मायावती शासनकाल में हुए स्मारक घोटाले को लेकर ईडी की टीमों ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश में 7 जगहों पर छापेमारी की. यह छापा मायावती के सबसे करीबी माने जाने वाले नसीमद्दीन सिद्दीकी के खास सिपहसालार सीपी सिंह के 7 ठिकानों पर पड़ा है. जिस जांच में ये छापा पड़ा है वो मामला है 1 जनवरी 2014 का है.
ये स्मारक मायावती के कार्यकाल 2007 से 2011 के बीच में बने थे. 1400 करोड़ से ज्यादा के इस घोटाले की जांच विजलेंस और ईडी की टीमें कर रही हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मायावती राज में हुए स्मारक घोटाले को लेकर बेहद सख्त रुख अपनाते हुए इस मामले में चल रही विजलेंस जांच की स्टेटस रिपोर्ट तलब की थी.
14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार के घोटाले का आरोप
गौरतलब है कि मायावती ने 2007 से 2012 तक के अपने कार्यकाल में लखनऊ-नोएडा में अम्बेडकर स्मारक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, गौतमबुद्ध उपवन, ईको पार्क, नोएडा का अम्बेडकर पार्क, रमाबाई अम्बेडकर मैदान और स्मृति उपवन समेत पत्थरों के कई स्मारक तैयार कराए थे. इन स्मारकों पर सरकारी खजाने से 41 अरब 48 करोड़ रूपये खर्च किये गए थे. आरोप लगा था कि इन स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर घपला कर सरकारी रकम का दुरूपयोग किया गया है. सत्ता परिवर्तन के बाद इस मामले की जांच यूपी के तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा को सौंपी गई थी. लोकायुक्त ने 20 मई 2013 को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में 14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार का घोटाला होने की बात कही थी.
लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट में कुल 199 लोग आरोपी
लोकायुक्त की रिपोर्ट में कहा गया था कि सबसे बड़ा घोटाला पत्थर ढोने और उन्हें तराशने के काम में हुआ है. जांच में कई ट्रकों के नंबर दो पहिया वाहनों के निकले थे. इसके अलावा फर्जी कंपनियों के नाम पर भी करोड़ों रूपये डकारे गए. लोकायुक्त ने 14 अरब 10 करोड़ रूपये से ज़्यादा की सरकारी रकम का दुरूपयोग पाए जाने की बात कहते हुए डिटेल्स जांच सीबीआई या एसआईटी से कराए जाने की सिफारिश की थी. सीबीआई या एसआईटी से जांच कराए जाने की सिफारिश के साथ ही बारह अन्य संस्तुतियां भी की गईं थीं. लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट में कुल 199 लोगों को आरोपी माना गया था. इनमे मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा के साथ ही कई विधायक और तमाम विभागों के बड़े अफसर शामिल थे.
अखिलेश सरकार ने की जांच की शिफारिश
पूर्व की अखिलेश सरकार ने लोकायुक्त द्वारा इस मामले में सीबीआइ या एसआईटी जांच कराए जाने की सिफारिश को नजरअंदाज करते हुए जांच सूबे के विजिलेंस डिपार्टमेंट को सौंप दी थी. विजिलेंस ने एक जनवरी साल 2014 को गोमती नगर थाने में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत उन्नीस नामजद व अन्य अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर अपनी जांच शुरू की. क्राइम नंबर 1/2014 पर दर्ज हुई एफआईआर में आईपीसी की धारा 120 B और 409 के तहत केस दर्ज कर जांच शुरू की गई. तकरीबन पौने पांच साल का वक्त बीतने के बाद भी अभी तक न तो इस मामले में चार्जशीट दाखिल हो सकी है और न ही विजिलेंस अपनी जांच पूरी कर पाई है.
