UP Nikay Chunav 2023: उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव-2023 मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले सभी छद्म धर्मनिरपेक्ष दलों की राजनीति के लिए बड़ा झटका हैं। इन चुनावों में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी सहित लगभग सभी दलों ने दलित और मुस्लिम समाज के मतों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पूरी ताकत व संसाधन झोंक दिये थे और समीकरण भी बिठाने के प्रयास किये थे लेकिन परिणाम दिखाते हैं कि उनकी ये रणनीति बेबस रही।
उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में समाजवादी पार्टी के बहुत सारे कद्दावर नेता, उनके परिवार के सदस्य व समर्थकों ने चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा का दामन थाम लिया था जिसका असर चुनाव परिणामों में दिखाई पड़ा है। समाजवादी पार्टी के लिए सबसे बड़ी हार चाचा शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव के गढ़ में तो हुई ही है साथ ही रामपुर की स्वार विधानसभा उपचुनाव सीट पर सपा नेता आजम खां अपने बेटे अब्दुल्ला आजम का किला भी नहीं बचा। स्वार सीट से अब्दुल्ला आजम दो बार विधायक रहे, इस बार भी सपा नेता आजम खां की तरफ से पूरी ताकत झोंकी गयी थी और कई धमकी भरे बयान भी दिये गए थे लेकिन उसका कोई असर वहां की आम जनता पर नहीं पड़ा। आजम खां यहाँ से 10 बार विधायक चुने गये किंतु इस बार उनकी पार्टी मुख्य मुकाबले से ही बाहर हो गयी।
आजम खां का रामपुर की राजनीति में 42 साल तक दबदबा रहा इया बार रामपुर नगर पालिका आम आदमी पार्टी प्रत्याशी सना खान के हाथ लग गया। समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनावों में 2017 के 42 से बढ़कर इस बार 112 तक पहुंच गई थी और फिर मुखिया मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उपजी सहानुभूति के बीच उनके निधन से खाली हुई सीट पर भी चाचा शिवपाल यादव के सहयोग से मिली विजय के कारण सपा मुखिया बहुत इतरा रहे थे लेकिन निकाय चुनाव आते-आते सपा की साइकिल पूरी पंक्चर हो गयी। माना जा रहा है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव ने नगर निगम और पंचायत चुनाव में टिकट वितरण में खूब मनमानी की जिसके कारण चाचा शिवपाल और रामगोपाल यादव का खेमा अपने भतीजे से बहुत बुरी तरह नाराज हो गया था।
चाचा शिवपाल के लोगो को टिकट न मिलने से उन लोगों ने खुलकर बगावत करी और कहीं-कहीं कमल का भी दामन थाम लिया। पश्चिम में राष्ट्रीय लोकदल के साथ उनका गठबंधन बिखर गया। शफीर्कुरहमान वर्क जैसे सपा के बड़े मुस्लिम सांसद भी सपा का साथ लगभग छोड़ गये। मेरठ में मुसलमामन मतदाता ने एआईएमआईएम का साथ दिया जिसके कारण वहां सपा तीसरे नंबर पर खिसक गयी। सपा का गठबंधन बिखर चुका है और परिवार में भी आंतरिक तनाव दिख रहा है, वोट प्रतिशत भी बहुत नीचे चला गया है। सबसे बड़ी बात यह भी रही कि मतदान से पहले अतीक- अशरफ परिवार के एक सदस्य की ओर से एक अपील जारी कि गयी कि उनके मर्डर के लिए अखिलेश यादव भी कम जिम्मेदार नहीं है जिसका असर साफ दिखलाई पड़ा है। कई मुस्लिम बहुल इलाके जहां पर सपा का दबदबा रहता था वहां पर इस बार बसपा, एआईएमआईएम और आप का साथ दिया है।
बहुजन समाज पार्टी ने इस बार दलित- मुस्लिम गठजोड़ के सहारे आगे बढ़ने का एक असफल प्रयास किया। जबकि पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनावों में ब्राह्मणों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अपनी रैलियों व जनसभाओं में अयोध्या में राम मंदिर के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करते हुए जयश्रीराम तक के नारे लगवा दिये थे। विधानसभा चुनावों में बसपा ने ब्राह्मण समाज पर हो रहे अत्याचारों को खूब उछाला था किंतु अब वह एक बार फिर दलित- मुस्लिम गठजोड़ पर आ गयी और मुस्लिम तुष्टीकरण की चरम सीमा को पार करते हुए 17 में से 11 नगर निगमों में मुसलमान उम्मीदवार उतार दिये जिसका असर कितना बुरा पड़ा वह साफ दिखायी पड़ रहा है। बसपा के भी कई नेताओं ने भाजपा का दामन थामा और बहिन मायावती जी भी चुनाव प्रचार से दूर सोशल मीडिया पर ट्विटर वार करती रहीं।
नगर निगम चुनावों में सपा बसपा और कांग्रेस आदि सभी दलों द्वारा प्रदेश की जेलों में बंद व मारे गये सभी मुस्लिम माफियाओं व खूखांर अपराधियों के प्रति प्रेम की धारा भाते हुए उनको मसीहा और शहीद का दर्जा देने तक की बातें कही जा रही थीं जिसका असर इन पार्टियों के प्रदेश की राजनीति में सबसे निचले पायदान पर आने के रूप में रहा। प्रदेश का जनमानस अब यह अच्छी तरह से जान चुका है कि यह सभी दल मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर अपराधियों व माफियाओं का संरक्षण कर रहे हैं। सपा, बसपा, कांग्रेस तथा आप जैसे जो दल माफियाओं का समर्थन कर रहे हैं वो भूल जाते हैं कि अपराधी केवल अपराधी होते हैं।
इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार 395 मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा और उसमें 54 विजयी रहे साथ ही कुछ मुस्लिम बहुल इलाकों वाली सीटों पर भी इस बार भाजपा को विजय मिली किन्तु भाजपा को इससे अधिक उत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है उसे अपनी पारंपरिक हिन्दू छवि के साथ ही आगे बढ़ना चाहिए ।
सच ये है कि उत्तर प्रदेश का मुस्लिम मतदाता अपने पारंपरिक आकाओं सपा, बसपा और कांग्रेस से परे नए आकाओं की तलाश में है एआईएमआईएम और आप के मुस्लिम प्रत्याशियों की जीत उनके बदलते रुझान का प्रतीक है।
( मृत्युंजय दीक्षित, लेखक राजनीतिक जानकार व स्तंभकार हैं.)
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