भारतीय सुरक्षा अधिकारियों (Indian security agencies) ने इमरान खान सरकार की 1600 कश्मीरी छात्रों को पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में स्कॉलरशिप देने की योजना को नामंजूर कर दिया है। अधिकारियों ने बताया कि स्कॉलरशिप देना युवा कश्मिरियों की कट्टरपंथी बनाने की पाकिस्तान की एक रणनीति थी, उन्हें बाद में भारत के खिलाफ भड़काया जाता….पहले उनकी सहानुभूति लेते फिर बाद में उनका इस्तेमाल करते।
जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक सीनियर ऑफिसर ने बताया कि ऐसे कुछ उदाहरण भी सामने आए हैं, जहां युवा कश्मीरियों ने वाघा-अटारी सीमा चौकी से होकर बॉर्डर पार की और नियंत्रण रेखा से होकर आतंकवादियों के रूप में वापस लौटे। बता दें कि पाकिस्तान ने पहली बार इस साल की शुरुआत में अपनी नेशनल असेंबली के एक पैनल में स्कीम की घोषणा की थी। पाकिस्तान सालों से कश्मीरी छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान कर रहा है, लेकिन ये ज्यादातर बहुत ही छोटे पैमाने पर थे।
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कश्मीर पुलिस का अनुमान है कि लगभग 150 कश्मीरी छात्रा पाकिस्तान और पीओके स्थित मेडिकल और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में नामांकित हैं। पुलिस अधिकारियों ने कहा कि आवेदकों को ज्यादातर अलगाववादी समूहों जैसे हुर्रियत या आतंकी समूह हिजबुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन के नेतृत्व वाले यूनाइटेड जिहाद काउंसिल के पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद में सिफारिश की आवश्यकता होती है।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा जब्त किए गए एक दस्तावेज में इस बात का खुलासा हुआ था कि नईम खान ने एक छात्र के लिए एक मेडिकल कॉलेज में प्रवेश की सिफारिश की थी। क्योंकि उसका परिवार अलगाववादियों के अभियान में सहयोग के लिए प्रतिबद्ध था। दिल्ली में एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि पीओके कॉलेजों में छात्रवृत्ति लेने के लिए पहुंचे कश्मीरी छात्रों को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि उन्होंने जो डिग्री दिखाई वह भारत में मान्यता प्राप्त नहीं थी।
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हादिया चिश्ती एक अपवाद हो सकती है। उसने 2012 में पीओके के मीरपुर में मोहतरमा बेनजीर भुट्टो शहीद मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया था। जब उन्होंने अपना कोर्स पूरा किया और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन के लिए बैठी तो उन्हें बताया गया कि उनका कॉलेज पीओके में है। उसे मान्यता नहीं मिली।
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