जानें क्या है 13 पॉइंट रोस्टर सिस्टम और क्यों छिड़ा है इसपे विवाद, कल अध्यादेश ला सकती है मोदी सरकार

यूनिवर्सिटी की नौकरियों में अनसूचित जाति-जनजाति और ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने के नए तरीके ’13 पॉइंट रोस्टर’ को लेकर विरोध जारी है. इसी बीच सरकार इस पर अध्यादेश लाने की तैयारी में है. बताया जा रहा है कि मोदी सरकार की अंतिम कैबिनेट बैठक में सात तारीख़ को इस पर फैसला हो सकता है. इसके तहत एससी, एसटी और ओबीसी को विश्वविद्यालयों में फ़ैकल्टी में भर्ती के लिए आरक्षण डिपार्टमेंट के बजाए यूनिवर्सिटी के आधार पर दिया जाएगा. आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2017 के फ़ैसले को बहाल रखा था, जिसमें आरक्षित पदों को भरने के लिए डिपार्टमेंट को यूनिट माना गया था न कि यूनीवर्सिटी को. इस मामले में सरकार की रिव्यू पीटिशन को भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था.  


क्या है रोस्टर सिस्टम

शिक्षकों की नियुक्तियों में रोस्टर सिस्टम एक ऐसा तकनीकी मसला है जो आरक्षण के मुद्दे से भी जुड़ा हुआ है और इसीलिए इसने राजनीतिक रूप भी अख्तियार कर लिया है. कानूनी विवाद में घिर जाने के बाद इसकी आंच ने सरकार को भी लपेटे में लेना शुरू कर दिया. शिक्षकों और यहां तक कि सरकारी नियुक्ति में अनारक्षित और आरक्षित पदों के विभिन्न श्रेणियों में पदों का बंटवारा या आवंटन एक विशेष पद्धति से होता है जिसे रोस्टर सिस्टम कहते हैं.


सुप्रीम कोर्ट ने पुराने 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम लागू करने को लेकर मानव संसाधन मंत्रालय (MHRD) और UGC द्वारा दायर स्पेशल लीव पिटीशन को 22 जनवरी को ही खारिज कर दिया था. बाद में सरकार ने पुनर्विचार याचिका भी दायर की थी जिसे कोर्ट ने 28 फरवरी को खारिज कर दिया था.


सोमवार को राजस्थान के अजमेर में मौजूद केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने एक बार फिर भरोसा दिलाया कि जल्दी ही अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों को 13 पॉइंट रोस्टर से मुक्ति दिला दी जाएगी. जावड़ेकर राजस्थान अनुसूचित जाति मोर्चा के एक कार्यक्रम में पहुंचे थे और केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी इस दौरान मौजूद थे. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट से याचिका ख़ारिज होने के बाद भी जावड़ेकर ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर भरोसा दिलाया था कि सरकार इस मसले पर गंभीर है और अध्यादेश लाने के बारे में विचार चल रहा है. जावड़ेकर ने संसद में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका मंज़ूर नहीं हुई तो सरकार ऑर्डिनेंस लाएगी. उन्होंने कहा था कि सरकार हमेशा सामाजिक न्याय के पक्ष में है, पुनर्विचार याचिका खारिज होने की स्थिति में हमने अध्यादेश या विधेयक लाने का फैसला किया है’.


बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले और यूजीसी के नोटिफिकेशन के बाद जब 13 पॉइंट रोस्टर के मुताबिक यूनिवर्सिटी और संस्थाओं ने नौकरी के विज्ञापन आए तो इस सिस्टम का विरोध होने लगा. तब सरकार ने कहा था कि वो इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पेटिशन (एसएलपी) के ज़रिए चुनौती देगी. इसके बाद यूजीसी ने 19 जुलाई 2018 को सर्कुलर जारी कर तमाम भर्तियां रोकने का आदेश जारी कर दिया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की एसएलपी को खारिज कर दिया और ये नया सिस्टम लागू हो गया. हालांकि विरोध के बाद मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कई बार अध्यादेश लाकर इस फैसले को पलटने की बात भी कही थी, लेकिन संसद के आखिरी सत्र तक इस अध्यादेश का कोई ज़िक्र नहीं किया गया.



सरकार अगर अब भी चाहे तो अध्यादेश या सत्र के दौरान बिल लाकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलट सकती है या फिर याचिका दायर कर मामले की बड़ी बेंच के सामने सुनवाई के लिए भी अपील कर सकती है. गौरतलब है कि भले ही सरकार ने संविधान संशोधन कर आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू किया हो लेकिन संविधान में सामाजिक पिछड़ेपन को ही आधार बनाकर शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया गया था. संविधान के अनुच्छेद 15(4), 16(4), 335, 340, 341, 342 में साफ़ तौर पर आरक्षण देने की वजह बताई गई हैं. हालांकि सरकार ने संविधान में दो नए अनुच्छेद 15(6) और 16(6) जोड़कर आर्थिक पिछड़ेपन को भी आरक्षण का आधार बना दिया है.


क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में इस चुनौती को खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी के आरक्षण से जुड़े मामले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले को सही ठहराया है. हाई कोर्ट ने अपने फ़ैसले में यूजीसी के 5 मार्च 2018 के आदेश को सही बताया था.



इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक यूजीसी ने सर्कुलर जारी कर सभी उच्च शिक्षण संस्थाओं में विभागवार की जगह संस्थान वार आरक्षण लागू करने का आदेश दिया था. इससे ये साफ़ हो गया है कि 13 पॉइंट रोस्टर फिलहाल सभी यूनिवर्सिटी में लागू हो गया है और अप्रैल 2018 से रुकी हुई नियुक्तियां अब इसी आधार पर होंगी. उधर दिल्ली यूनिवर्सिटी और लखनऊ यूनिवर्सिटी में गुरूवार को इसके खिलाफ प्रदर्शन भी शुरू हो गए हैं और इससे एसएसी/एसटी और ओबीसी वर्ग में गुस्सा बढ़ने लगा.


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