पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में खासतौर पर मनाया जाने वाला त्यौहार छठ पूजन की शुरुआत हो चुकी है. पूर्वांचल के इस ‘नहाय-खाय’ में सूर्यदेव की आराधना एवं पूजन होता है. यह पर्व चार दिन तक चलता है. नहाय खाय के अगले दिन खरना होगा जिसे इस महापर्व का दूसरा और सबसे कठिन चरण माना जाता है. अथर्ववेद के अनुसार भाष्कर की मानस बहन षष्ठी देवी बच्चों की रक्षा करती हैं. ऐसा माना जाता है कि षष्ठी देवी प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं तथा ये देवी भगवान विष्णु द्वारा रची गई एक माया हैं जो बच्चों की रक्षक हैं.
चार दिन तक चलने वाला यह महापर्व बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश से निकलकर अन्य राज्यों में तेजी से बढ़ रहा है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में यमुना पर कई जगह सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. खरना में वृत रखने वाले शाम को पूजा के बाद खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं जिसके बाद निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. नहाय खाय में लौकी की सब्जी को अनिवार्य माना जाता है. इसे बनाने में खास ध्यान रखा जाता है. इस दौरान दाल, सब्जी आदि में लहसुन प्याज आदि वर्जित हैं.
घी और चने की सब्जी शुद्ध देशी घी में बनाई जाती है, जिसे परिवार के अन्य लोग प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं. नहाय खाय के दिन प्रसाद बनाने के लिए गेहूं को धोया और सुखाया जाता है. इसके बाद इससे आटा तैयार किया जाता है. इसके बाद इससे आटा तैयाय कर खरना के लिए रोटी और छठ के लिए ठेकुआ बनाया जाता है. इसे बनाते समय पवित्रता और शुद्धता का खास ख्याल रखा जाता है. खरना के बाद व्रती बिना अन्न-जल के 24 घंटे से ज्यादा समय तक भगवान भास्कर और माता षष्ठी की आराधना करते हैं.
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