आयुर्वेद और बायोटेक्नोलॉजी से चिकित्सा के क्षेत्र में हो रहा वैश्विक नवाचार : प्रो. भार्गव

मुकेश कुमार, संवाददाता गोरखपुर। महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर (एमजीयूजी) के संबद्ध स्वास्थ्य विज्ञान संकाय और सोसाइटी फॉर बायोटेक्नोलॉजिस्ट इंडिया (एसबीटीआई) के सहयोग से ‘आयुर्वेद एवं बायोमेडिकल विज्ञान में जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग’ विषय पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में आईसीएमआर के पूर्व महानिदेशक और राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष पद्मश्री प्रो. बलराम भार्गव ने मार्गदर्शन दिया, जबकि अध्यक्षता यूपी के मुख्यमंत्री के शिक्षा सलाहकार एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व चेयरमैन प्रो. डीपी सिंह ने की।

प्रो. भार्गव ने कहा कि आयुर्वेद और बायोटेक्नोलॉजी से चिकित्सा क्षेत्र में वैश्विक नवाचार हो रहा है। आयुर्वेद की प्राचीन चिकित्सा पद्धति और जैव चिकित्सा के समन्वय से स्वास्थ्य सेवा सशक्त हो रही है। जैव प्रौद्योगिकी ने स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं और आयुर्वेद में इसके अनुप्रयोग ने नई संभावनाओं को जन्म दिया है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के प्रकोप के दौरान भारत ने स्वदेशी वैक्सीन विकसित कर वैश्विक स्वास्थ्य सेवा को संजीवनी दी।

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सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए प्रो. डीपी सिंह ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा संस्कार और राष्ट्र सेवा का भाव जागृत करती है। 21वीं सदी में आयुर्वेद, यूनानी और जैव प्रौद्योगिकी के समन्वय से स्वास्थ्य सेवा में नए आयाम जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी में शोध और नवाचार से चिकित्सा के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हो रहा है।

महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरिंदर सिंह ने कहा कि यह सम्मेलन वैज्ञानिक रुझानों को समझने और शोधकर्ताओं को संवाद का मंच प्रदान करने का अवसर है। यह जैव प्रौद्योगिकी, औद्योगिक सूक्ष्म जीवविज्ञान, पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी, नैनो बायोटेक्नोलॉजी और बायोइन्फॉर्मेटिक्स पर केंद्रित रहेगा।

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सम्मेलन में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. सुभाष चंद्र लखोटिया को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड और नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी, शिलांग के पूर्व अधिष्ठाता प्रो. रमेश शर्मा को डीएस पाउले ओरेशन अवार्ड से सम्मानित किया गया। पुरस्कार सोसाइटी फॉर बायोटेक्नोलॉजिस्ट इंडिया के अध्यक्ष प्रो. एडाथिल विजयन द्वारा घोषित किए गए।

सम्मेलन में महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रदीप कुमार राव की पुस्तक ‘महाकुंभ’ और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की शोध संदर्भ पुस्तिका का विमोचन किया गया। महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के रामचंद्र रेड्डी ने पुस्तकों की विषयवस्तु पर प्रकाश डाला।

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सम्मेलन के प्रथम तकनीकी सत्र से पूर्व मुख्य उद्बोधन में प्रो. सुभाष चंद्र लखोटिया ने आयुर्वेद एवं जैव विज्ञान के अंतर्संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद को वैज्ञानिक पद्धति से सत्यापित कर इसके प्रभावी पहलुओं को अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक रूप से समझने के लिए निष्पक्ष और समावेशी दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया।

तकनीकी सत्र में चुलालोंगकोर्न विश्वविद्यालय, बैंकॉक के प्रो. चांचाई बूनला ने जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग से नई औषधियों के विकास की संभावनाओं पर व्याख्यान दिया। कोलंबो विश्वविद्यालय की प्रो. सुमादी डी सिल्वा ने विज्ञान के रहस्यों और उनकी उपयोगिता पर चर्चा की। काठमांडू विश्वविद्यालय के प्रो. जनार्दन लामिछाने ने आयुर्वेद और औषधीय पौधों के अनुसंधान के अंतर प्रबंधन पर व्याख्यान दिया। आणविक जीव विज्ञान केंद्र, हैदराबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जनेश दुबे ने जैव प्रौद्योगिकी आधारित चिकित्सा पद्धति पर शोधार्थियों को मार्गदर्शन दिया।

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सम्मेलन में भारत के विभिन्न राज्यों के विशेषज्ञों के साथ इजरायल, नेपाल, श्रीलंका, कोरिया, अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी से भी विशेषज्ञों ने भाग लिया। उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ. अनुकृति राज ने किया, जबकि तकनीकी सत्रों का संचालन जिज्ञासा सिंह और प्रशांत गुप्ता ने किया। आयोजन समिति की डॉ. अनुपमा ओझा ने बताया कि यह सम्मेलन जैव प्रौद्योगिकी और चिकित्सा के क्षेत्र में नए शोध और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच साबित होगा।

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