लोकसभा चुनाव: सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद भी इन 40 सीटों पर बीजेपी के लिए गेमचेंजर साबित होगा ‘सवर्ण आरक्षण’

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन गठबंधन से चिंतित भाजपा को सामने आरक्षण कार्ड के रूप में जैसे ब्रह्मास्त्र मिल गया है. राज्य की 25% आबादी वाली 40 लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा करती हैं. ऐसे में सवर्ण आरक्षण को भाजपा सूबे की सियासत में गठबंधन का प्रभाव हटाने के लिए बड़ा हथियार मान रही है, पार्टी को लग रहा है कि इस एक फैसले से वह पिछले लोकसभा चुनाव से कहीं बेहतर नतीजे हासिल करने में कामयाब हो सकती है.

 

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सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश केंद्र सरकार बनाने में सदैव अहम भूमिका रहती है. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को यहां रिकॉर्ड 73 सीटों (सहयोगी अपना दल की दो सीटें मिलाकर पर सफलता मिली थी). इनमें से 35 सीटें ऐसी थी जिन पर सवर्ण वोटरों ने ही भाजपा को जिताने में अहम भूमिका निभाई थी. नतीजों को देखते हुए माना जाता है कि उस चुनाव में तकरीबन 80% मतदाताओं ने भाजपा का साथ दिया था. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की बड़ी जीत के पीछे सवर्ण वोटरों की अहम भूमिका मानी जाती है. पार्टी के सर्वाधिक 44 फ़ीसदी सवर्ण विधायक जीते थे. जगजाहिर है कि भाजपा के लिए सवर्ण वोटर सदैव अहम रहे हैं.

 

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केंद्र व राज्य में सत्ता होने के बावजूद यूपी में भाजपा के सामने लोकसभा चुनाव को लेकर अब सबसे बड़ी चुनौती सपा-बसपा का प्रस्तावित गठबंधन ही माना जा रहा है. सपा-बसपा और रालोद जैसी पार्टियों के एकजुट होकर चुनाव लड़ने से सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को ही होगा. उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में सपा और बसपा के अलग-अलग लड़ने से वोटों के बिखराव का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को ही मिला था. इधर मोदी सरकार द्वारा एससी-एसटी एक्ट में संशोधन से भाजपा के प्रति सवर्णों की नाराजगी साफ़ देखी गयी. 3 राज्यों में भाजपा की हार के प्रमुख कारणों में से इन मतदाताओं की उदासीनता को भी माना जा रहा है. ऐसे  में लोकसभा चुनाव से लगभग 100 दिन पहले गरीब सवर्णों को सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में 10 फ़ीसदी आरक्षण देने वाला मोदी सरकार का ऐतिहासिक फैसला खासतौर से यूपी में गेम चेंजर साबित हो सकता है.

 

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