जानें, एक सरकारी अध्यापक का बेटा मसूद अजहर कैसे बना दुनिया का खूंखार आतंकी

जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर आखिरकार वैश्विक आतंकी घोषित कर दिया गया. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में बुधवार को इसका फैसला हुआ. यह खबर भारत के लिए बहुत ही राहत भरी थी. बीते 10 बरसों में भारत मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित कराने में चार बार विफल हो चुका था. हर बार अड़ंगा पड़ोसी मुल्क चीन ने लगाया, जिसके पाकिस्तान के साथ गहरे आर्थिक-राजनीतिक संबंध हैं. वही पाकिस्तान, जिसने मसूद और उसके आतंकी संगठन को पनाह दे रखी है.


आतंकी मसूद ने ने भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में भी आतंकी वारदातों को अंजाम दिया था. अब ये आतंकी पाकिस्तान में भी खुलेआम नहीं घूम पाएगा. उसकी संपत्ति जब्त कर ली जाएगी. उसके बैंक खातों को सील कर दिया जाएगा. क्योंकि अब वो बन चुका है ग्लोबल आतंकी. उसके संगठन पर पहले ही बैन लगाया जा चुका है.


अजहर के संगठन जैश-ए-मोहम्मद का मकसद केवल कश्मीर को भारत से अलग करना है. इसकी स्थापना मसूद अज़हर ने मार्च 2000 में की थी. भारत में हुए कई आतंकी हमलों के लिए ज़िम्मेदार जैश-ए-मोहम्मद को पाकिस्तानी सरकार ने दिखावे के लिए जनवरी 2002 में बैन कर दिया था. लेकिन इसका सरगना मसूद अजहर इतना शातिर है कि उसने जैश-ए-मुहम्मद का नाम बदलकर ‘ख़ुद्दाम-उल-इस्लाम​’ कर दिया था.  इस आतंकवादी संगठन को भारत के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन ने भी आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल कर रखा था.


कौन है मसूद अज़हर

मौलाना मसूद अज़हर का जन्म पाकिस्तान के बहावलपुर में 10 जुलाई 1968 को हुआ था. उसके 9 अन्य भाई-बहन थे. कुछ मीडिया रिपोर्ट उसके जन्म की तारीख 7 अगस्त, 1968 बताती हैं. अजहर का पिता अल्लाह बख्श शब्बीर एक सरकारी स्कूल का प्रधानाध्यापक था. उसका परिवार डेयरी और पॉल्ट्री के कारोबार से जुड़ा था. 8वीं तक पढ़ने के बाद मसूद ने मेनस्ट्रीम स्कूल छोड़ दिया और जामिया उलूम मदरसे में दाखिला ले लिया. 1989 में मसूद इसी मदरसे से ग्रैजुएट हुआ और उसे आलिम बना दिया गया.


जिसे टीचर बनाया गया, वह आतंकी कैसे बन गया


इस मदरसे का आतंकी संगठन ‘हरकत-उल-अंसार’ (HUA) से गहरा नाता था. यह आतंकी संगठन हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी और हरकत-उल-मुजाहिदीन के मिलने से बना था, जो अफगानिस्तान के सक्रिय आतंकी संगठन थे। वहीं, HUA का कश्मीर में ज़्यादा दखल था. HUA ने मसूद को उर्दू भाषा की अपनी पत्रिका ‘साद-ए-मुजाहिद्दीन’ और फिर अरबी भाषा की पत्रिका ‘सावत-ए-कश्मीर’ का संपादक भी बनाया.


कुछ वक्त बाद मसूद HUA का जनरल सेक्रटरी बन गया. इस समय तक उसकी हैसियत आतंकियों की भर्ती करने, चंदा इकट्ठा करने और इस्लाम के प्रचार के लिए दुनियाभर में यात्राएं करने की हो गई थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक इन कामों के लिए मसूद ब्रिटेन, सऊदी अरब और मंगोलिया जैसे तमाम देशों में गया.


