आज ज्येष्ठ महीने का तीसरा बड़ा मंगल है। आज के दिन जगह जगह पर हनुमान जी की पूजा की जाती है। मंगलवार के दिन चिरंजीवी, जागृतदेव, श्रीराम के परम भक्त श्री हनुमान जी की पूजा अर्चना की जाती है। हिंदू धर्म शास्त्रों में हर युग में हनुमान जी की उपस्थिति का प्रमाण मिलता है। मान्यतानुसार भगवान हनुमान जी की कृपा पाने के लिए इस दिन की की हनुमान जी की पूजा से हर इच्छा पूरी होती है। आइए इस महापर्व पर महावीर बजरंगी (Bajrangi) की पूजा का सरल उपाय और उससे जुड़े जरूरी नियम को विस्तार से जानते हैं।
पूजा विधि
बड़ा मंगल हनुमान जी को समर्पित है। ऐसे में इस दिन भक्त सुबह ब्रह्म मुहू्र्त में उठकर स्नान आदि के निवृत हो जाते हैं। इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र पहनते हैं। इस दिन लाल रंग का वस्त्र पहनना अच्छा माना गया है। इसके बाद हनुमान जी को लाल रंग के फूल, सिंदूर, अक्षत अर्पित करते हैं। फिर उन्हें गुड़, चने की दाल, बूंदी, लड्डू इत्यादि चढ़ाया जाता है। पूजा के अंत में हनुमानजी के समक्ष घी का दीपक और धूप जलाकर हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का पाठ किया जाता है। इसके बाद हनुमान जी की आरती की जाती है। बड़े मंगल के दिन किसी हनुमान मंदिर में जाकर भगवान को सिंदूर चमेली का तेल मिलाकर बनाया गया लेप अर्पित करने से भगवान जल्द प्रसन्न होते हैं।
अमंगल से बचने के लिए रखें इन नियमों का ध्यान
संकट मोचक हनुमान जी से मनचाहा वरदान पाने के लिए साधक को बड़ा मंगल के दिन पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और तामसिक चीजों का बिल्कुल प्रयोग नहीं करना चाहिए।
बजरंगी का आशीर्वाद पाने के लिए पूजा में उनकी प्रिय और अप्रिय चीजों का हमेशा ख्याल रखना चाहिए। जैसे हनुमान जी की पूजा में भूलकर भी चरणामृत नहीं चढ़ाना चाहिए।
यदि आप चाहते हैं कि आपकी हनुमत साधना शीघ्र ही सफल हो तो आप उनकी पूजा में साफ–सफाई और पवित्रता का विशेष ख्याल रखें। बजरंगी की साधना हमेशा तन और मन से पवित्र होकर कर करें।
श्री हनुमान जी की साधना कोई भी व्यक्ति कभी भी कर सकता है, लेकिन महिलाओं के लिए कुछ जरूरी नियम बनाए गए हैं। हनुमत साधना करते समय स्त्रियों को उनकी मूर्ति का स्पर्श नहीं करना चाहिए।
हनुमान जी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर कांपे।
रोग दोष जाके निकट न झांके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई।
सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीरा रघुनाथ पठाए।
लंका जारि सिया सुधि लाए॥
लंका सो कोट समुद्र-सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे।
सियारामजी के काज सवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।
आनि संजीवन प्राण उबारे॥
पैठि पाताल तोरि जम-कारे।
अहिरावण की भुजा उखारे॥
बाएं भुजा असुरदल मारे।
दाहिने भुजा संतजन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारें।
जय जय जय हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई॥
जो हनुमानजी की आरती गावे।
बसि बैकुण्ठ परम पद पावे
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