कोर्ट ने कहा था- अरबों के घोटाले का कोई भी दोषी कतई बचना नहीं चाहिए
भावेश पांडेय की पीआईएल में विजिलेंस द्वारा राजनीतिक दबाव में जांच को लटकाए जाने और इस मामले में लीपापोती किये जाने के आरोप लगाए गए थे. पीआईएल के जरिये लोकायुक्त की सिफारिश के तहत पूरा मामला सीबीआई को ट्रांसफर किये जाने की अपील भी की गई है. अर्जी में यह भी कहा गया है कि मामले में चूंकि तमाम हाई प्रोफ़ाइल लोग आरोपी हैं, इसलिए इसमें लीपापोती की जा रही है. याचिकाकर्ता ने सीधे तौर पर मायावती का नाम लिए बिना यह आशंका जताई है कि अगर सीबीआई या एसआईटी इस मामले में जांच करती है तो कई और चौंकाने वाले हाई प्रोफ़ाइल लोगों की मिलीभगत भी सामने आ सकती है. अदालत ने इस मामले में सख्त रवैया अपनाते हुए विजिलेंस जांच की स्टेटस रिपोर्ट एक हफ्ते में तलब कर ली और टिप्पणी की कि अरबों के घोटाले का कोई भी दोषी कतई बचना नहीं चाहिए, भले ही वह कितना भी रसूखदार क्यों न हो.
जानें क्या है स्मारक घोटाला?
1– कैग रिपोर्ट 2012 के अनुसार, चुनार (मिर्जापुर) से पत्थर लेकर उसे नक्काशी के लिए 670 किमी दूर बयाना (राजस्थान) भेजा गया. फिर 450 किमी दूर लखनऊ लाया गया. यदि चुनार में ही पत्थर काटने वालों को नियुक्त कर नक्काशी कराते तो 15.60 करोड़ परिवहन व्यय बच सकता था. रिपोर्ट में बलुआ पत्थरों के भुगतान पर भी सवाल खड़े किए गए थे.
2– नवंबर 2007 में चहारदीवारी बनाने को 1890 रुपये प्रति घन फुट, ब्लाक स्थापना के लिए 1750 रुपये प्रति घन फुट और फ्लोरिंग के लिए 2400 रुपये प्रति वर्गमीटर की दर पर ठेका दिया गया. दिसंबर 2008 में संयुक्त क्रय समिति ने अपने आप कार्यो की दर घटा दी. चहारदीवारी के लिए 1300 रुपये घन फुट, ब्लाक के लिए 1750 से 1250 रुपये घन फुट व फ्लोरिंग के लिए 1750 रुपये प्रति वर्ग मीटर दर तय कर दी. यह कटौती पहले की जाती तो 22.16 करोड़ रुपये बच जाते.
3– थरमोकोल के लिए भी 25 रुपये प्रति घनफुट का भुगतान किया गया, जिसकी जरूरत ही नहीं थी. कैग ने रेडी मिक्स कंक्रीट के लिए 11.34 करोड़ अधिक खर्च करने समेत मिट्टी व बालू के आपूर्तिकर्ताओं को अधिक भुगतान, 4.51 करोड़ के सेवा कर के अधिक भुगतान पर भी सवाल उठाए गए थे.
4– खर्चों के हिसाब-किताब की मानें तो…कांशीराम-मायावती की मूर्तियों पर 6.68 करोड़, पत्थर के 60 हाथियों पर 52 करोड़, अंबेडकर परिवर्तन स्थल पर 1.20 अरब, स्क्रीन वाल पर 14 करोड़, रखरखाव पर 80 करोड़, स्मारकों के सुदृढ़ीकरण पर 2.31 अरब, 2.03 अरब म्यूजियम पर 2.72 अरब, कांशीराम स्मारक के लिए और पार्क के सौंदर्यीकरण के लिए 90 करोड़ खर्च हुए. सारे काम राजकीय निर्माण निगम ने द्वारा कराए गए. इस दौरान निगम के प्रबंध निदेशक सीपी सिंह थे. सीपी सिंह को बतौर ईनाम मायावती सरकार ने पहले दो साल फिर छह महीने का एक्सटेंशन दिया था.
ऐसे होता था खेल
लखनऊ और नोएडा में बने पार्क में प्रयोग पत्थरों के बारे में अधिकांश लोग यही जानते हैं कि इसके लाल पत्थर जयपुर से आए हैं लेकिन ऐसा नहीं है यह पत्थर जयपुर नहीं बल्कि मिर्जापुर के हैं यह बात जांच जांच में सामने आई थी. जांच के मुताबिक ₹840 प्रति घन फीट के पत्थरों को फर्जी ढंग से जयपुर का बताकर उसका रेट 1890 रुपये प्रति घन फीट कर दिया गया था, इस तरह करोड़ों रुपए का खेल किया गया था.
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