देहरादून: युवती का धर्म परिवर्तन करवाकर समीर ने निकाह तो कर लिया, लेकिन प्रशासन को नहीं दी जानकारी, मांगी सुरक्षा तो खुल गई पोल

एक तरफ जहां 100 से ज्यादा पूर्व नौकरशाहों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर लव जेहाद कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ देश के अलग अलग राज्यों से इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं। ताजा मामला उत्तराखंड के देहरादून (Dehradun) में सामने आया है, जहां की पटेलनगर कोतवाली में मुफ्ती सहित चार लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। इस मामले में धर्म परिवर्तन करने वाली युवती और उसके पति को आरोपी बनाया गया है। माना जा रहा है कि धर्म स्वतंत्रता अधिनियम के तहत यह राज्य का पहला मामला है।


पुलिस ने बताया कि एक महिला ने सितंबर में मुस्लिम युवक से शादी की थी। इस दौरान उसने कानून के प्रावधानों का पालन किए बिना धर्म परिवर्तन कर लिया था। मामले में महिला और उसके पति के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। वहीं, पुलिस ने उनके चाचा और एक काज़ी को भी पकड़ा है। इन्होंने ही महिला का धर्म बदलवाया और निकाह कराया था।


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मिली जानकारी के मुताबिक, देहरादून के पटेलनगर अंतर्गत मेहुवाला के रहने वाले समीर ने इसी साल सितंबर माह में एक युवती से निकाह किया था, लेकिन निकाह से पहले धर्म परिवर्तन के लिए जिला प्रशासन को कोई जानकारी नहीं दी गई थी। निकाह के बाद जब युवक ने सुरक्षा के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तब यह बात सामने आई कि धर्म परिवर्तन के लिए बनाए गए कानून का पालन नहीं किया गया।


ऐसे में हाई कोर्ट के निर्देश पर दिसंबर की शुरुआत में सीओ पटेलनगर अनुज कुमार ने मामले की जांच शुरू की थी, जिसके बाद कुल चार लोगों के खिलाफ धारा 3/8/12 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। एसपी सिटी श्वेता चौबे ने कहा कि धर्म स्वतंत्रता अधिनियम में सजा का प्रावधान भी है। इसमें कम से कम 3 माह एवं अधिकतम पांच साल की सजा के साथ आर्थिक जुर्माने का भी प्रावधान है। इसके अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है वो है धर्म परिवर्तन से पहले जिला प्रशासन को जानकारी देना।


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उन्होंने बताया कि मामले में फिलहाल विवेचना जारी है और सीओ इसकी जांच कर रहे हैं। वहीं, इस मामले एडवोकेट आशीष नौटियाल ने कहा कि फिलहाल इस मामले में मुकदमा तो दर्ज हो चुका है, लेकिन देखना होगा पुलिस अपनी जांच में और किस तरह के तथ्य शामिल करती है ताकि पुलिस की कार्रवाई एक नजीर बन पाए।


बता दें कि उत्तराखंड में फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट के तहत दर्ज यह पहला मामला है। राज्य सरकार ने साल 2018 में यह कानून लागू किया था। इसके मुताबिक, बिना परमिशन के अगर कोई धर्मांतरण या फिर साजिश में शामिल पाया जाता है तो उसे अधिकतम 5 साल की जेल की सजा का प्रावधान है। सरकार ने ऐसे धर्मांतरण को शून्य भी घोषित करने का प्रावधान कर दिया है।


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