गोरक्षनाथ शोधपीठ में पाँच दिवसीय व्याख्यान शृंखला का हुआ उद्घाटन

मुकेश कुमार, ब्यूरो चीफ़ पूर्वांचल । बुद्ध पूर्णिमा के उपलक्ष्य में महायोगी गुरु श्री गोरक्षनाथ शोधपीठ, दी. द. उ. गोरखपुर विश्वविद्यालय एवं अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, लखनऊ (संस्कृति विभाग), उत्तर प्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा के रक्षक: महर्षि पतंजलि, गौतम बुद्ध एवं गुरु गोरखनाथ’ विषय पर पाँच दिवसीय व्याख्यान के आयोजन का उद्घाटन कुलपति प्रो. पूनम टण्डन के संरक्षण में महायोगी गुरु श्री गोरक्षनाथ शोधपीठ में किया गया। इस व्याख्यान शृंखला के मुख्य वक्ता गोरखपुर विश्वविद्यालय के कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. राजवन्त राव रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो.पूनम टण्डन के द्वारा किया गया।

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कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य वक्ता प्रो. राजवन्त राव, कुलपति प्रो. पूनम टण्डन एवं शोधपीठ के उपनिदेशक डॉ. कुशल नाथ मिश्र के द्वारा गोरखनाथ जी के चित्र पर पुष्पार्चन के साथ किया गया। इस संगोष्ठी के संयोजक गोरक्षनाथ शोधपीठ के उप निदेशक डॉ. कुशल नाथ मिश्र ने अतिथियों का स्वागत किया तथा प्रस्ताविकी रखते हुए कहा कि पतंजलि चित्त शुद्धि, बुद्ध कर्म शुद्धि, गोरख प्राण शुद्धि पर बल देते है।

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इस संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रो. राजवन्त राव ने अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि पतंजलि भारतीय ज्ञान परम्परा के एक विराट व्यक्तित्व है। योग, आयुर्वेद, के साथ ही व्याकरण पर इनके ग्रंथ प्राप्त होते है। विद्वानों में यह मतभेद है कि तीनों ग्रंथों के प्रणेता एक ही पतंजलि है या अलग अलग। उन्होंने कहा कि महाभाष्य एक विशाल विश्वकोश है जिसमें तत्कालीन परिस्थितियों का भी विवरण उपलब्ध होता है। योगसूत्र के प्रणेता पतंजलि की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पतंजलि ने संभवतः बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग का सूत्र पकड़ कर अष्टांग योग में समेटा है। उन्होंने कहा कि बुद्ध और पतंजलि दोनों शास्त्र को स्थगित करते थे। बुद्ध पहले दार्शनिक थे जिन्होंने तार्किक विवेक पर बल दिया है। वे कहते थे किसी बात को इसलिए नहीं मानो कि किसी ने कहा है बल्कि अपने विवेक से मानो। अपने शरण में रहो। अपने को पहचानो। बुद्ध किसी गुरु को स्वीकार नहीं करते। बाद में उन्हे लोगों ने गुरु बना दिया। उन्होंने कहा कि शैव, बुद्ध एवं नाथपंथ में एकता के सूत्र विद्यमान है। तीनों के समन्वय से भारत का जन गण मन तैयार हुआ है।

इस व्याख्यान की अध्यक्षता कर रहीं गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टण्डन ने कहा कि बुद्ध एवं गोरखनाथ के कार्य का परिक्षेत्र सिद्धार्थ नगर, लुम्बिनी, कुशीनगर एवं गोरखपुर रहा है। यदि हम तीनों के योग, दर्शन, करुणा, ज्ञान के साथ आगे बढ़ें तो हम प्रगति कर सकते है। पूरा विश्व इसके लिए भारत के प्रति देखता है।

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उद्घाटन सत्र का धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सोनल सिंह एवं मंच का संचालन डॉ. कुलदीपक शुक्ल के द्वारा किया गया। इस अवसर पर डॉ. कुलदीपक शुक्ल द्वारा लिखित पुस्तक पालि चेतना का विमोचन भी किया गया। इस कार्यक्रम में देशभर के अनेक विश्वविद्यालय से लोग ऑनलाइन माध्यम से जुड़े रहे। इस अवसर पर प्रतिभागी एवं गोरखपुर विश्वविद्यालय के सभी संकायों के शिक्षकगण एवं शोध-छात्र, प्रो. अनुभूति दुबे, प्रो. विमलेश मिश्र, डॉ. आमोद कुमार राय, डॉ. मनोज कुमार द्विवेदी डॉ. सुनील कुमार, डॉ. हर्षवर्धन सिंह, डॉ. रंजन लता, डॉ. देवेन्द्र पाल, डॉ. मीतू सिंह, डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी, चिन्मयनन्द मल्ल आदि उपस्थित रहे।

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