किसी भी धार्मिक स्थल जैसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्चा अथवा अन्य का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

  • किसी भी प्रत्याशी को बगैर चुनाव आयोग के इजाजत के लिए किसी भी जमीन, बिल्डिंग, ऑफिस या खाली पड़े स्थान का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. अगर जरुरी हो तो इसके लिए चुनाव आयोग से अनुमित लेना होगा.

  • चुनाव आयोग ऐसे हर कार्यक्रम पर नजर रखता है जहां प्रत्याशी जाता है. ऐसे कार्यक्रमों की वीडियोग्राफी भी कराई जाती है.


मतदान के लिए क्या होते हैं नियम

  • मतदान वाले दिन वोटरों को लाने और ले जाने के लिए राजनीतिक दल या प्रत्याशी वाहन का उपयोग नहीं कर सकते हैं.

  • वोटिंग वाले दिन पोलिंग बूथ के 100 मीटर के दायरे में किसी भी तरह के प्रचार की मनाही होती है. मतदान से 48 घंटे पहले राजनीतिक दल और प्रत्याशी कोई भी रैली नहीं कर सकते हैं.

  • पोलिंग बूथ पर प्रत्याशी की ओर लगाए जाने वाले कैंप

  • में कोई भी पोस्टर, झंडा या पार्टी के प्रचार के लिए सामाग्री नहीं रखी जा सकती है. साथ ही यहां किसी तरह के खाद्य पदार्थ और नशीले उत्पादों के रखने पर भी मनाही होती है.

क्या होता है कार्रवाई का आधार

आचार संहिता के उल्लंघन के अधिकतर मामलों में कार्रवाई का आधार चुनाव अधिकारियों से की गई शिकायत होती है. कई मामलों में आयोग या चुनाव अधिकारी खुद मिली सूचना या मीडिया की खबरों के आधार पर भी कार्रवाई करते हैं.


3 साल की है अधिकतम सजा

ऐसे अधिकतर मामलों में एफ आईआर दर्ज नहीं की जाती. वैसे मामलों में सिर्फ नोटिस देकर मामला का निबटारा हो जाता है. अगर ऐसे मामले में एफ आईआर दर्ज की जाती है तो फिर अधिकतम 3 साल की सजा या न्यूनतम 3 महीने की सजा का प्रावधान है. कई मामलों में आर्थिक दंड भी लगाने का प्रावधान है.


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