आतंक के लिए विदेशों से चंदा उगाही

1980 के दशक के आखिर तक मसूद अजहर पर आतंक का जहर पूरी तरह चढ़ चुका था. तब सोवियत संघ और अफगानिस्तान का युद्ध भी चरम पर था. उसी दौरान मसूद अफगानिस्तान में आतंकी ट्रेनिंग लेकर पाकिस्तान लौट आया. 1992 तक मसूद अजहर ने पाकिस्तान में आतंक का जहर फैलाने के लिए चंदा इकट्टा किया. वह अफगानिस्तान में बैठे आतंकियों की मदद करना चाहता था. इस बात से हरकत-उल-मुजाहिदीन आतंकी संगठन का सरगना खलील इतना प्रभावित हुआ कि उसने मसूद को विदेशी दौरे पर भेजना शुरू कर दिया. सबसे पहले मसूद हज यात्रा पर सऊदी अरब गया और उसके बाद उसने अफ्रीकी देश जांबिया और ब्रिटेन से भी लाखों रुपये का चंदा जुटाया. उसने बरमिंघम, नॉटिंघम, लेसेस्टर और लंदन में आतंकी सोच वाले नौजवानो के साथ बैठकें भी की.


1994 में पहली बार पुलिस की पकड़ में आया मसूद अजहर


1993-94 के बरसों में इंडियन आर्मी ने कश्मीर में ‘हरकत-उल-मुजाहिदीन’ (HUM) को कुचलकर रख दिया था. नवंबर 1993 में HUM के सरगना नसरुल्लाह मंसूर लंगरयाल को अरेस्ट किया गया. अगले साल फरवरी 1994 में HUM के सेक्रटरी मौलाना मसूद अजहर और सज्जाद अफगानी को भी इंडियन आर्मी ने कश्मीर के अनंतनाग में धर लिया. उस समय मसूद पुर्तगाली पासपोर्ट के ज़रिए बांग्लादेश के रास्ते कश्मीर में आतंक को बढ़ावा देने आया था. इस समय तक मसूद आतंकी संगठनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो चुका था, इसलिए उसकी गिरफ्तारी के साथ ही उसे छुड़ाने की कवायद भी शुरू हो गई.


1995 में विदेशी पर्यटकों ने अपनी जान की कीमत चुकाई


जुलाई 1995 में खुद को अल-फरान बताने वाले कुछ लोगों ने जम्मू-कश्मीर घूमने आए 6 विदेशी पर्यटकों को किडनैप कर लिया. इन 6 में से दो ब्रिटिश, दो अमेरिकी, एक जर्मन और एक नॉर्वे का नागरिक था. किडनैपर्स ने इन पर्यटकों के बदले मसूद अजहर और उसके अलावा 20 और आतंकियों को छोड़ने की मांग रखी. जब भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने इन किडनैपर्स की बात नहीं मानी, तो 13 अगस्त 1995 को नॉर्वे के नागरिक ऑस्ट्रो की सिर कटी लाश पहलगाम में बरामद हुई. इसके बाद दोनों अमेरिकी नागरिक किडनैपर्स की गिरफ्त से भागने में कामयाब हो गए, लेकिन बाकी तीन पर्यटकों का कुछ पता नहीं चला. मई 1996 में गिरफ्तार किए गए एक आतंकी ने बताया कि उन तीनों को गोली मार दी गई थी.


1999 में अपने मंसूबे में कामयाब हो गए आतंकी


मसूद के हिरासत में रहते समय पुलिस और सेना के कई अफसरों ने उससे पूछताछ की थी. PTI की एक रिपोर्ट में पुलिस अधिकारी अविनाश मोहनाने के हवाले से बताया गया था कि मसूद से पूछताछ बहुत मुश्किल नहीं थी. पहली बार में जब उसे एक थप्पड़ जड़ा गया, तो उसने सब कुछ उगलना शुरू कर दिया. इसके बाद भी उसे ज़्यादा टॉर्चर करने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी और वह आसानी से आतंकी संगठनों के बारे में जानकारी दे देता था. मसूद के साथ अरेस्ट हुए सज्जाद अफगानी को 1999 में जेल से भागने की कोशिश करते समय गोली मार दी गई थी. लेकिन, मसूद को छुड़ाने की कोशिश अब भी जारी थी.


दिसंबर 1999 में हरकत-उल-मुजाहिदीन (HUM) के आतंकियों ने काठमांडू एयरपोर्ट से दिल्ली आ रहे इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट IC 814 को हाइजैक कर लिया. आतंकी इस फ्लाइट को अमृतसर, लाहौर और दुबई होते हुए अफगानिस्तान के कंधार ले गए. इस फ्लाइट में कुल 178 लोग थे, जिनकी सलामती के बदले आतंकियों ने मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुस्तफाक अहमद जरगर को छोड़ने की मांग की. इसके अलावा भारत में बंद 35 अन्य आतंकियों की रिहाई और 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मांग भी की गई. 7 दिनों की सौदेबाजी के बाद उस समय की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने लोगों को बचाने के लिए तीन मुख्य आतंकियों- मसूद, सईद शेख और मुस्तफाक को छोड़ दिया. उस समय मसूद HUM का ही हिस्सा था.


रिहाई के बाद बनाया आतंकी संगठन

31 दिसंबर 1999 को कंधार में रिहा होने के बाद मसूद अलकायदा के मुखिया ओसामा बिन लादेन से मिलने गया, फिर एक महीने बाद जनवरी 2000 में पाकिस्तान चला गया. पाक आने के बाद मसूद ने HUM से खुद को अलग कर लिया. फिर कराची की एक मस्जिद में मसूद ने सैकड़ों हथियारबंद आतंकियों के साथ अपना खुद का आतंकी संगठन बनाया- ‘जैश-ए-मोहम्मद’ (JEM)। इस नाम का शाब्दिक अर्थ है मोहम्मद की सेना.


JEM कश्मीर में सक्रिय सबसे खतरनाक आतंकी संगठनों में से एक है. यह ज़्यादातर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से ऑपरेट करता है और इसका मकसद जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना है. JEM को बनाने में मसूद को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI, अफगानिस्तान में सक्रिय तालिबानी आतंकियों, ओसामा बिन लादेन और कई पाकिस्तानी सुन्नी संगठनों से मदद मिली थी.


फिर शुरू हुआ भारत पर हमलों का सिलसिला

JEM बनाने के बाद मसूद ने पहला बड़ा हमला किया अक्टूबर 2001 में जम्मू-कश्मीर की विधानसभा पर. इस हमले में 38 लोगों की जानें गई थीं. इसके दो महीने बाद दिसंबर 2001 में मसूद ने लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिलकर भारत की संसद पर हमला किया. इस हमले में भारत के 8 जवान शहीद हुए थे. इस मामले में अफजल गुरु समेत चार आतंकी गिरफ्तार हुए थे, जिनमें से अफजल को 2013 में फांसी दे दी गई थी. अफजल को हमलावरों को सामान पहुंचाने का दोषी पाया गया था.


इसके बावजूद भी मसूद रुका नहीं और भारत पर लगातार हमले करता रहा.सितंबर 2016 में जम्मू-कश्मीर के उड़ी में भारतीय सुरक्षाबलों पर हमला किया गया, जिसमें 19 जवानों की मौत हो गई थी. भारत सरकार की तरफ से इस हमले का शक भी जैश-ए-मोहम्मद पर जताया गया था. 14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में भारतीय सुरक्षाबलों की एक बस को विस्फोटक लदे वाहन से उड़ा दिया गया था. इस हमले में 40 से ज़्यादा जवान शहीद हो गए थे। इस हमले की ज़िम्मेदारी खुद जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी.


इसलिए मसूद को बचा रहा था चीन

चीन अभी तक मसूद को इसलिए बचा रहा था, क्योंकि चीन अपने शहर काशगर से पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट तक इकॉनमिक कॉरिडोर बना रहा है. CPEC नाम का यह कॉरिडोर PoK और बलूचिस्तान जैसे कई संवेदनशील इलाकों से गुजरता है. इसे आतंकियों से मुक्त रखने के लिए चीन मसूद मुद्दे पर पाकिस्तान की मदद कर रहा था. इसके अलावा चीन भारत को अपना आर्थिक और राजनीतिक प्रतिद्वंदी मानने और अपने देश में मुस्लिमों पर लगाए प्रतिबंधों को बिना दिक्कत जारी रखने के लिए भी मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने में अड़ंगा लगा रहा था. हालांकि, दुनियाभर के तमाम देशों के दबाव में आखिरकार चीन झुका और मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित किया गया.


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